मानवीय मूल्यों के पुरोधा आचार्यश्री तुलसी

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मानवीय मूल्यों के पुरोधा आचार्यश्री तुलसी

कांकरोली।
साध्वी डॉ0 परमयशा जी के सान्निध्य में नरेंद्र बैद (पड़िहारा), आयोध्यापुरी 100 फीट रोड के प्रवास में आचार्यश्री तुलसी की 27वीं पुण्यतिथि के कार्यक्रम का समायोजन हुआ। साध्वी डॉ0 परमयशा जी ने कहा कि भारत वसुंधरा का सौभाग्य है जहाँ आचार्यश्री तुलसी एक देदीप्यमान सूर्य बनकर आए। वे एक तुल्य महापुरुष थे। जननायक, महानायक गुरुदेव एक महान परिव्राजक थे। उन्होंने दो कदमों से हिंदुस्तान में पदयात्राएँ करते हुए एक लाख किलोमीटर का सफर तय किया।
गणाधिपति की संघनिष्ठा, मर्यादानिष्ठा को देखकर लोग दाँतों तले अंगुली दबाते थे। उनकी कार्यशैली इतनी शानदार थी कि पूज्य गुरुवर की एक झलक पाने के लिए हजारों की भीड़ प्रतीक्षा करती। विश्व के महान संत ने पद का विसर्जन करके वो आश्चर्य दिखा दिया जो सभी कुर्सी वालों के लिए एक क्रांतिकारी सोच का सकारात्मक हस्ताक्षर है।
वे एक प्रवचनकार, साहित्यकार थे। रचनाकार और संगीतकार थे। कलाकार और संपादनकार थे। तीर्थंकर अनुहार तारणहार थे।
कार्यक्रम में साध्वी विनम्रयशा जी ने ‘जाप’ करवाया और साध्वी मुक्ताप्रभा जी ने ‘ध्यान’ करवाया। तेरापंथ महिला मंडल की उपाध्यक्ष साधना चोरड़िया ने सबका स्वागत किया। कार्यक्रम में साध्वी विनम्रयशा जी ने ‘कविता’ के माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित की। साध्वी डॉ0 परमयशा जी, साध्वी विनम्रयशा जी, साध्वी मुक्ताप्रभा जी ने डॉ0 साध्वी परमयशा जी द्वारा रचित गीत का संगान किया। कार्यक्रम में सभा अध्यक्ष प्रकाश सोनी, अभिरुचि चपलोत ने भी अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। नीता सोनी ने ‘कन्यादान क्यों’ इस विषय पर अपने उद्गार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन ममता मालू ने किया और आभार ज्ञापन तेममं की मंत्री मनीषा कच्छारा ने किया।