कल्याण और पाप के ज्ञान के बाद वही करें जो श्रेय, श्रेष्ठ और हितकर हो : आचार्यश्री महाश्रमण
गोरेगांव, 18 जून 2023
गोरेगांव स्थित बांगुर नगर के बांगुर स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स में बने महावीर समवसरण में प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए संयम के शिख्ार पुरूष आचार्यश्री महाश्रमणजी ने फरमाया कि हम पंचेन्द्रिय प्राणी हैं। पंचेन्द्रिय प्राणी है तो श्रवण शक्ति-स्रोतेन्द्रिय भी हमारे होती है। कान से आदमी सुनता है। यह श्रवण शक्ति ज्ञान प्राप्त करने का माध्यम बनती है। कितनी-कितनी जानकारियां आदमी सुन कर प्राप्त कर लेता है। आंख से देखकर भी अनेक जानकारियां प्राप्त कर ली जाती है। एक समय में लिखित साहित्य इतना उपलब्ध नहीं था तब ज्ञानियों-संतों के द्वारा सुन-सुनकर ज्ञान प्राप्त कर लिया जाता था। सुनकर अच्छी बात को जाना जा सकता है तो पाप को भी जाना जा सकता है। कल्याण और पाप को जान लेने के बाद करना वही चाहिये जो श्रेय, श्रेष्ठ और हित करने वाला हो। श्रोता वक्ता से अनुबंधित होता है, वक्ता श्रोता से नहीं। श्रवण शक्ति का हम अच्छा उपयोग करें। कोई ग्राह्य बुद्धि से लेेने वाला हो तो वक्ता का वक्तव्य सार्थक हो सकता है। श्रवण और भाषण का आपस में संबंध है। बोलना एक कला है तो सुनना भी एक कला है। आदमी वक्तव्य अच्छा बनाये तो सुनने वाले को लाभ मिल सकता है। बोलतेबोलते आदमी अच्छा वक्ता बन सकता है। हम श्रवण कर कल्याण को प्राप्त कर सकते हैं। राजनीति मे भी धर्मनीति बनी रहे। गोरेगांव के लोगों में खूब धार्मिक भावना बनी रहे। उपासक श्रेणी भी मुमुक्षु तैयार करने का प्रयास करे।