मुनि शांतिप्रिय जी एक वैरागी संत थे

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मुनि शांतिप्रिय जी एक वैरागी संत थे

भीनासर
मुनि चैतन्य कुमार जी ‘अमन’ ने मुनि शांतिप्रिय जी की स्मृति सभा में कहा कि जीवन की एक बहुत बड़ी उपलब्धि हैµअनशनपूर्वक मृत्यु का वरण। वह व्यक्ति सौभाग्यशाली होता है, जिसे अनशन करने का अवसर मिलता है। बिना क्षयोपशम के न संयम-साधुपन आता है और न ही संथारा-संलेखना। मुनि शांतिप्रिय जी, जिन्हें गुरुओं की महान अनुकंपा से अंतिम वय में संयम जीवन के साथ संथारा भी आया। संथारा भी पचपन दिनों का आया।
मुनि शांतिप्रिय जी एक वैरागी संत थे। संयम जीवन का सजगता से पालन करते थे। संघ व संघपति के प्रति उनके मन में गहरी निष्ठा का भाव था। श्रावक जीवन में उपासक रहे। प्रारंभ से ही उन्हें प्रवचन देने का शौक था। वाणी उनकी बुलंद थी। दीक्षित होने के बाद मेवाड़ आदि क्षेत्रों में काफी रहे और धर्मसंघ की प्रभावना में अपना योगदान दिया। तपस्या भी करते रहते थे।
मुनि पारस कुमार जी का अच्छा योग मिला और आचार्यप्रवर महाश्रमणजी की कृपा से अनशन कर जीवन का उपसंहार किया। मुनि सिद्धप्रज्ञ जी को उनकी सेवा का अच्छा लाभ मिला। मैं उनके जीवन के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना करता हूँ कि उनकी आत्मा शीघ्र ही मोक्षश्री का वरण करे। इस अवसर पर मुनि प्रबोध कुमार जी ने अपने उद्गार व्यक्त किए। चार लोगस्स के ध्यान के साथ सभी श्रावक-श्राविकाओं ने मुनि शांतिप्रिय के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की।