देव आयुष्य बंध के चार कारण होते है: आचार्यश्री महाश्रमण
01 जुलाई 2023 नन्दनवन-मुम्बई
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान कराते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र के आठवें शतक में देव आयुष्य कर्म शरीर प्रयोग बंध के चार कारण बताये गये हैं- सराग संयम, संयमासंयम, बाल तप कर्म और अकाम निर्जरा। देव आयुष्य कर्म शरीर बंध का पहला कारण है- सराग संयम। चौदह गुणस्थानों में तीसरे गुणस्थान में आयुष्य कर्म का बंध नहीं होता। छठे गुणस्थान के बाद सातवें गुणस्थान से लेकर चौदहवें गुणस्थान तक आयुष्य कर्म बंध की प्रक्रिया नहीं हो सकती। सातवें गुणस्थान में भी आयुष्य कर्मबंध प्रारम्भ नहीं होता, समापन तो हो सकता है। इसके बाद आत्मा वीतराग बन जाती है। वीतराग के तो आयुष्य बंध की बात ही नहीं है। बारहवें गुणस्थान में चला गया तो मोक्ष में जाना ही है। ग्यारहवां, दसवां, नौवां, आठवां इन गुणस्थानों में जो आयुष्य बंध के कारण हैं, वो होते ही नहीं है। वहां राग-द्वेष का योग है नहीं। योग रूप में सराग है ही नहीं। छठे गुणस्थान में छहों लेश्याएं हो सकती है। अशुभ योग भी छठे गुणस्थान में हो सकता है।
श्रावक संयमासंयम होता है। जितना त्याग है उतना संयम। श्रावकत्व में देवगति का बंध हो सकता है। श्रावक या सम्यकत्वी नहीं फिर भी तपस्या करता है वह बालतपस्वी है। बिना मोक्ष की इच्छा के अकाम निर्जरा करने से देव आयुष्य का बंध हो सकता है। साधु तो या तो मोक्ष में जायेगा या देवगति के आयुष्य का बंध होगा। साधु की साधुता का सर्वोतम परिणाम तो मोक्ष प्राप्ति का हो। आयुष्य का बंध हो ही नहीं, वह तो बढ़िया बात होगी। मोक्ष में ही जाना सर्वाेत्तम बात है परन्तु ऐसे पाप कर्म न हो जाए कि नीची गति में जाना पड़े। परिणाम लेश्या अच्छी रहें, व्रतों के प्रति जागरूक रहंे। नियम-व्रत में दोष लग जाये तो उसका प्रायश्चित ले लेना चाहिये। इसलिए सबकी आत्मा निर्मल रहे।
पूज्यवर ने कालूयशोविलास का सुमधुर विवेचन फरमाया। पूज्य कालूगणी के उदयपुर चतुर्मास सम्पन्नता के पश्चात के विहार प्रसंगों को विस्तार से समझाया। 80 वर्षाें के अन्तराल के बाद तेरापंथ के आचार्य मालवा पधार रहे हैं, उस प्रसंग का भी उल्लेख करवाया। श्रावक-श्राविका समाज में 1 अगस्त से 31 अगस्त तक होने वाले नमस्कार महामंत्र के सवा कोटि जप अनुष्ठान का शुभारंभ पूज्यवर ने श्रीमुख से करवाया। पूज्यवर ने मासखमण करने वाले तपस्वियों पिस्ता हिरण, तन्वी हिरण, संगीता सामोता, नवरत्नमल दूगड़, प्रकाश परमार, हीना बैंगाणी, राजकुमारी दूगड, प्रवीण गेलड़ा, प्रीति रांका, इंदिरा धींग, गौतम बोहरा को उनकी तपस्या के प्रत्याख्यान करवाये। अन्य तपस्वियों में अश्विन डागलिया, हेतल डागलिया ने अपनी तपस्या के प्रत्याख्यान लिये। संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।