आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के जन्म दिवस पर (16 जून, 2023)
देखा वर व्यक्तित्व तुम्हारा
साध्वी नीतिप्रभा
अहर्निश चलायमान इस कालचक्र ने समय-समय पर अनेक महापुरुषों को जन्म दिया। जिनके नाम इतिहास के पृष्ठों में स्वर्णाक्षर में अंकित हैं। उन नामों में विश्व विश्रुत एक नाम था-आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी! साध्वी तन्मयप्रभा जी की कविता की एक पंक्ति कई बार याद आ जाती है-
देखा वर कर्तृत्व तुम्हारा,
देखा वर व्यक्तित्व तुम्हारा।
देखा सदा प्रभुत्व तुम्हारा,
स्नेह भरा अपनत्व तुम्हारा।।
वास्तव में उनका कर्तृत्व और व्यक्तित्व बड़ा विलक्षण था। वे उच्च कोटि के तार्किक थे, मनीषी साहित्यकार व प्रभावशाली वक्ता थे, वे योग साधक थे और उनकी प्रज्ञा को देखकर तो ऐसा लगता था कि वे सरस्वती के वृहद पुत्र ही हों। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने अणुव्रत का दर्शन लिखा, प्रेक्षाध्यान साधना पद्धति का आविष्कार किया, आगम संपादन का दुष्कर कार्य कर जैन समाज को बहुत बड़ा गिफ्ट प्रदान किया, जो सबको आश्चर्य में डालने वाला है।
आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के आगे साधना तो पीछे-पीछे तपस्या चलती थी। इनके दाएँ एवं बाएँ भाग में सेवा तथा करुणा की सरिता प्रवाहमान थी। उनके प्रदीप्त आभा मंडल से निकलने वाली दिव्य रश्मियों के दर्शन मात्र से ही न जाने कितने-कितने को समाधान मिल जाता था। धर्मनेता, राजनेता, उद्योगपति गृहपति, मजदूर, किसान, विद्यार्थी, व्यवसायी, दार्शनिक, वैज्ञानिक, समाजशास्त्री सबने आपके चिंतन, दर्शन एवं दृष्टिकोण से कोई न कोई मार्गदर्शन जरूर प्राप्त किया। अवधेशानंद गिरी ने लिखा- ‘युगप्रधान आचार्य महाप्रज्ञ दार्शनीय ही नहीं अपितु अत्यंत महनीय भी थे। ऐसा लगा मानो भगवता धरा पर अविर्भूत हुई है। अटल विहारी वाजपेयी-आचार्यश्री महाप्रज्ञ के साहित्य के अच्छे पाठक थे उन्होंने कहा-‘मैं आचार्यश्री महाप्रज्ञ को साहित्य का लोहा मानता हूँ।’
ध्यान की प्राचीन परंपरा जो प्रायः विलुप्त हो गई थी, उसे पुनः जीवित करने का श्रेय आचार्यश्री महाप्रज्ञजी को जाता है। आपने प्रेक्षाध्यान का एक सूत्र दिया-‘संपिक्खए अप्पगमप्पएणं’ उस सूत्र के द्वारा आत्मा की संप्रेक्षा करना। यह सूत्र न जाने कितनों के जीवन में उजास भर रहा है। महाप्रज्ञ की प्रज्ञा की परिक्रमा करना प्रज्ञा की अनेकों अनेक रश्मियों का साक्षात्कार करना है। महाप्रज्ञ का जीवन श्रद्धा और समर्पण का दस्तावेज था। एक विरल व्यक्तित्व आचार्य महाप्रज्ञ जी के जीवन को शब्दों में पिरोना बड़ा कठिन कार्य है। उनके जीवन की एक रश्मि को छुना भी कठिनतर है। न जाने कितने अनगिन व्यक्तियों को आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने अपने कृपा प्रसाद का आश्रय दिया होगा। डुबते को उबारा होगा। इस कलाकार की छैनी के अद्भुत कौशल ने कितने अनगढ़ पत्थर को तरासा है। वर्तमान साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी जो उन तरासे हुए पत्थर में निकली एक कृति है जो आज अहर्निश संघ में साध्वी समाज को सेवा प्रदान कर रही है। और प्रमुखा पद को सुशोभित कर रहे हैं। मुझे भी उस महायोगी! के करकमलों से सपरिवार (मुनि अजय प्रकाश जी, साध्वी नीतिप्रभा जी, साध्वी तन्मयप्रभा जी) दीक्षित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आज गुरुदेव आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी की स्नेहिल दृष्टि हमारे आध्यात्म विकास के प्राणों में ऊर्जा का संचार कर रही है। अंतर्दृष्टि को जगाने का सतत प्रयास करते रहें। भीतर का प्रकाश जगाएँ। गुरु कृपा से ऐसे वर का वरण करें।
महाप्रज्ञ का व्यक्तित्व जग में निराला था।
महाप्रज्ञ का कर्तृत्व जग में उजियाला था।
सोई चेतना को जगाने वाले पेगाम्बर।
महाप्रज्ञ प्रज्ञा का अमृत प्याला था।।