उपासना

स्वाध्याय

उपासना

(भाग - एक)
जैन जीवनशैली
अणुव्रत
अणुव्रत: आचार संहिता
(1) मैं किसी भी निरपराध प्राणी का संकल्पपूर्वक वध नहीं करूँगा।
µ आत्म-हत्या नहीं करूँगा।
µ भ्रूण-हत्या नहीं करूँगा।
(2) मैं आक्रमण नहीं करूँगा।
µ आक्रामक नीति का समर्थन नहीं करूँगा।
µ विश्व-शांति तथा निःशस्त्रीकरण के लिए प्रयत्न करूँगा।
(3) मैं हिंसात्मक एवं तोड़-फोड़मूलक प्रवृत्तियों में भाग नहीं लूँगा।
(4) मैं मानवीय एकता में विश्वास करूँगा।
µ जाति, रंग आदि के आधार पर किसी को ऊँच-नीच नहीं मानूँगा।
µ अस्पृश्य नहीं मानूँगा।
(5) मैं धार्मिक सहिष्णुता रखूँगा।
µ सांप्रदायिक उत्तेजना नहीं फैलाऊँगा।
(6) मैं व्यवसाय और व्यवहार में प्रामाणिक रहूँगा।
µ अपने लाभ के लिए दूसरों को हानि नहीं पहुँचाऊँगा।
µ छलनापूर्ण व्यवहार नहीं करूँगा।
(7) मैं ब्रह्मचर्य की साधना और संग्रह की सीमा का निर्धारण करूँगा।
(8) मैं चुनाव के संबंध में अनैतिक आचरण नहीं करूँगा।
(9) मैं सामाजिक कुरूढ़ियों को प्रश्रय नहीं दूँगा।
(10) मैं व्यसन-मुक्त जीवन जीऊँगा।
µ मादक तथा नशीले पदार्थोंµशराब, गांजा, चरस, हेरोइन, भांग, तंबाकू आदि का सेवन नहीं करूँगा।
(11) मैं पर्यावरण की समस्या के प्रति जागरूक रहूँगा।
µ हरे-भरे वृक्ष नहीं काटूँगा।
µ पानी का अपव्यय नहीं करूँगा।
(अणुव्रती के लिए संबंधित वर्गीय अणुव्रतों का पालन अनिवार्य है।)
 
प्रेक्षाध्यान
 
बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध का एक लोकप्रिय शब्द हैµध्यान। ध्यान क्या? क्यों? और कैसे? इन प्रश्नों को समाहित किए बिना ध्यान का स्वरूप, उद्देश्य और उसकी पद्धति का बोध नहीं हो सकता। जब तक यह बोध नहीं होगा, ध्यान के प्रति रुचि नहीं जागेगी। रुचि बिना प्रयोग नहीं होगा और प्रयोग के बिना किसी निष्पत्ति की आशा कैसे की जा सकती है?
विकेन्द्रित विचारों को केंद्रित करने का नाम ध्यान है। दूसरे शब्दों में मानसिक एकाग्रता ध्यान है। ध्यान प्रवृत्ति से निवृत्ति की दिशा में प्रस्थान है। जो लोग केवल प्रवृत्ति का ही मूल्यांकन करते हैं, वे ध्यान का महत्त्व नहीं समझ सकते। संसारी प्राणी को प्रवृत्ति करनी होती है। प्रवृत्ति किए बिना वह रह नहीं सकता। जीने के लिए प्रवृत्ति की अनिवार्यता है। मनुष्य के लिए जितना आवश्यक है, जीवन की परम सच्चाई को समझना और पाना भी उतना ही आवश्यक है, इसके लिए निवृत्ति की अपेक्षा है। निवृत्ति के बिना न तो प्रवृत्ति का परिष्कार हो सकता है और न सत्य का साक्षात्कार हो सकता है। ध्यान निवृत्ति की दिशा में उठा हुआ एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इस दिशा में जितनी गति होगी, उतनी ही सच्चाई प्रकट होगी।
(क्रमशः)