मनुष्य जीवन में चिंतन ज्यादा करें, चिंता नहीं : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मनुष्य जीवन में चिंतन ज्यादा करें, चिंता नहीं : आचार्यश्री महाश्रमण

गोरेगांव, 19 जून 2023
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी का गोरेगांव प्रवास का तीसरा दिन। विकास पुरूष ने प्रेरणा पाथेय प्रदान कराते हुए फरमाया कि जैन्ा परंपरा में चौबीस तीर्र्थंकरों की अवधारणा बतायी गयी है। जैन भूगोल के अनुसार भरत और ऐरावत क्षेत्र में अवसर्पिणीउत्सर्पिणी काल चलता है। प्रत्येक अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल में चौबीस तीर्थंकर होते है। कुल भरत और ऐरावत 55 है। हम जम्बू द्वीप के भरत क्षेत्र में हैं। वर्तमान अवसर्पिणी काल के चौबीस तीर्र्थंकरों में सोलहवें तीर्र्थंकर भगवान शांतिनाथ हुए हैं। अध्यात्म के क्षेत्र में सर्वोच्च पद तीर्र्थंकर का होता है। वे अध्यात्म के अधिकृत प्रवक्ता होते हैं। भौतिक दृष्टि से सर्वोच्च पद चक्रवर्ती का होता है। उसके लिए क्या कहा जाए कि जो एक ही जीवन में चक्रवर्ती भी बन जाए और तीर्थंकर भी बन जाए।
ऐसे भी जीव हुए हैं, जिन्होंने दोनों पदों को प्राप्त किया है, उनमें से एक भगवान शांतिनाथ है। वे पहले चक्रवर्ती और महर्षि थे। उन्होंने अनुत्तर पद को प्राप्त कर लिया। शांति के प्रतीक है भगवान शांतिनाथजी। शांति आदमी को अभिष्ट होती है। शांति और संयम का जीवन जीयो। जीयो और जीने दो ये सामान्य भूमिका में तो ठीक है पर आध्यात्मिक संदर्भ में जीनेमरने की लालसा या इच्छा नहीं। जीवन में संयमशांति रखे। किसी के जीवन में व्यवधान पैदा मत करो। अध्यात्म की दृष्टि से तो जागो जगाओ, उठो और उठाओ, संयम की प्रेरणा दो। चिंता और भय से शांति नष्ट हो जाती है। शांति के लिए आदमी गुस्से पर कंट्र्रोल रखे। चिंता अधिक न करे। चिंता नहीं चिंतन करो। भय और लोभ से मुक्त रहें। अध्यात्म की साधना करते रहें तो जीवन में शांति रह सकती है।
जीवन में सुविनीतता रहे, जप स्वाध्याय चलता रहे। भौतिक पदार्थों से सुविधा प्राप्त कर सकते हैं , पर शांति नहीं। जो चित्त समाधि साधक को मिल जाती है, वो आम आदमी को भी न मिले। संसाधनों से सुविधा और साधना से शांति मिलती है। गोरेगांव में खूब धर्म की जागरणा रहे। जितना लाभ उठा सकें, उठाने का प्रयास करें। साध्वीवर्याजी ने कहा कि श्रावक श्रद्धाशील होता है। श्रद्धा परम दुर्लभ है। संदेह और कुतर्क होता है तो श्रद्धा जम नहीं पाती है। जिज्ञासा हो, पर शंका न हो। जहां श्रद्धा अखंड होती है, वहां आदमी संसार पार पहुंच जाता है। जहां श्रद्धा बिखर जाती है, आदमी संसार का पार नहीं पा सकता। अध्यात्म और देव, गुरू व धर्म के प्रति हमारी श्रद्धा होनी चाहिए।
पूज्यवर की अभिवंदना में उपासक सुरेश्ा ओस्तवाल, तेयुप अध्यक्ष रमेश सिंघवी, ममता चीपड़, पूनम बैद, रमेश राठौड़ कांता सिसोदिया, रेखा सेठिया, पिंकी सांखला, मौनिका मुणोत, दिशा सियाल, राकेश सियाल आदि ने अपनी भावाभिव्यक्ति की। तेरापंथ महिला मंडल एवं उपासक उपासिकाओं ने गीत के माध्यम से पूज्यवर की अभिवंदना की। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।