आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के 104वें जन्मोत्सव पर

आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के 104वें जन्मोत्सव पर

एक सो चारवें जन्मोत्सव की बेला आई है।
जन-जन के मानस में अभिनव खुशियाँ छाई है।
युगों-युगों तक याद करेगी जनता महाप्रज्ञ को।
आपके सुयश की बज रही सर्वत्र शहनाई है।।

कालू गुरु कर दीक्षित सतत तुलसी गुरु का साया था।
नथमल से सुश्रम कर तुलसी गुरु ने महाप्रज्ञ बनाया था।
सुदूर प्रांतों की पैदल यात्रा करके अनेक लोगों को।
अहिंसा सत्य मैत्री एकता का सबको पाठ पढ़ाया था।।

आचार्य महाप्रज्ञ सचमुच प्रज्ञा के भंडार थे।
जिज्ञासाओं के समाधान हित सक्षम आधार थे।
हम उन्हें तेरापंथ के दशवें अधिशास्ता कहते हैं।
परंतु वे एक संत रूप में सचमुच अवतार थे।।

महाप्रज्ञ जी का जीवन स्वच्छ दर्पण था।
अपने गुरु और लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पण था।
इसीलिए ही वे प्रज्ञा के अखूट भंडार कहलाए।
ज्ञान ध्यान से परिपूर्ण उनका प्रत्येक क्षण था।

उनके प्रवचन के हर शब्द में सच्चाई थी।
साधना की गहराई से ही ऐसी प्रज्ञा पाई थी।
शरणागतों को सन्मार्ग दिखाने में तत्पर रहते।
उन्होंने केवल अपनी ही नहीं मानवता की शान बढ़ाई थी।।