मानव जीवन में सेवा व साधना दोनों जरूरी: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मानव जीवन में सेवा व साधना दोनों जरूरी: आचार्यश्री महाश्रमण

सफाले, (महाराष्ट्र) 4 जून, 2023
आचार्यश्री भिक्षु के परंपर पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ सफाले पधारे। धर्मसभा में पावन पाथेय प्रदान करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि दसवेंआलियं आगम में एक जागृति का संदेश दिया गया है कि शरीर सक्षमता के रहते-रहते धर्म का समाचरण कर लो। आत्मा भिन्न शरीर भिन्न है, आत्मा अलग है, शरीर अलग है। पर दोनों मिले हुए हैं। शरीर की सक्षमता रहती है तो धर्म की साधना में सहयोग मिल सकता है। शरीर की अक्षमता तीन रूपों में हो सकती है, जब बुढ़ापा आ जाए, शरीर रोगग्रस्त और इंद्रिय शक्ति क्षीण हो जाए। इन तीनों स्थितियों में धर्माराधना में असक्षमता आ सकती है।
शरीर की सक्षमता से सेवा कार्य अच्छा हो सकता है और भी कार्य किया जा सकता है। ये शरीर एक नौका है, जीव नाविक है। यह संसार अरणव है, इसे महर्षि लोग पार पा जाते हैं। नौका निश्च्छिद्र हो तो पार पहुँचाने वाली हो सकती है। इस आत्मा में आश्रव रूपी छिद्र रहेगा तो यह नौका डुबाने वाली बन सकती है। संवर और निर्जरा हमारी ठीक चले तो भवसागर पार हो सकता है। यह मानव जीवन दुर्लभ कहा गया है, पर हमें उपलब्ध है। इसका बढ़िया उपयोग करने का प्रयास करें। बालावस्था में साधु बनना बहुत अच्छी बात है। मानव जीवन में साधना करना बड़ी बात है और सेवा एक बड़ा धर्म है। स्वाध्याय-ध्यान से भी तपस्या की जा सकती है। श्रावक सुमंगल साधना की भी आराधना करें।
जो सेवा धर्म में परायण करते हैं, वे ज्ञानी-ध्यानी से भी महान हैं। जब तक शरीर सक्षम है, तब तक सेवा का दायित्व पूरा कर लो। जितना तपस्या-सेवा से खजाना भर लें, वो अपना है। पाथेय साथ में है तो लंबा रास्ता पार हो सकता है। धर्म का टिफिन लिया है, तो आगे भी अच्छा हो सकता है। अंतिम समय में तो आदमी संथारा साधना धर्म में आए। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि सफाले में संतों का समागम हुआ है। पूज्यप्रवर से हरि कथा का श्रवण भी हुआ है। मनुष्यता की श्रेष्ठता वही कह सकता है, जिसमें निर्णय की शक्ति है। व्यक्ति में शक्ति है, तो वह विकास कर सकता है। जिसमें सोचने-समझने की शक्ति है, वह विकास कर सकता है। औत्पति की बुद्धि तो और विशेष होती है।
श्रमण संघ स्थानकवासी संघ से डॉ0 साध्वी विराग साधना जी आदि कई साध्वियाँ पूज्यप्रवर के दर्शनार्थ आईं। साध्वी विराग साधना जी ने कहा कि संतों का समागम कुछ समय के लिए होता है। लाडनूं से मैंने एम0ए0 और पीएचडी की है। लाडनूं बड़ी महत्त्वपूर्ण युनिवर्सिटी है। जब भी आप धर्म आराधना करोगे उसका आनंद लंबे समय तक मिलता है। हम रास्ता बदलकर गुरुदेव के दर्शन करने आए हैं। मुनि महेंद्र कुमार जी की सेवा करने वाले डॉ0 मुनि अजीत कुमार जी ने पूज्यप्रवर के दर्शन किए और अपनी भावना अभिव्यक्त की। सफाला के बाल योगी मुनि प्रिंस कुमार जी ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। मुनि महेंद्र कुमार जी हमारे धर्मसंघ के वरिष्ठ और आगम मनीषी संत थे। मुनि अजित कुमार जी को अग्रणी की वंदना करवाई। मुनि जंबू कुमार जी को राज में साझ के अग्रणी की वंदना करवाई।
मुनि अजित कुमार जी ने आगम जंबु प्रज्ञप्ति की संस्कृत प्रति पूज्यप्रवर को अर्पित की। भगवती सूत्र का सातवाँ व आठवाँ खंडमी प्रेम में जा चुका है, नौवाँ खंड पूरा हो चुका है, शीघ्र ही प्रेस में जाने वाला है। तीनों की प्रतियाँ पूज्यप्रवर को समर्पित की गई। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। अंग्रेजी भाषा में भी तीसरे खंड का कार्य चालू है। पाँचों संतों ने गीत की प्रस्तुति दी। मुनि मोहजीत कुमार जी ने भी पूज्यप्रवर के दर्शन किए। पूज्यप्रवर के स्वागत में सफाले सभाध्यक्ष राजेश चोरड़िया, ममता परमार, नवीन मांडोत, विद्यालय के ट्रस्टी कांतिलाल डोसी (ग्रामीण शिक्षण संस्था) ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। ज्ञानशाला की सुंदर प्रस्तुति हुई। कन्या मंडल द्वारा तेरापंथ पर सुंदर प्रस्तुति हुई। महिला मंडल ने गीत की प्रस्तुति दी।
पूज्यप्रवर की सन्निधि में साध्वी गुणवती जी एवं साध्वी सूरजकंवरी जी की संयुक्त जीवनी-तेजस्विता और शीतलता का संगम जैन विश्व भारती द्वारा लोकार्पित हुई। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में मुनि जंबूकुमार जी, मुनि अभिजीत कुमार जी, मुनि जागृत कुमार जी और मुनि सिद्धकुमार जी ने भी अपनी भावना-अनुभवों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।