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प्रतिक्रमण कार्यशाला
कानपुर
साध्वी संगीतश्रीजी के पावन सान्निध्य में प्रतिक्रमण कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ साध्वीश्री के महामंत्रोचार से हुआ। तत्पश्चात तेरापंथी सभा के अध्यक्ष धनराज सुराणा, मंत्री संदीप जम्मड़ और पूनमचंद सुराणा ने सामूहिक रूप से मंगलाचरण की प्रस्तुति दी। सभा अध्यक्ष धनराज सुराणा ने अपने वक्तव्य में कहा कि एकमात्र जैन धर्म में कृत कार्यों की आलोचना करने का प्रावधान है, जिसे प्रतिक्रमण कहा जाता है। अन्य धर्म से यह भिन्न बात है। साध्वी संगीतश्रीजी ने उद्बोधन प्रदान करते हुए कहा कि प्रतिक्रमण आत्मा को शुद्ध करने का सफल मार्ग है। जिस प्रकार शरीर के घावों के लिए मरहम पट्टी करनी पड़ती है, उसी तरह भीतर के पापों को निकाल कर कायोत्सर्ग के माध्यम से शुद्ध किया जा सकता है। साध्वी शांतिप्रभाजी ने अपने वक्तव्य में फरमाया कि जैन धर्म में प्रतिक्रमण एक कर्म है, जिसमें पूर्व कृत दोषों की मन, वचन और काया से आलोचना की जाती है अर्थात प्रतिक्रमण कार्यों का सिंहावलोकन है, जो भविष्य के सद्मार्ग को प्रशस्त बनाता है। प्रतिक्रमण कर्म निर्जरा का अपूर्व साधन है। साध्वी मुदिताश्रीजी ने अपने वक्तव्य में दिवसीय, पाक्षिक, चातुर्मासिक और संवत्सरी प्रतिक्रमण के महत्व के बारे में बताया तथा उपस्थित समाज को प्रतिक्रमण करने की प्रेरणा प्रदान की। साध्वी कमलविभाजी ने बहुत ही सरल तरीके से प्रतिक्रमण के सभी आवश्यक के बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान की। तेरापंथी सभा की ओर से कार्यशाला में सम्मिलित सभी श्रावकों को ‘श्रावक प्रतिक्रमण’ पुस्तक भेंट की गई। कार्यक्रम का संचालन सभा मंत्री संदीप जम्मड ने किया।