गुणों के आकार आचार्यश्री महाश्रमण
जीवन के ग्यारहवें बसंत में एक नन्हे किशोर के जिज्ञासु मानस में अध्यात्म के रहस्य को जानने की उत्कंठा जागृत हुई। मंत्री मुनि सुमेरमल जी स्वामी के सान्निध्य एवं प्रवचन पाथेय से उसे पोषण मिला। प्रेरणा पीयूष पाकर हृदय वैराग्य से ओत-प्रोत हो गया। परिजनों के समक्ष हृदय की भावना को प्रस्तुत किया। बड़े भ्राता सुजानमलजी ने परीक्षण की कसौटी पर कसा। माता नेमां देवी की अनुज्ञा पाकर जीवन के बारहवें बसंत में संयमश्री का वरण किया। शक्तिशाली गुरु के चरणों में जीवन डोर को समर्पित करके निश्चिंतता का अनुभव किया। अनुशासन संवलित गुरुदेवश्री तुलसी के स्नेहिल संरक्षण में बालमुनि मुदित कुमार की संयम यात्रा का शुभारंभ हुआ।
गुरु की पारखी नजरों ने बाल के भाल पर अंकित भविष्य के आलेख को पड़ा। मन प्रसन्नता से भर गया। विधाता की सुदूरदर्शी निगाहें प्रतिभा के निर्माण पर केंद्रित हो गई। धीरे-धीरे विनय, समर्पण और अनुशासन के सोपान पर आरूढ़ हो वही प्रतिमा अपने आराध्य के हृदय में आसन जमाकर अवस्थित हो गई। एक ओर आध्यात्मिक अनुशासन तो दूसरी ओर हार्दिक समर्पण। एक ओर कुशल गति संचालक मार्गद्रष्टा तो दूसरी ओर श्रम निष्ठा व स्थितप्रज्ञता। उर्वरा धरती पर विकास की पौध लहलहाने लगी। प्रज्ञा की पारदर्शिता बिखरने लगी। सफलता साक्षात्कार के लिए लालायित हो उठी। सपनों के अनुरूप उभरती तस्वीर को देख सृष्टा का मन संतुष्टि से भर गया। कलाकार के सुदक्ष हाथों ने सुनहरे रंगों से उसे सुसज्जित कर अपने उत्तराधिकारी आचार्य महाप्रज्ञ को महनीय कृति सौंप निश्चिंत बना दिया।
अटूट श्रमनिष्ठा, आचारनिष्ठा, मर्यादानिष्ठा, कर्तव्यनिष्ठा एवं दायित्वनिष्ठा देखकर योगक्षेम वर्ष में आचार्य तुलसी ने आपको ‘महाश्रमण पद’ पर नियुक्त कर चतुर्विध धर्मसंघ में प्रतिष्ठित किया। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने अर्हताओं का संप्रेषण प्रारंभ कर दिया। 14 सितंबर, 1997 में भाद्रव शुक्ला द्वादशी को गंगाशहर में हजारों की उपस्थिति में युवाचार्य पद पर नियुक्त किया।
आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के प्रत्येक कार्य में आप सहयोगी रहे। चाहे वह कार्य अंतरंग विचार-विमर्श का हो या साधु-साध्वियों की सारणा-वारणा का हो। समण श्रेणी की सार-संभाल का हो या श्रावक समाज के मार्गदर्शन का हो। प्रवचन का हो या गोचरी-दर्शन का हो। कार्य छोटा हो या बड़ा हर कार्य में सदा आपने समर्पित भाव व निष्ठा से अपनी शक्ति और श्रम का सदा उपयोग किया। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने कई बार फरमायाµवह आचार्य सौभाग्यशाली होता है जिसे योग्य उत्तराधिकारी मिले। मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि मुझे योग्य उत्तराधिकारी मिला है। जनता या समाज को इस बात की प्रसन्नता है कि उन्हें अच्छा भविष्य मिला है। योग्य युवाचार्य मिले हैं। महाश्रमण ने मुझे पूर्ण निश्चिंत बना दिया है। बहुत हल्का बना दिया। आचार्य महाश्रमणजी का जीवन पुरुषार्थ और निश्छल व्यक्तित्व का जीवंत दर्शन है। बालक मोहन से मुदित, मुनि मुदित से महाश्रमण, महाश्रमण से युवाचार्य महाश्रमण एवं आचार्य महाश्रमण तक की यात्रा श्रमनिष्ठा की बेजोड़ मिसाल है। किसी कवि ने कहा है-
धुन के पक्के कर्मठ मानव,
जिस पथ पर बढ़ जाते हैं।
एक बार तो रौरव को भी,
स्वर्ग बना दिखलाते हैं।।
श्रमनिष्ठा के साथ आपका जीवन सरलता की बेजोड़ नज़ीर है। आचार्य पद पर सत्तासीन होने के बावजूद भी आपका हृदय बच्चे की तरह सहज सरलता के पवित्र रस से आप्लावित है। छल, प्रपंच एवं कृत्रिमता के मुखौटे से अनावृत्त आपकी चेतना साम्यभाव में अवस्थित है बनावटीपन आपको कतई पसंद नहीं है। ‘मृदुनी कुसुमाऽपि’ यह उक्ति आपके जीवन में स्पष्ट चरितार्थ है। नैसर्गिकता के साथ कोमलता आपको विरासत में मिली है। आचार्य महाश्रमण प्रबल पुण्योदय के धारक हैं। जिन्हें दो-दो युगप्रधान आचार्यों की संघ संपदा, शिष्य संपदा, अनुभव संपदा एवं अनुशासन के विशिष्ट गुरु विरासत में मिले हैं। ऐसा विनीत समर्पित चतुर्विध धर्मसंघ मिला है। तेरापंथ धर्मसंघ धन्य है। जिसे ऐसे तेजस्वी, यशस्वी, ओजस्वी एवं तपस्वी अनुशास्ता की अनुशासना मिली है। जिनके आभावलय की शीतल छाया में धर्मसंघ गति से प्रगति शिखर पर आरोहण कर रहा है।