मन में नीति साफ तो सौ पाप माफ: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मन में नीति साफ तो सौ पाप माफ: आचार्यश्री महाश्रमण

नंदनवन (मंुबई), 18 जुलाई, 2023
वीर प्रभु के परम उपासक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत वर्षा करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र के आठवें शतक में एक बात बताई गई है, प्रायश्चित व आराधक और विराधक के संबंध में। एक साधु गृहस्थ के घर गोचरी के लिए गया और वहाँ पर अप्रत्याशित बड़ी गलती हो गई। उसकी भावना थी कि यहाँ छोटी आलोयणा ले लेता हूँ। ठिकाने जाकर बड़ी आलोयणा स्थविर मुनि से ग्रहण कर लूँगा। इसकी विस्तृत व्याख्या करते हुए पूज्यप्रवर ने आगे फरमाया कि काम शुरू हो गया तो वह काम हो गया। यहाँ पर भी मुनि संकल्प लेकर चले थे। पर परिस्थिति के कारण आलोयणा नहीं ले पाए तो भी वे आराधक हैं। उनकी शुद्धता मानी गई है। उनका रास्ता साफ है। ज्ञान, दर्शन और चारित्र व इहलोक का आराधक होता है। गलती हो सकती है, पर उसका प्रायश्चित करो। जैसे कीचड़ लगे कपड़े को साबुन से साफ कर धो डालते हैं।
आराधक और विराधक दो शब्द हैं। साधु आराधक रहें। यह प्रतिक्रमण दोनों समय उसी के लिए है। बच्चे की तरह सरल बनकर आलोयणा ले लें। जो ऋजुभूत है, उसकी शुद्धि हो सकती है। सरलता में कमी है, तो शुद्धता में कमी हो सकती है। गुरु से दोष मत छिपाओ। गुरु जो आलोयणा दें सहर्ष स्वीकार कर उसे जल्दी पूरा करो। तभी शुद्धि अंतर्मन से हो सकती है, आराधक बन सकते हैं। प्रायश्चित और प्रतिक्रमण ये दो ऐसे उपाय हैं, जिनसे शुद्धि हो सकती है। मन में नीति साफ है, तो सौ गुनाह माफ हैं। यह आराधक की बात बताई गई है।
महामनीषी ने कालू यशोविलास का सुंदर विवेचन करते हुए परम पूज्य कालूगणी के सुधरी (बगड़ी) पधारने के प्रसंग को विस्तार से समझाया। दीक्षा महोत्सव और मर्यादा महोत्सव को भी पूज्य कालूगणी ने सुधरी में किया था। यह वही बगड़ी है जहाँ हमारे आद्यप्रवर्तक को एक दिन यहाँ न आहार मिला था न रहने को स्थान। जैतसिंहजी की छत्रों में रात्रि प्रवास इसी बगड़ी में हुआ था। मेवाड़ के लोग दर्शन कर मेवाड़ पधारने की अर्ज करते हैं कि माली के बिना बाड़ी सूख न जाए।
पूज्यप्रवर ने 21 रंगी से जुड़े तपस्वियों व अन्य तपस्वियों को तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि सत्य लोक में सारभूत है। दुनिया में सत्य धर्म का अस्तित्व है, तो असत्य धर्म का भी अस्तित्व है। मृषावाद एक पाप है। मृषावाद से बचने के लिए झूठा संभाषण भी न करें। सत्य भी विवेकपूर्ण बोलना चाहिए। कटु सत्य न बोलें। किसी का भेद न खोलें। असत्य संभाषण करने वाला अपना विश्वास खो देता है। अनेक अवगुण आ सकते हैं। अप्रिय सत्य न बोलें। असत्य बोलने वाला अल्पायु का बंध कर सकता है।