जैसा करना, वैसा भरना - कर्मवाद का सिद्धांत: आचार्यश्री महाश्रमण
04 अगस्त, 2023 नन्दनवन-मुम्बई
परम सुख की राह बताने वाले आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अमृत देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में बताया गया है आठ कर्मों में अंतिम कर्म अंतराय कर्म है। अंतराय कर्म शरीर प्रयोग बन्ध के कारण है- दानांतराय, लाभांतराय, भोगांतराय, उपभोगांतरा, वीर्यांतराय और अंतराय। जैसा करना, वैसा भरना- यह कर्मवाद का सिद्धांत है। यदि कोई व्यक्ति दूसरों के कार्य में बाधा डालता है तो उसका कर्म उदय में आयेगा तो उसके भी बाधा आ सकती है। कर्म किया है, उसका फल भोगना पड़ता है। बंधे हुए कर्म भोगने से ही छुटकारा होगा अथवा तपस्या से उनकी निर्जरा की जा सकती है। किसी को दान देने में अंतराय, विघ्न-बाधा डाली जाती है, तो दानांतराय कर्म का बंध हो सकता है।
दान के अनेक प्रकार हैं। अनेक रूपों में दान में बाधा डाली जा सकती है। दान लौकिक भी होता है और धार्मिक संदर्भों में भी होता है। ज्ञान-दान देना, संपति को दान देना और अभयदान देना ये तीनों धर्मदान के प्रकार है। किसी भूखे को भोजन कराना, अन्न का दान देना, अर्थ का दान देना अथवा भूमि आदि का दान देना लौकिक दान है। दान के कुल दस प्रकार बताये गये हैं। लौकिक दान समाज स्तरीय होता है। किसी के लाभ में बाधा डालने से अंतराय कर्म का बंध हो सकता है। दुर्भावना या प्रमाद से किसी के सुख में, भोजन में या नींद में विघ्न नहीं पैदा करना चाहिये। इससे भोगांतराय या उप- भोगांतराय का बंध हो सकता है। किसी की शक्ति-सेवा प्रयोग में अंतराय देने से वीर्यांतराय कर्म का बंध हो सकता है। हम किसी के कार्य में अंतराय न दें। चाहे- अनचाहे किसी के अंतराय हमारे कारण से न लग जाये, इसका विशेष ध्यान रखना चाहिये।
कालूयशोविलास की विवेचना कराते हुए परमपावन ने समझाया कि किस तरह पूज्य कालूगणी ने अपने व्याख्यान से विरोधी लोगों के चिन्तन में परिवर्तन कर दिया था। वडनगर मर्यादा महोत्सव पर अनेक क्षेत्रों के श्रावक-श्राविकाएं आते हैं। पूज्यवर ने तपस्या करने वालों को उनकी तपस्याओं के अनुसार प्रत्याख्यान करवाये। मुनि दिनेशकुमारजी ने कार्यक्रम का कुशल संचालन किया।