मानव जीवन में धर्म की कमाई जरूरी : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मानव जीवन में धर्म की कमाई जरूरी : आचार्यश्री महाश्रमण

विरार, 08 जून 2023
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी आज विरार पधारे। युगदृष्टा ने पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए फरमाया कि व्यक्ति जीवन जीता है। मानव जीवन अपने आप में पूंजी होती है। शास्त्रकार ने एक कथानक से समझाया है कि वह मां शत्रु है, पिता बैरी है, जिन्होंने अपनी संतान को पढ़ाया नहीं, अच्छे संस्कार नहीं दिये हैं।
सफलता पाने के लिए श्रम करना पड़ता है। श्रम करो, सफल बनो। आलस्य मनुष्य का महान शत्रु है, जो उसके शरीर में ही रहता है। श्रम जैसा कोई बन्धु नहीं है। जिस आदमी के मन में उद्यम, साहस, धैर्य, बल, बुद्धि और पराक्रम होता है, वहां मानो ाग्य ी सहायता करने वाला बन जाए।
जीवन में पुण्य और ाग्य भी काम करता है। ाग्य अदृश्य है पर फिर ी सहायता करने वाला होता है। जैसे धर्मास्तिकाय जो अरूपी होते हुए ी कितनी सहायता करता है। मौके पर जबान पर लगाम रखना अच्छी बात होती है। बड़े बेटे ने मूल पूंजी को गंवा दिया, बीच वाले में मूल की सुरक्षा की और तीसरे ने मूल से करोड़ों-करोड़ों की सम्पति इक्कट्ठी कर ली।
इसी प्रकार मुनष्य जीवन एक पूंजी है। कई व्यक्ति हिंसा, चोरी, झूठ आदि पाप करके अद्योगति या तिर्यन्य गति में चले जाते हैं, मूल को गंवा देते हैं। कुछ मनुष्य ऐसे होते हैं, जो न ज्यादा धर्म करते हैं न ज्यादा पाप करते हैं, वे मूल को सुरक्षित रखते हैं। वे मरकर वापस मनुष्य गति में आ सकते हैं। कुछ लोग छोटे बेटे की तरह खूब तपस्या साधना करते हैं। अच्छे साधु या श्रावक बनते हैं। वे मरकर के देवगति या मोक्ष में चले जाते हैं।
गृहस्थ गहराई से चिंतन करे कि वे कौनसे बेटे के समान धर्म के क्षेत्र में आगे बढ़े हैं। जीवन अच्छा बने, स्वाध्याय, त्याग तपस्या करें। गलत मार्ग पर न जाएं। शास्त्रकार ने एक कथानक से बहुत पथ-दर्शन दे दिया है कि अपना आत्म चिंतन करो। धर्म की कमाई करने का प्रयास करें, ताकि आगे की गति अच्छी हो। संवर धर्म के साथ निर्जरा ी हो। साध्वी प्रमुखाश्री ने कहा कि संसार में सारे जीव जीना चाहते हैं, कोई मरना नहीं चाहता। व्यक्ति कैसे जीये, उस विषय में चिंतन करें। जीवन को अच्छा बनाने के लिए हम इसे दŸाचिŸाता, जागरूकता से जीयें। एकाग्रता से कोई ी कार्य करें।
जीना है तो पूरा जीना,
मरना है तो पूरा मरना।
बहुत बड़ा अिशाप जगत में
आधा जीना, आधा मरना।
हम एकाग्रता और ावक्रिया का महŸव समझें। वर्तमान में जीयें। पूज्यवर के स्वागत में स्वागताध्यक्ष अजयराज फूलफगर, स्थानीय साध्यक्ष, महिला मंडल, तेयुप , कन्या मंडल, किशोर मंडल की ओर से अपनी ावना अिव्यक्त की गई। ज्ञानशाला की ी प्रस्तुति हुई।
कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।