नास्तिक नहीं, आस्तिक विचारधारा का अनुसरण करें: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

नास्तिक नहीं, आस्तिक विचारधारा का अनुसरण करें: आचार्यश्री महाश्रमण

उधना, 1 मई, 2023
मजदूर दिवस और गुजरात स्थापना दिवस पर अमृत की वर्षा से अध्यात्म के अंकुर को प्रस्फुटित करते हुए अमृत पुरुष आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि दो विचारधाराएँ हैंµआस्तिक और नास्तिक विचारधारा। आस्तिक विचारधारा में आत्मा और शरीर को पृथक्-पृथक् माना जाता है। आत्मा स्थायी है, शरीर अस्थायी है। आत्मा अनंत जन्म ले चुकी है और आत्मा का हमेशा अस्तित्व रहेगा। जबकि शरीर विनाशधर्मा है। पुनर्जन्म का सिद्धांत आत्मा और शरीर अलग-अलग हैं, इस सिद्धांत पर टिका हुआ है। अन्य जीव, अन्य शरीर यह आस्तिकवाद का सिद्धांत है। नास्तिक विचारधारा का सिद्धांत हैµजो जीव है, वह शरीर ही है।
आस्तिकवाद के सिद्धांत पर अध्यात्मवाद टिका हुआ है। खाओ, पीओ, मौज करो, यह विचारधारा नास्तिकवाद पर टिकी हुई है। एक तरफ अध्यात्मवाद है, दूसरी तरफ भौतिकवाद है। राजा परदेशी भी नास्तिकवाद विचारधारा वाला व्यक्ति था। पर था जानकार-तार्किक व्यक्ति। परंतु राजा परदेशी का भाग्य था कि कुमार श्रमण केशी का योग मिल गया। मानो लोहे को पारस का स्पर्श मिल गया, सोना बन गया। कुमार श्रमण केशी के योग से राजा परदेशी नास्तिक से आस्तिक बना और श्रावक बन गया।
जैन दर्शन में आत्मा और शरीर को अलग-अलग माना गया है। प्रेक्षाध्यान साधना पद्धति में कायोत्सर्ग के प्रयोग में भेद विज्ञान का प्रयोग कराया जाता है। भगवान महावीर ने इतनी तपस्या की तो उनका विशेष प्रयोजन रहा होगा तभी कैवल्य को प्राप्त हुए। जब आत्मा और शरीर अलग हों, तभी साधना का महत्त्व हो सकता है। साध्वीप्रमुखा गुलाबांजी ने तो जीवन के आठवें वर्ष में दीक्षा ग्रहण कर ली थी। लंबा संयम पर्याय साध्वी बिदामाजी विद्यमान हैं। आस्तिकवाद है, तभी चारित्र ग्रहण किया जाता है, सार्थकता सिद्ध हो सकती है। आदमी जीवन में तथ्य को खोजे, यथार्थ पर विश्वास रखे। दुराग्रह न रखे। यह सम्यक्त्व को पुष्ट करने वाला तत्त्व है कि वही सत्य है, वह सत्य ही है, जो जिनेश्वर ने प्रवेदित किया है। कषाय की मंदता हो, यह सम्यक्त्व पोषक है। तत्त्व को अनाग्रह भाव से समझें। इन सबसे हमारा सम्यक्त्व पुष्ट रहेगा।
पूज्यप्रवर ने किशोर मंडल व कन्या मंडल के सदस्यों को धारणा अनुसार प्रत्याख्यान करवाए। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति दिन भर में अनेक क्रियाएँ करता है, उनमें सोचने की क्रिया सबसे अधिक होती है। जीवन का महत्त्वपूर्ण घटक हैµचिंतन करना। यह भी एक कला है। सफल और सार्थक जीवन सकारात्मक चिंतन की कला से जीया जा सकता है। नकारात्मक चिंतन आदमी को दुखी बना सकता है। आचार्यप्रवर का हमेशा सकारात्मक चिंतन होता है, तभी इतने लोग आकर्षित हो रहे हैं।
पूज्यप्रवर के स्वागत में स्थानीय सभाध्यक्ष बसंतीलाल नाहर, तेयुप अध्यक्ष सुनील चिंडालिया, महिला मंडल अध्यक्षा जसुबाई, उधना ज्ञानशाला ने आचार्यश्री महाश्रमण जी के जीवन पर प्रकाश डाला तथा अड़ाजन ज्ञानशाला ने गीत प्रस्तुत किया। लिंबायत ज्ञानशाला ने सम्यक्त्व और पांडेसरा ज्ञानशाला ने आचार्य भिक्षु पर सुंदर प्रस्तुति दी। महिला मंडल ने समूह गीत प्रस्तुत किया। तेरापंथ समाज ने समूह गीत से अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। साध्वी लब्धिश्री जी एवं समणी हर्षप्रज्ञा जी ने भी आचार्यश्री के श्रीचरणों में अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।