समता साधना के उपासक आचार्य भिक्षु

समता साधना के उपासक आचार्य भिक्षु

मुनि कमल कुमार
आचार्य भिक्षु तेरापंथ धर्मसंघ के प्रथम आचार्य हुए। उनका जीवन साधना का पुंज था। वे एक पुण्यात्मा, धर्मात्मा, धन्यात्मा, महात्मा थे, जिन्होंने अपना संतुलन सदा बना कर रखा। उन्होंने संघर्षों को भी अपनी साधना का अंग बना लिया। गृहस्थावास में भी हमने देखा कि लघुवय में पिताजी का स्वर्गवास हो गया, युवावस्था में पत्नी का स्वर्गवास हो गया, परंतु आपने अपना मनोबल सदा बना कर रखा।
दीक्षा के पश्चात् आपने अपने जीवन को अध्ययन साधना में नियोजित कर दिया। साधना की गहराई और तलस्पर्शी आगमों का अध्ययन ही आपके जीवन को उत्तरोत्तर विकसित करता रहा। पूज्य रघुनाथजी का आप पर पूरा विश्वास था। इसीलिए दीक्षित होते ही उस वट वृक्ष के नीचे आशीर्वाद प्रदान किया कि वटवृक्ष की तरह तेरा विकास हो। ऐसा आशीर्वाद मांगने पर भी नहीं मिलता।
जब आपने स्थानक से अभिनिष्क्रमण किया, तब भी आपको रोषातुर हो, पूज्य रघुनाथजी ने शब्द कहे कि ‘आगो थारो पीछो म्हारो।’ आचार्य भिक्षु ने उसको भी आशीर्वाद ही माना और उसी का ही यह सुफल हुआ कि आज पूरे जैन समाज में तेरापंथ अपने आप में एक विशेष स्थान बना पाया है।
आचार्य भिक्षु ने प्रारंभ से ही हर प्रतिकूल स्थिति को सहन करने का लक्ष्य बना लिया था । वास्तव में प्रतिकूल स्थिति को सहन करना एक बहुत बड़ी साधना है। ऐसा कोई विरला ही कर पाता है। हम देखते हैं कि अधिक लोग परिस्थितियों को देखकर घुटने टेक देते हैं, पलायन कर जाते हैं, जीवन लीला समाप्त कर देते हैं। वे कभी भी देव दुर्लभ जन्म का आनंद नहीं ले सकते। जो व्यक्ति परिस्थितियों को देखकर उनसे समझौता करना जानता है, वह उज्जवल नक्षत्र के सामान देदिप्यमान बन जाता है।
आचार्य भिक्षु को अनेकानेक प्रतिकूल परिस्थितियों को देखने-समझने का अवसर प्राप्त हुआ। आहार, पानी, स्थान, वस्त्र, औषध ही नहीं, कहीं छाती पर मुक्का मारने वाला मिला, कहीं सिर पर ठोले मारने वाला मिला, कहीं गालियां देने वाला मिला, कहीं अपने क्षेत्र की सीमा से बाहर निकलने वाला मिला। परंतु आचार्य भिक्षु ने उसे जिनवाणी के सहारे हर स्थिति में ज्ञाता द्रष्टाभाव बना कर रखा। इसी कारण से निरंतर गतिमान बने रहे।
आज हम देखते हैं लोगों की आचार्य भिक्षु के प्रति श्रद्धा बढ़ी है। इसलिए उनका जाप करते हैं, उनकी पुण्यतिथि पर उपवास एवं धम्मजागरण करते हैं। सिरियारी समाधि स्थल पर लोगों का तांता लगा रहता है। परंतु आचार्य भिक्षु के सिद्धांतों को समझने वाले कम लोग नजर आते हैं। आचार्य भिक्षु के गीत और जयकारों से मानो धरती और आसमान को एक कर देते हैं, परंतु उनकी शुद्ध रीति-नीति को समझने वाले कम हैं। आज आवश्यकता है आचार्य भिक्षु के मूल तत्व को समझने की, जैसे साध्य और साधन की शुद्धता, एक क्रिया से अल्प पाप, बहु निर्जरा, लौकिक और लोकोत्तर धर्म की भिन्नता, मिश्र धर्म की मान्यता आदि-आदि विषयों को गहराई से समझने की।
आचार्य भिक्षु का स्पष्ट मत था कि साध्य को पाने के लिए साधन भी शुद्ध हो। एक क्रिया से या तो धर्म होगा या फिर पाप। एक ही क्रिया से ये दोनों नहीं हो सकते। लौकिक प्रवृत्तियां नितांत आवश्यक होने से भी उसे धर्म न माना जाये। वह लौकिक कर्तव्य है लेकिन पुण्य का बंध धार्मिक क्रिया से ही संभव है, सांसारिक क्रियाओं से वह संभव नहीं है।
आचार्य भिक्षु के विचारों को जिसने उदारता से समझने का प्रयास किया है, वही उनका सच्चा उपासक कहलाने का अधिकारी है। आचार्य भिक्षु के सिद्धांत अकाट्य और सार्वभौम है। तभी यह पंथ निरंतर विस्तार पा रहा है। बीज में जान होती है, तभी पौधा फलवान बन सकता है, ठीक उसी प्रकार आचार्य भिक्षु के सिद्धांतों में सार भरा हुआ है। इसलिए आज हमें बताते हुए गौरव की अनुभूति होती है कि तेरापंथ धर्मसंघ की इग्यारवीं पीढ़ी चल रही है। प्रत्येक आचार्य ने आचार्य भिक्षु के सिद्धांतों का पूरी सजगता के साथ सुरक्षा ही नहीं पालना भी की है।
मैनें आचार्य श्री तुलसी को देखा है कि उनका आचार्य भिक्षु के प्रति कितना आदर भाव था। समय-समय पर भिक्षु स्वामी के गीत बनाते ही रहते थे और जनता उन गीतों का संगान कर आध्यात्मिक पोषण प्राप्त करती रहती थी। आचार्य महाप्रज्ञजी ने तो स्वामीजी की निर्वाण स्थली सिरियारी में चातुर्मास करके जन-जन को भिक्षुमय बना दिया। आचार्य महाश्रमणजी को भी मैं देखता हूं कि उनका प्रिय शब्द है ‘बाबा’। हर समय आचार्य भिक्षु के प्रति इतने श्रद्धावान रहते हैं, इसीलिए लोग आचार्यश्री महाश्रमणजी को भी भिक्षु स्वामी वत सम्मान देते हैं।
आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आचार्य भिक्षु जन्मस्थली पर आचार्य भिक्षु का 300वां जन्म दिवस मनाने का निर्णय कर केवल कंटालिया कांठावासियों को ही नहीं,आचार्य भिक्षु के अनुयायियों को एक ऐसा उपहार प्रदान किया है कि लोग युगों-युगों तक भिक्षु स्वामी के साथ आचार्यश्री महाश्रमणजी का भी श्रद्धा-भक्ति के साथ स्मरण करते रहेंगे। मैं आचार्य भिक्षु के 221 वें महाप्रयाण दिवस पर श्रद्धा से स्मरण-नमन करते हुए कामना करता हूं कि जब तक मुक्ति की प्राप्ति न हो तब तक आपके बताए गये पथ पर निरंतर गतिमान बना रहूं।