विश्व की महान हस्ती आचार्यश्री तुलसी
मुनि कमल कुमार
आचार्यश्री तुलसी राजस्थान और भारत की ही नहीं बल्कि विश्व की एक महान हस्ती थी। आपकी क्षमताओं को देखकर लेखक, चिंतक, राजनेता, धर्मनेता सभी श्रद्धा से नत मस्तक हो जाते। आप एक संप्रदाय के आचार्य होते हुए भी संप्रदायातीत विचार में विश्वास रखते थे। उनका चिंतन था कि संप्रदाय और धर्म भिन्न-भिन्न हैं। धर्म संप्रदाय से ऊपर है। हम आज यह साक्षात् देख रहे हैं कि सर्वत्र धर्म की जय बोलते हैं, चाहे वह किसी भी संप्रदाय में विश्वास रखता हो। आचार्यश्री तुलसी ने मानवीय गुणों की सुरक्षा के लिए ही अणुव्रत आंदोलन का सूत्रपात किया। उनका यह आंदोलन पानी में तेल बिंदु की तरह पूरे विश्व में विख्यात हो गया। लोगों से यह सुनने को मिला कि यह प्रथम आंदोलन है जो वर्ग, वर्ण, जाति, लिंग से व्यक्ति को महान या हीन नहीं मानता। मानवीय गुणों का विकास या ह्रास ही व्यक्ति को उत्थान और पतन के पथ पर ले जाता है। आचार्यश्री तुलसी ने स्वयं इस आंदोलन के प्रचार-प्रसार के लिए सुदूर प्रांतों की पैदल यात्रा की और अपने सैकड़ों साधु-साध्वियों को देश-विदेश में पैदल यात्राएँ करवाईं। अणुव्रत के विराट विचारों से प्रभावित होकर हिंदू, मुसलमान भी इसके श्रद्धा से अनुयायी बने। देश के गणमान्य लोगों ने इसके प्रचार-प्रसार में अपना भरपूर सहयोग दिया। भारत के प्रथम राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री भी इस आंदोलन से जुड़े।
मात्र 22 वर्ष की अवस्था में विशाल तेरापंथ धर्मसंघ का संपूर्ण दायित्व आपने कुशलता से संभाला। आपने संघ विकास के लिए कई आयाम दिए जो अपने आपमें अनुपम और अमर हैं। आज जो हम तेरापंथ धर्मसंघ का नवीन रूप देख रहे हैं, यह सब आचार्यश्री तुलसी की दूरदृष्टि का ही परिणाम है। तेममं, तेयुप, कन्या मंडल, तेरापंथ किशोर मंडल, ज्ञानशाला पारमार्थिक शिक्षण संस्था आदि उनकी ही देन है। आज जो हमारे सामने आगम साहित्य, अणुव्रत साहित्य, प्रेक्षाध्यान साहित्य, जीवन-विज्ञान साहित्य इतिहास, बाल साहित्य, हिंदी, संस्कृत, प्राकृत, मारवाड़ी, अंग्रेजी साहित्य जो समयानुसार आ रहा है यह सब आचार्यश्री तुलसी की सतत् प्रेरणा प्रोत्साहन का फल ही मानता हूँ। जो तेरापंथ मारवाड़, मेवाड़, हरियाणा, पंजाब, मालवा, गुजरात आदि समिति प्रांतों में ही था। आज विश्व के कोने-कोने में अपनी पहचान बना पाया है, यह भी गुरुदेव तुलसी के प्रबल पुरुषार्थ का ही सुफल है।
आपके आचार्य बनने से पूर्व साध्वियों का अध्ययन इतना गहरा नहीं था कि कोई साध्वी वक्ता, लेखक, संपादन, साहित्य निर्माण का कार्य कर सके। परंतु आपने युगानुकूल अपने उदात्त विचारों से इस प्रकार श्रम किया कि आज तेरापंथ धर्मसंघ में अनेक साध्वियाँ हर विषय में पारंगत हैं, उनके वक्तव्य साहित्य को देखकर अच्छे-अच्छे लोग भी नतमस्तक हो जाते हैं। गुरुदेव ने केवल साधु-साध्वियों का ही नहीं श्रावक-श्राविकाओं का भी इस प्रकार से निर्माण किया कि आज जहाँ साधु-साध्वियों के चातुर्मास नहीं होते वहाँ उपासक-उपासिकाएँ पहुँचकर अपने वक्तव्य और कार्यों से सबको मंत्रमुग्ध बना देते हैं। आचार्यश्री तुलसी एक ऐसे सिद्ध पुरुष थे जिन पर उनकी दृष्टि टिक जाती वह हर तरह से धन्य हो जाता। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी और शासनमाता कनकप्रभा जी ही नहीं आचार्यश्री महाश्रमण जी भी उनकी पैनी दृष्टि से प्राप्त हुए हैं। आज जब हम देश-विदेश में पैदल भ्रमण करते हैं और देखते हैं कि लोगों के दिल-दिमाग में आचार्यश्री तुलसी के प्रति जो श्रद्धा, भक्ति थी वैसी ही आज आचार्यश्री महाश्रमण जी के प्रति है, तब हमें आत्म संतोष होता है कि लोग आचार्यश्री तुलसी के शरीर के प्रति नहीं विचारों के प्रति समर्पित हैं। क्योंकि गुरुदेव कई बार फरमाया करते थे कि हम ऊपर जाकर भी देखेंगे कि लोगों की संघ के प्रति और महाश्रमण के प्रति कैसी आस्था है। हमें गौरव होता है कि आचार्यश्री तुलसी की तरह आचार्यश्री महाश्रमण जी भी संघ की सारणा-वारणा और श्रीवृद्धि के लिए जो पुरुषार्थ कर रहे हैं यह प्रशंसनीय ही नहीं सबके लिए अनुकरणीय है। भिक्षु शासन का सौभाग्य है कि समय-समय पर योग्य आचार्यों की प्राप्ति होती रहती है। जिससे यह संघ सदाजीवी, दीर्घजीवी बनता जा रहा है। आचार्यश्री तुलसी के 27वें महाप्रयाण के अवसर पर यह कामना करता हूँ कि आप उत्तरोत्तर विकास करते हुए चरम लक्ष्य को प्राप्त करें और हमें भी सदा सन्मार्ग की प्रेरणा देते रहें। जिससे हम भी स्व-पर कल्याणकारी बन सकें।