संपादकीय

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हे मन मंदिर के देवता हम तुमको आज बधाएँ
हे मन मंदिर के देवता हम तुमको आज बधाएँ।
तुलसी कृति अरु महाप्रज्ञ पट्टधर हम तेरे गौरव गाएँ।
दसों दिशाओं में तेरा यश गूँजे करो युगों तक तुम शासना।
दीक्षा कल्याणक के अवसर पर बस यही है शुभकामना।।

सूरज जब प्रातः उदय होता है तो रात के घनघोर अंधेरे को क्षण-भर में दूर कर देता है। सूर्य जब अपनी रोशनी देता है तो वह धर्म-संप्रदाय नहीं देखता चहूँ ओर अपनी रोशनी से प्रकाश फैलाता है। तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता महासूर्य की भाँति अपनी आध्यात्मिक रोशनी से संपूर्ण मानव जाति का कल्याण कर रहे हैं। सूर्य तो 12 घंटे ही अपनी रोशनी देता है परंतु आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रतिदिन 16 से 18 घंटे जन-जन के कल्याण के लिए लगा रहे हैं। अतः आपको आध्यात्मिक जगत का महासूर्य कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। 50 वर्ष पूर्व जब बालक मोहन ने सरदारशहर में संयम पथ अंगीकार किया था तो शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि यह साधारण बालक मुनि मुदित से युगप्रधान आचार्य महाश्रमण का सफर तय करेगा। यह सफर विरले व्यक्तित्व ही तय कर पाते हैं। आपकी संघ भक्ति, गुरु के प्रति निश्चल समर्पण, कर्तव्यनिष्ठा, सेवा भावना आपको इस पथ की ओर लेकर गई। आचार्य तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञ का आप पर अटल विश्वास और स्नेह था कि उन्होंने संघ की बागडोर बेफिक्र होकर आपके करकमलों में सौंपी। आचार्यद्वय ही नहीं अपितु संपूर्ण धर्मसंघ आपकी शासना में निश्चिंतता का अनुभव करा रहा है।
आपके जीवन को देखें तो ऐसा लगता है कि 12 के अंक का अनूठा संयोग है। जीवन के हर 12 वर्ष बाद कोई न कोई विशेष दायित्व आपने संभाला है। 12 वर्ष की वय में दीक्षा, 24 वर्ष की आयु में महाश्रमण पद, युवाचार्य महाप्रज्ञ के अंतरंग सहयोगी, 36 वर्ष की उम्र में युवाचार्य मनोनयन, 48 वर्ष के अवसर पर आचार्य पदाभिषेक और 60 वर्ष के उपलक्ष्य में युगप्रधान।---सचमुच में अद्भुत संयोग। आचार्य पदाभिषेक के पश्चात् आपने फरमाया कि सबसे पहले मैं सेवा केंद्रों की संभाल करूँगा। सेवाकेंद्र तेरापंथ धर्मसंघ के वह तीर्थ हैं जहाँ 100 वर्षों से भी अधिक समय से अनवरत साधु-साध्वियाँ विद्यमान हैं। अपने साधु-साध्वियों को संभालने स्वयं आचार्य पधारे इससे बड़ी सेवा भावना की बात क्या हो सकती है। नमन आपकी सेवा भावना को।
आचार्य पदारोहण के पश्चात जब आपने सुदूर यात्रा की घोषणा की तब शायद आपका सेवा केंद्रों की सार-संभाल के पश्चात यह उद्देश्य रहा होगा कि देश-विदेश के श्रावक समाज की भी सार-संभाल करें। लाल किले की प्राचीर से प्रारंभ हुई अहिंसा यात्रा नेपाल, भूटान और भारत के 20 राज्यों से गुजरी और आपने हर जगह श्रावक समाज की अच्छी सार-संभाल की। इस यात्रा में अनेक विघ्न-बाधाएँ आई परंतु समता के परम साधक ने अडिग रहते हुए संपूर्ण श्रावक समाज को समता का पाठ पढ़ाया। नेपाल प्रवास के दौरान भूकंप की त्रासदी भी आपके चेहरे पर शिकन नहीं ला सकी। समता का इससे बड़ा क्या उदाहरण हो सकता है। समता के साधक को सादर प्रणाम।
अहिंसा यात्रा के दौरान आपने संघ को अनेकों आश्चर्य भरे दृश्य दिखाए। साध्वीवर्या पद का सृजन हो या मुख्य मुनिपद का सृजन, दोनों ही पद सामान्य व्यक्ति की कल्पना से बाहर की बात थी परंतु आपने संघ को इस तरह के उपहार देकर विस्मित कर दिया। आज इन दोनों विभूतियों को देखकर संपूर्ण संघ भविष्य के लिए आश्वस्त है। ऐसे कर्तव्यनिष्ठ आचार्य को सादर प्रणाम। कीर्तिमानों की बात करें तो शायद आप ही वो विरले आचार्य हैं जिन्होंने अपने आचार्य काल के प्रथम 10 वर्षों में दो-दो गुरुओं का शताब्दी वर्ष मनाया। शताब्दी वर्ष के अवसर पर 100 दीक्षा का संकल्प सभी को असंभव लग रहा था, परंतु बीदासर में 43 दीक्षाओं वाला वृहद् दीक्षा महोत्सव देखकर सबके मुख से एक ही बात निकल रही थी कि हम सौभाग्यशाली हैं कि हमें ऐसे पूजी महाराज मिले। वंदन कीर्तिधर आचार्य प्रवर को।
आपकी विनम्रता की गहराई की थाह पाना सचमुच में आम इंसान के वश की बात नहीं है। साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी को शासनमाता का अलंकरण देना और उसके पश्चात जब असाध्य बीमारी की वजह से शासनमाता दिल्ली पधारी और उनकी स्थिति दिन-प्रतिदिन नाजुक होती जा रही थी तब उनके मुख से निकला कि गुरु दर्शन की अभिलाषा है। जब गुरुदेव को यह बात ज्ञात हुई तो आपने प्रलंब विहार करते हुए शासनमाता को दर्शन दिए। केवल दर्शन ही नहीं दिए, धर्मसंघ के अधिशास्ता द्वारा वंदना करना इतिहास की दुर्लभ घटना बन गई। शासनमाता को दर्शन सेवा के साथ आत्मलोचन करवाकर पवित्रता से अभिष्णात कर दिया। गुरुदेव की यह यात्रा स्तुतीय और स्मरणीय बन गई। वंदन विनम्रता की प्रतिमूर्ति आचार्यप्रवर के चरणों में।
शासनमाता के प्रयाण के पश्चात उनके स्थान पर मुख्य नियोजिका साध्वी विश्रुतविभा जी को साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी के रूप में स्थापित कर आपने संपूर्ण साध्वी समाज और श्रावक समाज को आश्वस्त कर दिया। मुख्य मुनि महावीर कुमार जी को बहुश्रुत परिषद का संयोजक मनोनीत कर उत्कृष्ट कर्तव्यनिष्ठा को साक्षात दिखाया। वंदन कर्तव्यनिष्ठ महापुरुष महाश्रमण को। हम कीर्तिधर आचार्यों के नाम सुनते थे परंतु आपश्री की संयम यात्रा और आचार्य काल में हम कीर्तिमान रचते हुए आपको देख रहे हैं। सूरत के अक्षय तृतीया अवसर पर 1151 लोगों द्वारा पारणा करना भी तेरापंथ धर्मसंघ में इतिहास दुर्लभ है। आचार्यप्रवर हम यही कामना करते हैं कि आप स्वस्थ रहें, निरामय रहें और युगों-युगों तक धर्मसंघ और मानव जाति को जीवन की सही राह प्रदान करते रहें। आपके संयम पर्याय के शतक के हम साक्षी बनें, यही कामना---।
संघ पुरुष शतायु हो। संघ पुरुष चिरायु हो।