विदेश में रहते हुए भी जीवन में बना रहे धर्म-ध्यान का प्रभाव: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

विदेश में रहते हुए भी जीवन में बना रहे धर्म-ध्यान का प्रभाव: आचार्यश्री महाश्रमण

दो दिवसीय एनआरआई समिट का भव्य आध्यात्मिक आगाज

महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की सन्निधि में 16 देशों के 200 से अधिक श्रद्धालु हुए उपस्थित

05. अगस्त 2023, नन्दनवन, मुंबई
अनंत आस्था के केन्द्र आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए फरमाया कि लगभग 2550 वर्ष पहले भगवान महावीर विद्यमान थे। एक बार भगवान महावीर से गौतम ने प्रश्न किया कि जो अन्य दर्शन को मानने वाले लोग हैं, उनमें यह अवधारणा है कि शील श्रेय है, श्रुत श्रेय है। भगवान ने कहा कि गौतम! ये बात जो अन्य लोग कहते हैं, वह मिथ्यावाद है। मैं अलग बात कहता हूं। एक अवधारणा रही है कि ज्ञान करो, कल्याण हो जायेगा। दूसरी अवधारणा रही है- क्रियावाद। कोई कहता है ज्ञान या क्रिया एक कर लो, कल्याण हो सकता है। इन अवधारणाओं में परिपूर्णता नहीं है, ऐसा भगवती सूत्र के आधार पर प्रतीत होता है। ज्ञान और आचार दो तत्व है। ज्ञान है पर साथ में आचार नहीं है तो अपूर्णता है। जीवन में विद्वता है, यह एक पक्ष है। दूसरा पक्ष है कि आचरण कैसा है। दूसरे व्यक्ति का आचरण अच्छा है, पर ज्ञान नहीं है तो भी बढ़िया बात नहीं है। ज्ञान और आचरण दोनों ही ठीक नहीं है, तो आदमी दोनों पक्षों से कमजोर है। बढ़िया आदमी वह है, जिसमें ज्ञान और आचरण दोनों पक्ष मजबूत है। ज्ञान सम्यक् है तो आचरण अच्छा हो सकता है। सम्यक् आचरण के लिए सम्यक् ज्ञान आवश्यक है।
‘पढ़मं नाणं तओदया।’ सम्यकत्व विहीन आचरण सम्यक् नहीं हो सकता है। अभव्य जीव में तीन काल में सम्यकत्व आ ही नहीं सकता। भले वो ऊपरी तौर से साधु भी बन जाये पर वो कभी मोक्ष जा ही नहीं सकता। सम्यकत्व शून्य आचार है। कोरा श्रुत अपूर्णता है, कोरा शील अपूर्णता है। श्रुत और शील दोनों साथ में होंगे तो परिपूर्णता होगी। सम्यकत्व नहीं है, तो कोरी क्रिया अनन्त काल तक कर लो मोक्ष नहीं होगा। ज्ञान और आचार दोनों सम्यक् होगा तो कल्याण हो सकेगा।
राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में शनिवार को 16 देशों के लगभग 200 से अधिक श्रद्धालुजन आध्यात्मिकता की खुराक लेने को उपस्थित थे। यह पहला अवसर था जब इतने देशों में रहने वाले श्रद्धालु एक साथ अपने आराध्य की अभिवंदना, अभ्यर्थना और आध्यात्मिक शांति की प्राप्ति के लिए उपस्थित हुए थे। अवसर था संस्था शिरोमणि जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में आयोजित दो दिवसीय एनआरआई समिट का आयोजन। इस समिट में आस्ट्रेलिया, आस्ट्रिया, बेल्जियम, जर्मनी, हांगकांग, इण्डोनेशिया, कतर, सिंगापुर, स्विटजरलैण्ड, थाईलैण्ड, युनाइटेड किंगडम, युनाइटेड अरब अमिरात, युनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका, बांग्लादेश व श्रीलंका से श्रद्धालु आध्यात्मिकता की खुराक प्राप्त कर अपने जीवन को उन्नत बनाने को उपस्थित थे।
मायानगरी मुम्बई का नन्दनवन आज मानों अप्रवासी भारतीय श्रद्धालुओं से गुंजायमान हो रहा था। हर रोज तो अपने देश के हजारों श्रद्धालु दिखाई देते थे, किन्तु शनिवार को भारत के अलावा 16 देशों में रहने वाले अप्रवासी तेरापंथी श्रद्धालु संस्था शिरोमणि जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के एनआरआई समिट में भाग लेने तथा अपने देव, धर्म व गुरु की निकट सन्निधि को प्राप्त करने के लियेे नंदनवन में उपस्थित थे।
तीर्थंकर समवसरण के विशाल मंच पर भारतीय तिरंगे के साथ अन्य सोलह देशों के ध्वज व जैन ध्वज शोभायमान हो रहे थे।
समुपस्थित अप्रवासी श्रद्धालुओं को पावन संदेश प्रदान करते हुए आचार्य प्रवर ने फरमाया कि चार दृष्टियां प्राप्त होती है- द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव। इन पर ध्यान दिया जाये तो ज्ञान स्पष्ट हो सकता है। क्षेत्र-काल का भी अपना महत्व होता है। मनुष्य क्षेत्र में भी कितनी भूमियां है, जहां मनुष्य का निवास होता है। कुछ क्षेत्रों में धर्म का प्रभाव या अभाव हो सकता है।
आज तो एनआरआई समिट हो रहा है, जो तेरापंथी महासभा द्वारा भारत से बाहर रहने वाले लोगों को भी धर्म से जोड़े रखने का सुंदर प्रयास है। भारत से बाहर के देशों में साधु-संतों की संख्या भारत की तुलना में न के बराबर है। इस दृष्टि से वहां धर्म का इतना प्रसार नहीं होता होगा। भारत को धर्म क्षेत्र कहा जा सकता है।
परम पूज्य गुरुदेव तुलसी के समय समण श्रेणी के रूप में तेरापंथ धर्मसंघ को एक अवदान मिला, जिसके माध्यम से समणियां विदेश में धर्म प्रचार व संस्कार देने का प्रयास करती है। अब तो तकनीक आदि के माध्यम से गुरुओं की वाणी सुनने का भी अवसर मिल रहा है तो तकनीक से कुछ क्षेत्रीय निकटता हुई है, किन्तु एक टेलीविजन पर देखने और एक साक्षात देखने और अनुभव करने की बात अलग होती है। यह महासभा का बहुत सुन्दर उपक्रम है। इससे नई चेतना-नई जागरणा हो सकती है। बाहर रहने वाले लोगों से मिलना हो रहा है। वर्तमान साध्वीप्रमुखा ने भी पहले समणी रूप में रहते हुए विदेश यात्रा भी की है। साध्वीवर्या भी समण श्रेणी में रही हुई हैं। मूल बात यह है कि विदेश में रहने पर भी जीवन में धर्म-ध्यान का प्रभाव बना रहना चाहिए। कोरी भौतिकता के युग में भी आदमी का दृष्टिकोण आध्यात्मिकता से परिपूर्ण रहे। कोरी भौतिकता चिंता, कुंठा में ले जा सकती है। इन दो दिन में आध्यात्मिक खुराक पाकर जीवन को धर्म से भावित बनाने का प्रयास होता रहे, वहां के बच्चों में भी धार्मिक प्रभावना होती रहे। महासभा ने अच्छा कार्य किया है, यह उपक्रम आगे भी चलता रहे। मंगलकामना।
पूज्यवर ने ललित कोठारी को 36 की तपस्या एवं शर्मिला मेहता, सुश्री हीना सिंघवी, सुशीला मेड़तवाल, चिराग छाजेड़ को उनकी तपस्याओं के प्रत्याख्यान करवाये। स्व. चन्दनमलजी बैद के परिवारजनों द्वारा ‘महक चन्दन की’ की पुस्तक का पूज्यवर की पावन सन्निधि में लोकार्पण किया। पूज्यवर ने आशीर्वचन फरमाया।
एनआरआई समिट के संदर्भ में इसके संयोजक व चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति-मुम्बई के स्वागताध्यक्ष सुरेन्द्र बोरड़ पटावरी, सह संयोजक जयेश बड़ोला व महासभा के अध्यक्ष मनसुखलाल सेठिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी के संसारपक्षीय भाई सुजानमलजी दुगड़ की धर्मपत्नी एवं सोना देवी दुगड़ का कुछ समय पहले देहावसान हो गया था। सुजानमलजी एवं परिवारजन आज सम्बल प्राप्त करने हेतु पूज्यवर की सन्निधि में उपस्थित हुए।
पूज्यवर ने फरमाया कि जन्म लेने वाला मृत्यु को भी साथ लेकर आता है। समय आने पर वह प्रकट हो जाती है। यह शरीर अनित्य है, अशुचि है, आशाश्वत है। मैं तो परिवार में तो बहुत थोड़ा रहा था। मैं तो छोटे परिवार को छोड़, बड़े परिवार में आ गया था। मेरे संसारपक्षीय दादाजी हुकमचन्दजी व पिताजी को देखा हुआ है। सोना बाई हमारी संसारपक्षीय बड़ी भोजाई थी। उन्होंने अपनी पुत्री का दान धर्मसंघ को दिया था। संसार में मां का बड़ा उपकार होता है। सुमतिप्रभा को भी मां को सेवा कराने का मौका मिला। मैं जब सुजानमलजी को देखता हूं तो मुझे मोहनलालजी खटेड़ की स्मृति हो जाती है। इस वियोग की स्थिति में भी मानसिक समाधि में रहें। साध्वी सुमतिप्रभा व चारित्रयशा भी सुजानमलजी को समय-समय पर आध्यात्मिक-धार्मिक प्रेरणा देती रहे। परिवार में खूब अच्छे संस्कार बने रहें। सुराणा परिवार भी है। भाईजी के ससुर सोहनलालजी ने मेरी दीक्षा की आज्ञा के समय सहयोग किया था। भाईजी को भी धार्मिक-आध्यात्मिक समाधि रहे।
परिवार की ओर से सूरजमल दुगड़, श्रीचंद दुगड़, महेन्द्र दुगड़, मधु दुगड़, सुमन बोथरा ने एवं महासभा अध्यक्ष मनसुख सेठिया, मुंबई चातुर्मास व्यवस्था समिति प्रबंधक मनोहर गोखरू, मरुधर मित्र परिषद अध्यक्ष अशोक सिंघी, सरदारशहर नागरिक संघ अध्यक्ष विमल दूगड़, सुमतिचन्द गोठी ने दिवंगत आत्मा के प्रति मंगलभावना अभिव्यक्त की। पारिवारिक बहनों ने गीत के माध्यम से भाव व्यक्त किये। स्व. सोना देवी दूगड़ की संसार पक्षीय पुत्री साध्वी सुमतिप्रभाजी एवं संसारपक्षीया भतीजी साध्वी चारित्र यशाजी ने दिवंगत आत्मा के संदर्भ में अपनी अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनिश्री दिनेशकुमार ने किया।