कषायों को मंदतर बनाने का हो प्रयास: आचार्यश्री महाश्रमण
नन्दनवन-मुम्बई, 28 जुलाई 2023
तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने जिनवाणी का अमृत पान कराते हुए फरमाया कि भगवती आगम में कहा गया है- भन्ते! मोहनीय कर्म प्रयोग बन्ध किस कर्म के उदय से होता है। उत्तर दिया गया- तीव्र क्रोध, तीव्र मान, तीव्र माया एवं तीव्र लोभ मोहनीय कर्म प्रयोग बंध कराने वाले हैं। मोहनीय कर्म को आठों कर्मों में सबसे मुख्य कहा गया है या कर्मों का सेनापति कहा गया है। सभी कर्मों के क्षय के अंत में मोहनीय कर्म समाप्त होता है। यह सम्यकत्वी को मिथ्यात्वी और मिथात्वी को घोर पापी बना देता है। साधु को साधुपन से, श्रावक को श्रावकपन से च्युत करने वाला होता है। तीव्र का ही प्रयोग क्यों किया गया, सामान्य प्रयोग क्यों नहीं किया गया। तीव्र होने के पीछे एक बात हो सकती है कि दसवें गुणस्थान में सूक्ष्म लाभांश से मोहनीय कर्म का बन्ध नहीं होता है। सूक्ष्म कषाय से मोहनीय कर्म लगभग न बंधे पर हम तीव्रता से बचें। तीव्र कषाय में न आएं। अति क्रोध, मान, माया और लोभ से दूसरों का नुकसान न हो जाए। कषायमंदता रहे। कषायों के छह प्रकार- मंद, मंदतर, मंदतम, तथा तीव्र, तीव्रतर और तीव्रतम होते हैं। जहां तक संभव हो कषायों को तीव्र, तीव्रतर और तीव्रतम से बचते हुए मंद, मंदतम और मंदतर बनाने का प्रयास हो। हमारा सम्यकत्व निर्मल रहे, ऐसी साधना चलती रहे।
अभ्यास से लाभ प्राप्त हो सकता है। समय पर गुस्से को भी पी जाएं। ज्यादा कषाय से समस्या पैदा हो सकती है। अवसर देखकर कोई बात का प्रयोग करें। कड़ा भी पात्र को देखकर कहना चाहिए। कषायों के परित्याग से आत्मा की निर्मलता के साथ-साथ परिवार और समाज भी अच्छे बन सकते हैं। महामनीषी ने कालू यशोविलास का विवेचन कराते हुए उदयपुर दीक्षा महोत्सव के विरोधाभास के समय राणाजी के द्वारा पूज्य कालूगणी को दिए गए सहयोग एवं दीक्षा समारोह की भव्यता के प्रसंग को बताया। पूज्यवर ने तपस्वियों को तपस्या के प्रत्याख्यान कराए। रमेश खंडोर ने सिद्धि तप के अंतर्गत 5 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। वनीता सिंघवी, नीतू गेलड़ा, प्रतिभा सोनी, रिंकू डूंगरवाल एवं डालचंद कोठारी ने तपस्या के प्रत्याख्यान ग्रहण किये। कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए मुनि दिनेशकुमारजी ने समता के महत्व को समझाया।