जीवन में हमेशा सत्संगत करें: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जीवन में हमेशा सत्संगत करें: आचार्यश्री महाश्रमण

अष्टगाँव, सूरत, 12 मई, 2023
तीर्थंकर के प्रतिनिधि परमपूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी अपनी अणुव्रत यात्रा के साथ अष्टगाँव पधारे। परम पावन ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि दुनिया में दो राशियाँ बताई गई हैंµजीव राशि और अजीव राशि। दोनों का इतना मिला-जुला संबंध है कि संसारी अवस्था में जीव हैं, तो अजीव भी हैं। जीव और शरीर दोनों मिले हुए हों तो जीवन की बात हो सकती है। आत्मा और शरीर इनमें आत्मा मूल तत्त्व है। जो आगे भी रहती है। शरीर तो सहायक तत्त्व है। जीव तो अकेला ही आता है और अकेला ही जाता है। यह एक तथ्य है कि मैं अकेला हूँ। मैं आत्मा हूँ। यह शरीर भी साथ नहीं चलने वाला है। यह अकेलापन अध्यात्म का बोध कराने वाला है। मैं ही कर्मों का कर्ता व भोक्ता हूँ। दूसरे सहयोग कर सकते हैं, पर जाना तो अकेले ही होगा। पूर्वकृत पुण्य होते हैं, वे आदमी की रक्षा करते हैं। वैराग्य भाव में यह एकत्व भावना अपनी भूमिका अदा कर सकते हैं। अकेलेपन का अनुभव आदमी को पापों से दूर रखने में सहयोगी बन सकता है। यह एक प्रसंग द्वारा समझाया कि पाप का फल तो स्वयं को ही भोगना पड़ता है, कोई साथ नहीं देने वाला है।
साधु की संगत से पता चल सकता है कि तुम अकेले हो। जीवन सारा बदल सकता है। पाप कर्म के बंध से बच सकता है। सत्संगत से पापी भी धर्मी बन सकता है। ‘सत्संगत से सुख मिलता है’ गीत के पद्यों का सुमधुर संगान करवाया। एकत्व की चेतना से आदमी पाप की प्रवृत्ति से बच सकता है। आज अष्टगाँव आए हैं। सिद्धों के आठ गुण होते हैं, उनको याद कर उस दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करें। पूज्यप्रवर के स्वागत में अष्टगाँव की महिलाओं ने गीत प्रस्तुत किया। मंजू, विमला मांडोत एवं नरेश कुमार मांडोत ने अपनी-अपनी भावनाएँ अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।