इंद्रियों का संयम व सदुपयोग करें : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

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इंद्रियों का संयम व सदुपयोग करें : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

बोइसर, (पालघर) 1 जून, 2023
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे पास पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं। पाँच कर्मेन्द्रियाँ भी होती हैं। ये पाँच ज्ञानेंद्रियाँ ज्ञान का साधन बनती हैं। ये इंद्रियाँ विषयों को ग्रहण करती हैं। कान के द्वारा हम शब्दों को ग्रहण करते हैं। शब्द अर्थ के संवाहक होते हैं। शब्द और अर्थ का गहरा संबंध है। शब्द को शरीर मान लें तो अर्थ शब्द की आत्मा है। शब्द के अर्थ ग्रहण होने पर हमारे भीतर प्रतिक्रिया भी होती है। पर उस प्रतिक्रिया में राग-द्वेष में न जाएँ। श्रोतेन्द्रिय का सदुपयोग करें। बुरा सुनो मत, बुरा देखो मत, बुरा बोलो मत और बुरा सोचो मत। विकथाओं को सुनने से बचने का प्रयास करें।
अच्छे लोगों की कीर्ति और उनकी अच्छी वाणी सुनने में कान का प्रयोग करें। कहीं-कहीं कान की अपेक्षा आँख ज्यादा महत्त्वपूर्ण है, व्यवहार में। आँखों का भी सदुपयोग करें। अच्छा स्वाध्याय पढ़ने व संत दर्शन में उनका उपयोग करें। हमारे विवेक का तीसरा नेत्र भी खुल जाए। घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय का भी अच्छा सदुपयोग हो। संयम रखें। वाणी संयम भी रखें। हम इंद्रियों का संयम रखें। इनका विशेष संयम करके भीतर में रहने का कुछ प्रयास कर सकते हैं। सर्वेन्द्रिय संयम मुद्रा का प्रयोग करें। राग-द्वेष से बचने का प्रयास करें तो इंद्रिय संयम की साधना हो सकती है। रहो भीतर, जीयो बाहर। हम शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श रूपी इंद्रिय जगत में रहकर भी भीतर में रहने का प्रयास करें। हम इंद्रियातीत बनने का प्रयास करें। हम निर्लेप रहने का प्रयास करें, यह कल्याणकारी हो सकता है।
आज शिक्षा से जुड़े स्थान में आए हैं। आचार्य महाप्रज्ञ जी से जुड़ा फाउंडेशन है। आदमी आगे बढ़े तो विकास हो सकता है। जैसे घड़े से पैदा होने वाला अपने आप में पूरे समुद्र को समा लेता है, वैसे ही यह कॉलेज और विकास करे। यहाँ ज्ञान के साथ अच्छे संस्कारों का निर्माण हो। साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि तेरापंथ में गुरु दृष्टि ही सर्वोपरी है। तेरापंथ की प्रगति का सबसे बड़ा हेतु हैµअनुशासन, विनम्रता और गुरु के प्रति सहज समर्पण का भाव। विनीत वह होता है, जो गुरु के इंगित और आकार को समझता है, गुरु की सुश्रुषा करता है, गुरु आज्ञा का पालन करता है। बोइसर प्रवास के दूसरे दिन आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के अनंतर पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमण जी काम्बल गाँव स्थित आचार्य महाप्रज्ञ विद्या निधि फाउंडेशन में पधारे। किशनलाल डागलिया की अर्ज पर परम पावन इस फाउंडेशन के परिसर में पधारे।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में अभातेयुप व संस्था उन्होंने के भूतपूर्व अध्यक्ष किशन डागलिया जो इस फाउंडेशन के अध्यक्ष भी हैं, ने फाउंडेशन की पूरी जानकारी दी। उन्होंने इस संस्थान का नामकरण पूज्यप्रवर के नाम से करने की अपनी भावना श्रीचरणों में अर्ज की। गुलाबचंद चोरड़िया, व्यवस्था समिति अध्यक्ष मदनलाल तातेड़, युगराज जैन ने अपनी भावनाएँ अभिव्यक्त की। युगराज जैन के गीत की प्रस्तुति हुई। महिला मंडल ने गीत प्रस्तुत किया। ज्ञानशाला प्रशिक्षिकाओं ने भावना अभिव्यक्त की। दक्षिण मंुबई ज्ञानशाला की सुंदर प्रस्तुति भी हुई। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।