
जीवन में क्षण मात्र का प्रमाद न करें : आचार्यश्री महाश्रमण
केलवे रोड, (महाराष्ट्र) 3 जून, 2023
साम्य योगी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने धर्मसभा को पावन पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि उत्तराध्ययन सूत्र के दसवें श्लोक से हमें प्रमाद न करने का संदेश मिलता है। प्रमाद क्यों नहीं करना, उसका आधार बताया गया है कि मनुष्य-भव दुर्लभ है। लंबे काल तक यह प्राणियों को उपलब्ध नहीं होता है। इसलिए क्षण मात्र प्रमाद नहीं करना चाहिए। इतने जागरूक रहो कि पाप से बचा जा सके। समय का सामान्य अर्थ है कि काल की लघुत्तम इकाई है वो समय है। बहुत ही सूक्ष्म एक कालावधि है, जिसे विज्ञान भी नहीं पकड़ सका है।
साधु में सातवाँ अप्रमत्त गुणस्थान तो कभी-कभी आ सकता है, पर ज्यादा देर टिकता नहीं है। बार-बार मेरे में आ जाए ऐसा प्रयास करें। कषाय आश्रव और प्रमाद आश्रव से साधु को व्रत में त्याग भंग रूप में कोई दोष नहीं लगता है। दोष लगता है अशुभ योग आश्रव से। हम इस अशुभ योग से बचने का प्रयास करें। उड़ीसा में हुए रेल हादसे से समझें कि जीवन का कोई भरोसा नहीं है। हादसे में पीड़ितों की मदद भी की जा रही है। मुनि शांतिप्रिय जी और मुनि अजय प्रकाश जी का मेवाड़ में संथारा चल रहा है। संथारे में आध्यात्मिक सेवा का जितना योगदान दे सकें, देने का प्रयास करें। शारीरिक योगदान की अपेक्षा हो तो वो भी देें। साधु व साध्वियाँ आपस में बाह्य सहयोग भी कर सकते हैं।
सुविधा के साथ कभी-कभी दुविधा वाली बात भी हो सकती है। नियति का योग समझो दुर्घटना हो गई। लौकिक सेवा भी हो। सेवा ही धर्म है। विशेष व्यक्तियों के लिए विशेष व्यवस्था का ध्यान रखें। मानव जीवन दुर्लभ है, इसका आध्यात्मिक साधना में उपयोग करें। साधुपन प्राप्त होना तो कितनी ऊँची बात है। मेरा साधुपन, मेरा संघ और मेरे गुरु मुझे प्यारे हैं। इनके प्रति हमारी निष्ठा रहे। इनसे हमारा मानव जीवन सार्थक हो सकता है। आज चतुर्दशी है। पूज्यप्रवर ने तेरापंथ की मर्यादाओं के बारे में प्रेरणाएँ और स्फूरणाएँ फरमायी। शरीर का स्वस्थ होना जीवन की एक उपलब्धि है। दूसरी उपलब्धि है कि चित्त-प्रसन्न रहे। नींद भी आना एक उपलब्धि है। मनोबल हमारा अच्छा रहे। घबराएँ नहीं। संथारे की अनुमोदना में कुछ त्याग करें। लेख पत्र का सामूहिक वाचन हुआ।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि हम अमृत का पान कर रहे थे। अमृत पान करने के बाद ये जिज्ञासा होती है कि अमृत कहाँ रहता है। अपने-अपने मत हो सकते हैं। भगवान के उपासक के कंठ में अमृत का वास होता है। महापुरुषों के कंठ में अमृत होता है। उनकी साधु क्षारिणी वाणी मन को अच्छी लगती है। पूज्यप्रवर अमृत पुरुष हैं, इनके वचन कभी खाली नहीं जाते। पूज्यप्रवर में भगवद्-भक्ति है। आचार्यप्रवर अर्हत् वाणी के प्रति समर्पित हैं, अटूट आस्था है।
पूज्यप्रवर के स्वागत में भगवती लाल राठौड़, शिवसेना प्रवक्ता विनोद व अनेक गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे। खुशी कावड़िया, हनी मांडोत, पिंकी मांडोत आदि ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर ने गाँववालों को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संकल्पों को समझाकर स्वीकार करवाए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।