मोक्ष की साधना के लिए त्याग व संयम जरूरी: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मोक्ष की साधना के लिए त्याग व संयम जरूरी: आचार्यश्री महाश्रमण

भगवान महावीर यूनिवर्सिटी, वेसु-सूरत, 26 अप्रैल, 2023
तेरापंथ के राजेंद्र आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि चतुर्दशी के दिन हमारे यहाँ मर्यादाओं का वाचन यथा-संभवतया चलता है। हाजरी में एक बात आती हैµत्याग धर्म, भोग अधर्म। तेरापंथ के दर्शन-सिद्धांत की यह बात है। त्याग धर्म होता है, असंयमपूर्वक भोग अधर्म होता है। जीवन में पदार्थों का उपयोग भी करना होता है। भोग शरीर के लिए पोषक भी होता है और दोषकारक भी बन सकता है। जबकि त्याग सामान्यतया आत्मा के लिए हितकर होता है। आदमी जीवन में त्याग करे। वाणी का संयम करे। मौन उन्नयन की ओर ले जाने वाला होता है। मौखर्य अच्छा नहीं होता है। खाने में भी संयम हो।
यहाँ शिविरार्थी बैठे हैं। इस बात का ध्यान रखें कि बोलना भी अच्छा होता है, तो मौन रहना भी अच्छा होता है। कम बोलने से कई झंझट टल जाते हैं। जीवन में कलह न करें, शांति रखें। यह एक प्रसंग द्वारा समझाया कि वाणी में मिठास हो। त्याग-संयम जीवन में बढ़ता रहे। छोटे-छोटे त्याग गृहस्थ करते रहें। जीवन में सादगी हो। अणुव्रत से जीवन में सादगी व धर्म आ सकता है। जैन-अजैन कोई भी अणुव्रत का पालन कर सकता है। हमारे जीवन में सम्यक्त्व रहे। आचार्य-उपाध्याय तो तीसरे जन्म में मोक्ष ही चले जाते हैं। साधु के जीवन में सम्यक् आराधना हो तो वे 15वें भव में मोक्ष जा सकते हैं। जितना त्याग अच्छा होगा, जितनी साधना होगी, उतना ही कषाय कम होगा। मोक्ष की साधना हो सकती है। हमारी कषायमंदता बढ़े।
संस्कार निर्माण शिविर के जो बच्चे हैं, उनका अच्छा जीवन निर्माण होता रहे। पूज्यप्रवर ने कन्या मंडल की प्रस्तुति पर आशीर्वचन फरमाया एवं नया ज्ञान सीखने की प्रेरणा दी। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि जीवन जब तक सिद्धत्व को प्राप्त नहीं कर लेता, चारों गतियों का परिभ्रमण चलता रहता है। उसका आधार उसकी भावधारा है। भाव सकारात्मक व नकारात्मक होते हैं। नकारात्मक भाव अशुभ योग की दिशा में व सकारात्मक भाव शुभ योग की दिशा में ले जाने वाला होता है। जैसी भावधारा-लेश्या में मृत्यु होती है, उसी के अनुसार उसकी आगे की गति होती है। हम निरंतर जागृत रहें ताकि हमारा वर्तमान जीवन अच्छा रहे।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि इस अध्रुव संसार में दुःख बहुत हैं। जन्म, बुढ़ापा, रोग और मृत्यु दुःख है। संसार में दुःख हैं, दुःख के हेतु हैं और दुःख निवारण के हेतु भी हैं। इच्छाओं से व्यक्ति दुखी हो सकता है। इच्छाओं का अंत हो जाने से दुःख का अंत-निर्वाण हो सकता है। बारह व्रतों को समझकर अपने जीवन में अंगीकार करने से इच्छाएँ सीमित हो सकती हैं। साध्वी त्रिशला कुमारी जी की सहवर्ती साध्वियों ने पूज्यप्रवर की अभिवंदना में गीत की प्रस्तुति दी। कन्या मंडल द्वारा गीत एवं नवतत्त्व पर सुंदर प्रस्तुति हुई। कन्याओं ने संकल्पों का रजोहरण पूज्यप्रवर को समर्पित किया। पूज्यप्रवर ने निरवद्य संकल्प स्वीकार करवाए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।