उपासना

स्वाध्याय

उपासना

(भाग-एक)
ध्यानासन
जिस आसन में आप लम्बे समय तक सुविधापूर्वक स्थिरता से बैठ सकें, उस ध्यानासन का चुनाव करें। जैसे- पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन या वज्रासन।
ध्यान-मुद्रा- आंखों को बिना दबाव दिए कोमलता से बन्द करें। 
ब्रह्म- मुद्रा- दोनों हथेलियों को नाभि के नीचे स्थापित करें। बायीं हथेली नीचे और दायीं हथेली ऊपर रहे। (अथवा )
ज्ञान-मुद्रा- दोनों हाथों को घुटनों पर टिकाएं। अंगूठे और तर्जनी के अग्र भागों को मिलाएं। शेष तीनों अंगुलियां सीधी रहें। 
अर्हं की ध्वनि- प्रारम्भ में अर्हं की ध्वनि नौ बार करें। 
अर्हं-ध्वनि: विधि- पहले पूरा श्वास भरकर उसे धीरे-धीरे छोड़ते समय अर्हं का उच्चारण इस प्रकार करें- ‘अ’ कार का उच्चारण करते समय चित्त को नाभि पर केन्द्रित रखें, समय दो सेकंड।
‘र्ह’ का उच्चारण करते समय चित्त को आनन्द केन्द्र पर केन्द्रित करें, समय चार सेकंड। ‘म्’ की ध्वनि करते समय चित्त को विशुद्धि केन्द्र से ज्ञान केन्द्र तक ले जाएं, समय छह सेकंड। अंतिम नाद के समय चित्त को ज्ञान केन्द्र पर टिकाएं, समय दो सेकंड।
ध्येय-सूत्र
‘संपिक्खए अप्पगमप्पएणं’ का उच्चारण तीन बार करें।
आत्मा के द्वारा आत्मा को देखें। स्वयं स्वयं को देखें। 
अपने-आपको देखने के लिए ही प्रेक्षाध्यान का अभ्यास करें।
ध्यान का संकल्प
मैं चित्त-शुद्धि के लिए प्रेक्षाध्यान का प्रयोग कर रहा हूं। (तीन बार दोहराएं।)
ध्यान का पहला चरण-कायोत्सर्ग
१- शरीर को स्थिर, शिथिल और तनाव मुक्त करें। मेरुदंड और गर्दन को सीधा रखें, अकड़न न हो। मांसपेशियों को ढीला छोड़ें।
२- पांच मिनट तक काय-गुप्ति का अभ्यास करें। प्रतिमा की भांति शरीर को स्थिर रखें। हलन-चलन न करें। पांच मिनट तक पूरी स्थिरता। 
कायोत्सर्ग के दो अर्थ हैं- शरीर का शिथिलीकरण और अपने प्रति जागरूकता। प्रत्येक अवयव के प्रति जागरूक बनें।
१- चित्त को पैर से सिर तक क्रमशः शरीर के प्रत्येक भाग पर ले जाएं।
२- पूरे भाग में चित्त की यात्रा करें।
३- शिथिलता का सुझाव दें और उसका अनुभव करें। प्रत्येक मांसपेशी और प्रत्येक स्नायु शिथिल हो जाए। पूरे शरीर की शिथिलता को साधें। गहरी एकाग्रता, पूरी जागरूकता। कायोत्सर्ग।
(जब नये साधकों को अभ्यास कराना हो तो दाहिने पांव के अंगूठे से क्रमशः सिर तक प्रत्येक भाग का नाम लेते हुए शिथिल कराएं।) जैसे-दाहिने पैर के अंगूठे पर चित्त को ले जाएं- पूरे भाग में चित्त को घुमाएं, चित्त की यात्रा करें। शिथिलता का सुझाव दें- शिथिल हो जाए। (तीन बार) शिथिल हो रहा है। (तीन बार) अनुभव करें, शिथिल हो गया है (तीन बार )- इसी प्रकार पूरे कायोत्सर्ग की विधि में दिए गए ‘प्रत्येक अंगुली, पंजा, तलवा’ आदि प्रत्येक भाग के नामों को क्रमशः बोल कर पूरे शरीर को शिथिल कराएं। 
(दो मिनट बाद) अनुभव करें- शरीर का एक-एक भाग शिथिल होता जा रहा है। शरीर के प्रत्येक भाग में हलकेपन का अनुभव करें। पैर से सिर तक पूरा शरीर शिथिल हो गया है। पूरे ध्यानकाल तक कायोत्सर्ग की मुद्रा बनी रहे। शरीर को अधिक से अधिक स्थिर और निश्चल रखने का अभ्यास करें।
(कोष्ठक में दिए गए शब्द निर्देश देते समय बोलने की जरूरत नहीं है ।)