
अक्षय तृतीया शौर्य, श्रेयस और समरस का प्रतीक
बायतु।
साध्वी जिनबाला जी के सान्निध्य में अक्षय तृतीया का आयोजन तेरापंथ भवन, बायतु में किया गया। महिला मंडल सहमंत्री जसोदा छाजेड़ ने भगवान ऋषभ को समर्पित गीतिका के माध्यम से कार्यक्रम का मंगलाचरण किया। साध्वी जिनबाला जी ने कहा कि अक्षय तृतीया पर्व जैन धर्म में जिस रूप में मनाया जाता है उसके तीन प्रतीक चिÐ हैंµऋषभ, श्रेयांस और इक्षुरस। ऋषभ शौर्य के प्रतीक हैं, श्रेयांस श्रेयस के प्रतीक हैं और इक्षुरस समरस, समता का प्रतीक है। आज के इस पर्व पर हमें शक्ति, शौर्य, श्रेयस व समरस में रमण करने की प्रेरणा मिलती है। यदि हम अपने जीवन में शक्ति, श्रेयांस, समरस को अपनाने की कोशिश करेंगे तो इस पर्व को मनाने की सार्थकता सिद्ध हो सकती है।
साध्वी करुणाप्रभा जी ने कहा कि भगवान ऋषभ को केवल जैन समाज ही नहीं अपितु वैष्णव व मुस्लिम समाज के लोग भी मानते हैं। भगवान ऋषभ से संबंधित इतिहास की जानकारी देते हुए आपने अक्षय तृतीया के पर्व के महत्त्व की जानकारी दी। साध्वी भव्यप्रभाजी ने भगवान ऋषभ को एक महासंकल्पी बताते हुए किस प्रकार उन्होंने कर्मयुग व धर्मयुग का प्रवर्तमन किया उसके बारे में बताया। तेममं की महिलाओं ने भगवान ऋषभ को समर्पित सामूहिक गीत की प्रस्तुति दी। कन्या मंडल व ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने संयुक्त रूप से अक्षय तृतीया के इतिहास को लघु नाटिका के माध्यम से प्रस्तुति देकर जनता को मुग्ध कर दिया।
सुखदान चरण व कन्या मंडल संयोजिका कोमल भंसाली ने गीत व भाषण के माध्यम से आदिनाथ प्रभु की अभ्यर्थना की। कार्यक्रम में जैन समाज के साथ-साथ जैनेत्तर समाज के लोगों की उपस्थिति रही। मंच संचालन साध्वी प्राचीप्रभा जी ने किया।