अक्षय आनंद और अक्षय शक्ति की हो प्राप्ति: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अक्षय आनंद और अक्षय शक्ति की हो प्राप्ति: आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यप्रवर की सन्निधि में 1151 तपस्वियों ने किया पारणा
डायमंड नगरी में ऐतिहासिक अक्षय तृतीया कार्यक्रम का भव्य आयोजन

भगवान महावीर यूनिवर्सिटी, सूरत, 23 अप्रैल, 2023
वैशाख शुक्ला तृतीया, अक्षय तृतीया, आखा तीज का दिन श्रमण संस्कृति से जुड़ा दिन है तो सनातन परंपरा से भी जुड़ा दिन है। कहा जाता है कि आज के दिन त्रेता युग का प्रारंभ हुआ था। श्रमण जैन परंपरा में आज का दिन वर्तमान जम्बुद्वीप की अवसर्पिणी काल के भरत क्षेत्र के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान ऋषभ से जुड़ा दिन है।सूरत में अक्षय तृतीया का विशेष महोत्सव श्रमण परंपरा के शिखर पुरुष आचार्यश्री महाश्रमण जी की पावन सन्निधि एक ऐतिहासिक घटना होने जा रही है। लगभग 1151 वर्षीतप के पारणे तेरापंथ धर्मसंघ में प्रथम बार परम पुरुष के सान्निध्य में होने जा रहा है। लगभग 55 हजार से भी अधिक श्रावक समाज की उपस्थिति। एक व्यवस्थित रूप से इतने पारणे सूरत में पहली बार होने जा रहे हैं।
इस पावन अवसर पर तेरापंथ के वर्तमान सरताज महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल अमृत देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि शास्त्र की वाणी है-ज्ञान से भावों को जानता है, दर्शन से उस पर श्रद्धा करता है। चारित्र से निग्रह करता है, तप से परिशोधन करता है। चतुरंग मोक्ष मार्ग है-ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप। आज अक्षय तृतीया का दिन एक तप की सानंद संपन्नता का दिन है। परम तपस्वी परमात्मास्वरूप भगवान ऋषभ की आंशिक तपस्या की संपन्नता का दिन भगवान ऋषभ इस भरत क्षेत्र के वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर हुए। पहले उन्होंने लौकिक सेवा के कार्य, सावद्य कार्य भी उन्होंने अपने प्रशिक्षण के विषय बनाए।
एक प्रश्न होता है कि इतने ज्ञानी पुरुष जो तीर्थंकर होने वाले है, इन सांसारिक कार्यों में अपना समय क्यों लगाया। भूमिका-भूमिका में अंतर होता है। जहाँ भूमिका व दायित्व का संबंध होता है, वहाँ सावद्य को गौण कर दिया जाता है, कर्तव्य निर्वाह को मुख्यता दी जा सकती है। भगवान ऋषभ ने ऐसा ही किया। वे जानते थे कि ये असि-मसि सावद्य कार्य है, परंतु उन्होंने लोकानुकंपा व कर्तव्य निर्वाह के लिए सावद्य कार्य भी किया। धर्मनीति के आदि पुरुष के रूप में भी भगवान ऋषभ थे। चैत्र कृष्णा अष्टमी के दिन वे महान संत बन गए। दीक्षा के साथ ही उनके वर्षीतप सहज में प्रारंभ हो गया। वर्तमान में भी वर्षीतप की साधना करने वाले चैत्र कृष्णा अष्टमी से ये तप प्रारंभ करते हैं। उनको उपयुक्त भिक्षा नहीं मिली थी। तपस्या करते-करते आज के दिन उनको भिक्षा मिली। इक्षुरस से उनका आज के दिन पारणा हुआ।
अक्षय तृतीया वर्षीतप संपन्नता का दिन है, तो दान दिवस भी है। श्रेयांस कुमार ने भगवान ऋषभ को इक्षुरस का दान दिया था। इक्षुरस में मिठास है, तो हमारी वाणी में भी मिठास हो। यहाँ या बाहर जिन्होंने वर्षीतप की साधना की है, वे आध्यात्मिक अनुमोदना के पात्र हैं। साधु-साध्वियों, समणियों ने भी वर्षीतप किया है। विहार के साथ वर्षीतप की साधना विशेष बात हो जाती है। कई-कई वर्षीतप के बीच में लंबी तपस्या भी कर लेते हैं। पर वर्षीतप का खंडन न हो। वर्षीतप तो बड़ा सुंदर और सुगम तप है। काम के साथ तप भी चलता रहता है। पूज्यप्रवर ने वर्षीतप के 8 नियम बताए-(1) प्रतिदिन ¬ ऋषभायः नमः की ग्यारह माला, (2) आधा घंटा रोज ध्यान, (3) एक घंटा रोज मौन, (4) ब्रह्मचर्य की साधना, (5) सचित एवं छः जमीकंद का त्याग, (6) पारणे के दिन चौविहार या तिविहार, (7) रोज एक बार प्रतिक्रमण या एक घंटा स्वाध्याय-जप करना, (8) क्षमा की साधना। एक दिन भी कठोर भाषा का प्रयोग हो जाए तो उस दिन नमक, चीनी या लाल मिर्च का सेवन का पूर्णतया वर्जन।
अक्षय शब्द बड़ा सुंदर है। हमारा सम्यक् ज्ञान, दर्शन, आनंद, अनंत शक्ति अक्षय हो। आचार्य भिक्षु से संबंधित हमारा धर्मसंघ है। गुरुदेव तुलसी के समय शुरू हुई ये पारणे की व्यवस्था निरंतर चल रही है। जैसी वर्षीतपस्वियों की पंक्ति लगी है, वैसी पंक्ति हमारे साधु-साध्वियाँ वैरागियों-मुमुक्षुओं की भी लगा दें तो और विशेष बात हो सकती है। मुमुक्षु निर्माण का भी प्रयास हो।
आज ही के दिन चार वर्ष पहले मेरे दीक्षा प्रदाता मंत्री मुनि सुमेरमलजी स्वामी का महाप्रयाण हो गया था। मैं उनका श्रद्धा के साथ स्मरण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। बहुश्रुत परिषद के वे पहले संयोजक थे। उनके द्वारा दीक्षित चारों संत वर्तमान में यहाँ पर उपस्थित हैं। वे धर्मसंघ के वरिष्ठ मुनि थे। आज के कार्यक्रम में राजनीति के लोग भी उपस्थित हुए हैं। गुजरात के गृहराज्य मंत्री हर्षभाई सिंघवी यहाँ उपस्थित हैं। भगवान ऋषभ से राजनीति की भी पवित्र प्रेरणा मिलती रहे। सूरत में वर्षीतप पारणे की भव्य परिषद है। हम सभी में अपने-अपने ढंग से तपस्विता का, साधना का विकास होता रहे। भगवान ऋषभ से तप की प्रेरणा लेते रहें।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि अक्षय तृतीया लौकिक और लोकोत्तर पर्व है। स्वयं सिद्ध मुहूर्त है। जैन धर्म में आज का दिन तपस्या से जुड़ा दिन है। भारतीय परंपरा में तपस्या का महत्त्व है। तप से 8 प्रकार कर्म शिथिल हो कट जाते हैं। आत्म शुद्धि हो जाती है। गुरु की ऊर्जा व आशीर्वाद से तपस्वी आगे बढ़ सकता है। पूज्यप्रवर के शब्दों में शुभ योग भी तप है।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि दो प्रकार के व्यक्ति होते है।-अनुशरण करने वाले और पथदर्शन करने वालो। पथदर्शन करने वाले का महत्त्व होता है। भगवान ऋषभ ने जनता को पथदर्शन दिया। लोगों को समाज व्यवस्था का ज्ञान दिया। लोकोत्तर ज्ञान देने के लिए उन्होंने अभिनिष्क्रमण भी किया। ये प्रथम राजा, प्रथम साधु और प्रथम अर्हत् बने। मुख्य मुनि महावीर कुमार जी ने कहा कि भगवान ऋषभ को मानव सभ्यता का आदि पुरुष कहा जाता है। वे प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने लोगों को सामुदायिक जीवन जीने की प्रेरणा दी। आत्म धर्म की भी प्रेरणा दी। तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यप्रवर विराजमान हैं। सभी तपस्वियों की आध्यात्मिक अनुमोदना।
पूज्यप्रवर के श्रीमुख से मंत्रोच्चार के मंगल उच्चारण से कार्यक्रम शुरू हुआ था। वर्षीतप का पारणा करने वालों में 12 वर्ष से लेकर 25 वर्ष के युवा थे तो 90 वर्ष के वृद्ध भी थे। लगभग 1151 तपस्वियों ने पूज्यप्रवर को ईक्षुरस का दान देकर धन्यता का अनुभव किया। पूज्यप्रवर ने वर्षीतप करने वाले साधु-साध्वियों को पारणा करवाया। नए वर्षीतप शुरू करने वालों को पूज्यप्रवर ने संकल्प ग्रहण करवाए। गुजरात गृहराज्य मंत्री हर्षभाई संघवी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। पारणा स्थान उपलब्ध कराने वाले मनहर भाई, शंकरभाई ने पूज्यप्रवर के दर्शन किए। अपनी भावना भी अभिव्यक्त की। 2024 अक्षय तृतीया औरंगाबाद में होने वाली है। औरंगाबाद अक्षय तृतीया 2024 के बैनर का अनावरण श्रीचरणों में हुआ। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।