दुखों से मुक्ति के लिए अध्यात्म साधना करें: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

दुखों से मुक्ति के लिए अध्यात्म साधना करें: आचार्यश्री महाश्रमण

सरघोण, सूरत, 10 मई, 2023
विकास पुरोधा आचार्यश्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ अणुव्रत यात्रा के रूप में सरघोण ग्राम में पधारे। आचार्यप्रवर ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि मनुष्य के जीवन में बुढ़ापा भी शरीर में आ जाता है, बीमारी भी लग जाती है और मृत्यु अवश्यंभावी है। इस संसार में बुढ़ापा, बीमारी, मृत्यु और जन्म को दुःख कहा गया है। प्रश्न है कि कौन हमें इन दुखों से छुटकारा दिला सकता है। शरणदाता कौन बन सकता है। शास्त्रों में कहा गया है कि तुम्हारे मित्र-परिवार के लोग तुम्हें त्राण और शरण देने वाले नहीं बन सकते और न ही तुम उनको त्राण-शरण देने वाले बन सकते हो। सेवा तो कर सकते हो। औषध की व्यवस्था कर सकते हो पर तकलीफ को दूर नहीं कर सकते। त्राण और शरणदाता तो केवल धर्म ही है।
कर्म करने वाले को अपना कर्म भोगना पड़ता है। अध्यात्म की पृष्ठभूमि में एक बात हैµसर्व दुःख मुक्ति। इसे प्राप्त करने के लिए साधना की अपेक्षा रहती है। आत्मा परमात्मा स्वरूप को पा जाए तो सर्व दुःख मुक्ति हो सकती है। एक प्रसंग द्वारा समझाया कि सीधी अंगुली से घी नहीं निकलता। तरीके से समझाकर बात दिमाग में बिठाई जा सकती है। अध्यात्म की साधना, जप, तप, योग आदि के माध्यम से मनुष्य सर्वदुःख मुक्ति की दिशा में आगे बढ़ सकता है। जीवन में सद्भावना और मैत्री भाव रखो। किसी से घृणा मत करो। प्राणी मात्र से मैत्री रखो। अहिंसा और मैत्री को सब धर्म मानते हैं। पापी से नहीं, पाप से घृणा करो। मृत्यु तो हर संसारी प्राणी को आने वाली है। धर्म की शरण लें, धर्म के मार्ग पर चलो।
अहिंसा का मार्ग शांति और संयम का मार्ग है। स्वयं पर अनुशासन करें। अणुव्रत के नियमों को तो हर कोई स्वीकार कर सकता है। अणुव्रत अंधकार में प्रकाश करने वाला एक दीया है। साधना से आदमी परमात्मा पद को प्राप्त कर सकता है। आज सरघोण आए हैं। अनेक संप्रदाय के लोग हैं। सभी में खूब धर्म की जागरणा, सद्भावना, मैत्री का भाव बना रहे। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि व्यक्ति शांति को प्राप्त कर सकता है। जब उसके कषाय मंद हो जाते हैं। क्रोध, मान, माया और लोभ शांति को भंग करने वाले हैं। इनसे व्यक्ति दुखी बन सकता है। हम कषायों को मंद करने का प्रयास करें। परमपूज्यश्री हमें कषायों को कम करने की प्रेरणा देते रहते हैं। क्रोध को उपशम से, अहंकार को मृदुता से, माया को सरलता से और लोभ को संतोष की अनुप्रेक्षा से दूर कर सकते हैं।
पूज्यप्रवर के स्वागत में महिला मंडल ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। दिलखुश बाफना, प्रदीप भाई पटेल, दिनेश ओस्तवाल ने अपनी-अपनी भावनाएँ अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर को ‘अणुव्रत पत्रिका’ का नया संस्करण अणुव्रत परिवार द्वारा उपहृत किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।