व्यक्ति चिंतन करे कि व्यवहारिक जीवन में धर्म कैसे लाए
गुलाबबाग।
मुनि ज्ञानेंद्र कुमार जी के सान्निध्य में वर्षीतप करने वाले चार तपस्वी का अभिनंदन कार्यक्रम आयोजित हुआ। मुनि ज्ञानेंद्र कुमार जी ने कहा कि आज का दिन देने का एवं लेने का है। भगवान ऋषभ ने लिया एवं श्रेयांस कुमार ने दिया। श्रावक भी अपनी कमी का त्याग करें एवं कुछ ग्रहण करके जाएँ। तपस्या करने का मूल कारण होता हैµआत्मशुद्धि। तप वही कर सकता है जिसकी आहार की आसक्ति छूट जाती है। संकल्प के सामने तपस्या अपने आप प्रारंभ हो जाता है। त्याग की भावना, अध्यात्म की भावना आगे बढ़ती है तभी व्यक्ति तप कर सकता है। व्यक्ति चिंतन करे कि व्यवहारिक जीवन में धर्म को कैसे लाएँ। धर्म के पथ पर कैसे आगे बढ़ें। मनुष्य में मनुष्यत्व के संस्कार जागृत रहें। संयम के भाव बढ़ते रहें। प्रभु ऋषभ के जीवन से त्याग और संयम की प्रेरणा ग्रहण करें। तपस्या करना अपने आपमें बहुत कठिन है। खाना सरल होता है क्योंकि भोग में आकर्षण होता है। त्याग में संयम करना होता है। आज के दिन रसास्वादन तो बहुत सारे लोग करते हैं, लेकिन साथ में यह संकल्प भी करें कि मैं अपनी वाणी में, अपने व्यवहार में इक्षुरस जैसी ही मिठास रखूँगा। कम से कम एक दिन तो वाणी में कड़वाहट न लाएँ।
मुनि प्रशांत कुमार जी ने कहा कि अक्षय तृतीया का दिन सुपात्र दान देने का शुभ अवसर है। संयमी को दान देने से कितना महान पुण्य का बंध होता है। तीर्थंकर की साधना उत्कृष्ट होती हैं उनको आहार का दान देना कितना महान कार्य होता है। भव्य आत्मा को ही यह पुण्य अवसर मिलता है। श्रावक को बहुत बड़ा अवसर प्रभु ऋषभ ने दिया। दान, शील, तप, भाव जो मोक्ष के हेतु हैं उनमें सबसे पहले दान आता है। तपस्या के क्षेत्र में श्रावकों को आगे बढ़ना चाहिए। संयम, मौन त्याग-तपस्या की साधना करनी चाहिए।
मुनि ज्ञानेंद्र कुमार जी स्वयं तपस्वी साधक संत हैं। साधना उनकी दिनचर्या का हिस्सा है। तपस्या की जितनी अनुमोदना की जाए वह कम है। चारों तपस्वी ने वर्षीतप के साथ विभिन्न प्रकार की तपस्या की है। चारों तपस्वी धन्य हैं। सभी व्यक्ति अपने प्रति मंगलकामना करें कि मुझे भी अपने जीवन में तप करना है। सभी श्रावकों को झूठा नहीं छोड़ने का संकल्प करना चाहिए, जिससे जीव हिंसा से भी बचा जा सकता है। व्यक्ति आहार संयम के साथ-साथ इंद्रिय संयम की साधना करता रहे। मुनि कुमुद कुमार जी ने कहा कि प्रभु ऋषभ को बारह महीने और चालीस दिन की तपस्या का पारणा उन्हीं के प्रपौत्र श्रेयांस कुमार ने इक्षुरस से करवाया था। उन्होंने जीवों को कष्ट देने के लिए नहीं किंतु व्यवस्था के लिए पशुओं के मुँह पर छिंकी बंधवाई थी। उससे भी इतने अंतराय कर्म बंध गए तब हमें भी सोचना चाहिए कि हम कितनी अंतराय देते रहते हैं तो हमारा क्या होगा? त्याग, तपस्या में, दीक्षा में, धर्म साधना में कभी अंतराय नहीं देनी चाहिए।
मुनि बिमलेश कुमार जी ने कहा कि अक्षय तृतीया यानी यह तृतीया अक्षय हो गई। कहना बहुत सरल होता है, लेकिन करना बहुत कठिन होता है। जिसका मनोबल मजबूत होता है वह करके दिखाता है। इतिहास बनाने के लिए व्यक्ति को तपना पड़ता है। बिना कुछ किए कुछ पाया नहीं जा सकता। भगवान ऋषभ का जीवन अपने आपमें प्रेरक था। हजारों वर्ष व्यतीत होने पर भी आज भी हजारों-हजारों साधक वर्षीतप की आराधना करते हैं। तप का जीवन में बहुत महत्त्व रहा है। तप की साधना से तन-मन एवं जीवन पावन होता है। मुनि सुबोध कुमार जी ने कहा कि अनादिकाल से यह पर्व मनाया जा रहा है। भारतीय संस्कृति पर्व प्रदान रही है। अक्षय तृतीया लौकिक एवं लोकोत्तर दोनों से जुड़ा हुआ है। धर्म एवं कर्म का समन्वय है। सिर्फ कर्म का ही नहीं धर्म का जीवन भी जीना है। अपनी आत्मा को निर्मल एवं पवित्र बनाना है इसके लिए तप का जीवन जीना है। हमारी साधना आत्मशुद्धि के लिए होनी चाहिए।
कार्यक्रम का शुभारंभ पूजा संचेती के मंगलाचरण से हुआ। स्वागत भाषण सभा अध्यक्ष सुशील संचेती ने दिया। तेयुप, गुलाबबाग अध्यक्ष मोहित संचेती, महिला मंडल, ज्ञानशाला परिवार, कन्या मंडल, अभातेयुप अध्यक्ष पंकज डागा, महासभा उपाध्यक्ष नेमीचंद बैद, नेपाल-बिहार सभा अध्यक्ष भैरुदान भूरा, पूर्णिया क्षेत्र के विधायक विजय खेमका, वर्षीतप परिवार से विजय चोपड़ा, नीलू हागा, बरड़िया बहन-बेटी, प्रिया सेठिया-नीतू डागा ने विचारों की अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ सभा, गुलाबबाग द्वारा वर्षीतप करने वाले सुशील रामपुरिया, संगीता सेठिया, सरला बरड़िया, इंद्र चोपड़ा का अभिनंदन पत्र, साहित्य के द्वारा सम्मान किया गया। आभार ज्ञापन सभा मंत्री सुनील भंसाली ने किया। सम्मान संयोजन सभा उपाध्यक्ष मनोज पुगलिया ने किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि बिमलेश कुमार जी ने किया।