आचार्य तुलसी प्रबल पुरुषार्थ के धनी थे : आचार्यश्री महाश्रमण
गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी की 25वीं पुण्यतिथि। 24 वर्ष पूर्व गुरुदेव श्री तुलसी का गंगाशहर में महाप्रयाण हो गया था। महाप्रयाण गुरुदेव तेरापंथ धर्मसंघ के नवमाधिशास्ता थे। उन्होंने पूरे विश्व में तेरापंथ धर्मसंघ का परचम लहराया था। वे तेजस्वी महापुरुष थे।
गुरुदेव तुलसी के परंपर पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने इस प्रसंग पर मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि दसवेंआलियं में आचार्य अभिवंदना कई श्लोकों के माध्यम से की गई है। श्लोक में बताया गया है कि चंद्रमा के साथ आचार्य को तुलित किया गया है, उपस्थित किया गया है।
जैसे आकाश में चंद्रमा होता है, चाँदनी से युक्त, नक्षत्र-तारागण से घिरा हुआ। इसी प्रकार गणी-आचार्य साधुओं के मध्य में चंद्रमा की तरह शोभायमान होता है। भिक्षु संघ में आचार्य की मुख्यता होती है। आचार्य की निश्रा में साधु-साध्वी संघ चलता है।
आज का दिन गणाधिपति परम पूज्य गुरुदेव तुलसी के साथ जुड़ा है आषाढ़ कृष्णा तृतीया और आचार्य तुलसी के जीवन का ये अंतिम दिन। मैं तो उस दिन का साक्षी हूँ। दिनेश जी भी थे। पहले एकांतवास कर रहे थे, बाद में तेरापंथ भवन पधारे थे। उस समय के घटना प्रसंग को विस्तार से समझाया। अंतिम दिन को पैरों की सफाई का अवसर मुझे मिला।
आज के दिन एक महान चंद्रमा अदृश्य हो गया। परम पूज्य गुरुदेव तुलसी को मैंने निकटता से देखा है, उनकी निकटता में रहने का मौका मिला है। उस व्यक्तित्व में पुरुषार्थ की चेतना अच्छी थी। कई बार रात 12 बजे तक नहीं पोढ़ाते थे। लंबी यात्राएँ की। तेरापंथ के प्रथम आचार्य थे जो कोलकाता पधारे थे, दक्षिण भारत की यात्रा की थी। बड़े समुदाय के साथ यात्राएँ की थीं।
यात्रा का परिश्रम, लोगों से संपर्क और फिर संघीय दायित्व। एक पुरुषार्थी व्यक्तित्व के रूप में मैं आचार्य तुलसी को देखता हूँ। कितनों को प्रेरणा देते थे ताकि वो विकास कर सकें। वो कहते थे, मैं ऊपर जाकर देखूँगा कि कैसे पीछे काम करते हो। आचार्य तुलसी में प्रेम भी बहुत था। बचपन में मेरे पर कड़ाई की पर बाद में मेरे पर वात्सल्य बरसाते थे। वे पथदर्शक भी थे। प्रेम, करुणा, वात्सल्य बहुत था।
उनमें प्रबुद्धता थी। लकीर के फकीर नहीं थे। आदमी को समीक्षक बुद्धि से काम करना चाहिए। जरूरी नहीं पुरानी सारी चीजें सही हो। आदमी को औचित्य और समय के अनुसार एडजस्टमेंट बैठाना चाहिए। आज के समय में सर्वाधिक उपयुक्त क्या है? वो कार्य करो। पुराने को छोड़ो कुछ नया जोड़ो। उनमें वो प्रबुद्धता थी। मानो उन्होंने अपने संघ में, अपने परिवेश में कुछ नया जोड़ दिया।
हर नई बात ठीक है, जरूरी नहीं। नई-पुरानी की समीक्षा कर लो। किसको तो छोड़ देना, क्या नया जोड़ देना, क्या यथावत चालू रखना है, इस विषय में जो प्रबुद्धता होती है, वह व्यक्ति अच्छा विकास कर सकता है। आचार्य तुलसी में ये प्रबुद्धता थी। उन्होंने आचार्य-पद को भी छोड़ दिया। आई हुई सत्ता को छोड़ना मुश्किल काम है। इस कार्य की पृष्ठभूमि को देखना तो थोड़ी गहरी बात है।
कई बार कार्य सामने आ जाता है, कारण सामने नहीं आता। यह बहुत ऊँची बात है। सत्ता को छोड़ना उनका ये त्याग-बलिदान था। तेरापंथ के इतिहास की कई बातें उनकी जानकारी में थी। तेरापंथ के सिद्धांतों के भी वो अच्छे जानकार थे।
प्राचीन राग-रागणियों का व गायन का भी उनमें कौशल था। राजस्थान की राग-रागणियों का कितना सूक्ष्म ज्ञान था। अपने गुरु कालूगणी के प्रति कितनी श्रद्धा-निकटता थी। उन्होंने लंबे काल तक हमारे धर्मसंघ का नेतृत्व किया। करीब 60-61 वर्ष तक धर्मसंघ के सर्वोच्च पद पर रहे थे। आज उनकी पुण्यतिथि मना रहे हैं। मैं गुरुदेव तुलसी को श्रद्धा के साथ वंदन करता हूँ। ऊपर जाकर देखते हैं, तो मेरा करेक्शन कराते रहें। मैं उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
मुख्य मुनिप्रवर ने कहा कि गुरुदेव तुलसी का जीवन एक विविध विलक्षणताओं का समवाय था। उनके जीवन का पूर्वार्द्ध और उत्तरार्ध उदितोदित था, कारण वे पुरुषार्थी और समयज्ञ पुरुष थे। उन्होंने अशांत विश्व को शांति का संदेश दिया था।
मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि गुरुदेव तुलसी के पास विजन था और एक्शन भी था। उन्होंने धर्मसंघ को विकास के पथ पर आरूढ़ किया था। वे चिंतन करते थे और उसे साकार रूप देने के लिए तत्पर रहते थे। उन्होंने शिक्षा-संस्कृत और व्यक्तित्व विकास के लिए सघन प्रयास किया।
साध्वीवर्या जी ने कहा कि वे तेजस्वी महापुरुष थे। उन्होंने शक्ति का गोपण नहीं किया, बल्कि सम्यक् उपयोग शक्ति का करके अनेक कार्य धर्मसंघ में किए।
मुनि उदित कुमार जी ने कहा कि गुरुदेव तुलसी का जीवन बहुआयामी था। उनमें वचन-सिद्धि थी। वे राजर्षि थे।
पूज्यप्रवर के स्वागत में जावरा के विधायक राजेंद्र पांडे, कॉलेज के चेयरमैन जी0एल0 पटेल ने अपने भावों की अभिव्यक्ति देते हुए रतलाम जिले में चतुर्मास करने की पुरजोर प्रार्थना की व श्रीचरणों में प्रतिवेदन अर्पित किया।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने कहा कि आचार्य तुलसी मनुष्य के निर्माता थे।