
दोनों विशाल विशालता को प्राप्त करें : आचार्यश्री महाश्रमण
पूज्य सन्निधि में दो साध्वियों के मासखमण तप
31 जुलाई, 2023, नन्दनवन-मुम्बई
जिन शासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल देशना प्रदान कराते फरमाया कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया है- भन्ते! मनुष्य आयुष्य कर्म शरीर प्रयोग बंध किस कर्म के उदय से होता है। उतर दिया गया कि प्रकृति भद्रता, प्रकृति विनीतता, सानुक्रोष्ता, अमत्सरता, मनुष्य आयुष्य कर्म शरीर बंध के मुख्य हेतु हैं।
मनुष्य गति का आयुष्य बंधना और संगी मनुष्य होना एक दुर्लभ जीवन को प्राप्त करना होता है। मनुष्य गति कर्म बंधन के चारों कारण शुभात्मक है, सद््गुणात्मकता है। पंचम आरे में तो मनुष्य का आयुष्य बहुत कम है। 100 वर्ष का आयुष्य भी बहुत ही कम मनुष्यों को मिलता है। हमारे धर्मसंघ में तो साध्वीश्री बिदामांजी 100 वर्ष से ऊपर की साध्वीजी है। एक ही चारित्रात्मा 105 वर्ष की हुई है। जीवन में भद्रता रहे। प्रकृति से सरल होना, भीतर में कोई छल-कपट नहीं होना प्रकृति भद्रता है।
नमन खमन अरु दीनता, सबका आदर भाव।
कहे कबीरा वही बड़ा, जाका बड़ा स्वभाव।
आकृति कितनी सुन्दर है, ये अलग बात है पर प्रकृति कैसी है? प्रकृति अच्छी है, तो आदमी अच्छा है। नम्रता, क्षमाशीलता और अपने आराध्य के प्रति भक्ति का भाव है, बड़ों के प्रति आदर का भाव व्यक्ति के जीवन को अच्छा बनाते हैं। लघुता से प्रभुता प्राप्त की जा सकती है। अहंकार का भाव न हो। साधु-साध्वियों के संदर्भ में पूज्य गुरूदेव ने फरमाया कि गुरु की आज्ञा में रहना अच्छी बात है। जीवन में विनय का भाव रहे। कोई साधु-साध्वी दीक्षा में बड़े हैं, ज्ञान में बड़े हैं, पद से बड़े हैं तो उनको वैसा ही सम्मान दें। सानुक्रोशता यानि दया रखना, कृपा रखना। ईर्ष्या न रखें। अनिर्ष्या भाव हो। मनुष्य आयुष्य कर्म का बंध मिथ्यात्वी ही कर सकता है, सम्यकत्वी नहीं। सम्यकत्वी तो वैमानिक देवलोक का ही आयुष्य बंध पुलिंग अवस्था मंे ही कर सकेगा। जीवन में भद्रता रहे। हम सद्गुणों का विकास करें, यह काम्य है। आज तेरस और चतुर्दशी संयुक्त है। परमपुज्य आचार्य भिक्षु की मासिकी जन्म तिथि और पुण्य तिथि भी है। पूज्यवर ने हाजरी का वाचन कराते हुए प्रेरणाएं फरमायी। साधु- साध्वीवृृन्द ने लेख पत्र का वाचन किया।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आज के प्रवचन कार्यक्रम में साध्वी विशालयशाजी और साध्वी विशाल प्रभाजी के मासखमण तप के पारणेे के अवसर पर मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारी दो साध्वियों का आज 28-28 दिन का मासखमण हो गया। इतनी छोटी उम्र में तपस्या की है इनको नजर न लगे। पहले भी लंबी तपस्या की है। विशाल प्रभा ने तो गृहस्थ वेश में ही मां के साथ दीक्षा ले ली थी। पूज्यवर ने आगे फरमाया कि दोनों साध्वियों का नाम विशाल है, विशालयशा और विशालप्रभाजी। इनकी तपस्या विशाल होती रहे। ज्ञान भी विशाल होता रहे, सेवा भी विशाल करती रहे और साधना में भी विशालता को प्राप्त करें।
महेन्द्र गेलड़ा, संतोष धोका, अशोक बाफणा, सज्जन देवी चपलोत, नीतू कोठारी, विकास हिरण, उषा बांठिया, रीया सोलंकी, सविता मोटावत, रेखा मोटावत, डॉ. दीपक डागलिया, ऋद्धि मरलेचा, लक्ष्मी सिंघवी, आशा धाकड़, स्नेहलता कोठारी, गौतम बोहरा, संजय हीरावत एवं टीना राठौड़ ने मासखमण की तपस्या के प्रत्याख्यान परमपावन आचार्यवर से ग्रहण किये। पूज्यवर से सुशीला गोखरु, राकेश डुंगरवाल, विमल खीमसेर, सरला चौधरी, सुरेन्द्र सालेचा ने भी तपस्या के प्रत्याख्यान स्वीकार किये।
अणुविभा द्वारा अक्टूबर में आयोजित अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के बैनर का अनावरण परमपूज्य के सान्निध्य में हुआ। श्रद्धानिष्ठ श्राविका गटु देवी बोथरा की स्मृति में प्रकाशित पुस्तक ‘समता की सुगंध’ पूज्यवर के चरणों में समर्पित की गई। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।