मोक्ष प्राप्ति के लिए आठों कर्मों का क्षरण आवश्यक : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मोक्ष प्राप्ति के लिए आठों कर्मों का क्षरण आवश्यक : आचार्यश्री महाश्रमण

5 सितम्बर, 2023 नन्दनवन-मुम्बइ
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल प्रेरणा प्रदान कराते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र के चौदहवें उद्देशक के सातवें सूत्र में अनेक प्रकार के विषय बताये गये हैं। यह आगम तत्त्व ज्ञान से भरा पड़ा है। भगवती सूत्र और पन्नवणा सूत्र मानो तत्त्वज्ञान से भरी दोनों बहने हैं। 
भगवती सूत्र में देवों के अनेक प्रकार बताये गये हैं। देवों में सर्वोत्कृष्ट देव अनुत्तरोपातिक देव होते हैं। प्रश्न किया गया कि इन देवों को अनुत्तरोपातिक देव क्यों कहा जाता है? उत्तर दिया कि उनके अनुत्तर शब्द, अनुत्तर गंध, अनुत्तर रस और अनुत्तर स्पर्श उपलब्ध होते हैं। फिर प्रश्न किया गया कि इतने ऊपर पहुंचने के बाद भी क्या कारण हुआ कि वे मोक्ष में नहीं जा सके और देवगति में उत्पन्न होना पड़ा? कितने कर्म उनके शेष रह गये थे?
उत्तर दिया गया कि उनके बहुत थोड़े से कर्म शेष रह गये थे। जैसे एक श्रमण अगर एक बेला (दो दिन का उपवास) कर जितने कर्म क्षय करता है, उतने कर्म शेष रहे थे, पर उनके पास दो दिन का भी समय नहीं रहा, आयुष्य पूर्ण हो गया। ऐसी स्थिति में उन्हें अनुत्तरोपातिक देव के रूप में पैदा होना पड़ा। मोक्ष प्राप्ति के लिए आठों कर्मों का क्षरण आवश्यक होता है। 
आचार्यवर ने इस प्रसंग के माध्यम से प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि साधु का धन तपस्या, साधना और संवर है, उसका पालन हो। तपस्या-संवर ऐसा धन है कि वो महाधनी होते हैं। साधु के पांच महाव्रत अमूल्य रत्न हैं। इसके सामने गृहस्थों के करोड़ों के हीरे भी ना कुछ के समान होते हैं। साधना और महाव्रतों की तुलना में इनका कोई मूल्य नहीं होता। वे सौभाग्यशाली होते हैं, जिन्हें साधुपना प्राप्त हो जाता है। क्षयोपशम के बिना, भाग्य के बिना साधुपना प्राप्त नहीं होता। साधुपना प्राप्त होने के बाद शुद्ध रूप से साधुपना पालने वाला धन्य-धन्य हो जाता है। धर्म की सम्पति गृहस्थ जीवन में भी बढ़ती रहे। उसके लिए सम्यकत्व के साथ त्याग-तपस्या का विकास हो। बारहव्रती श्रावक बनें, शुभ भाव में रहें। 
श्रावक के तीन मनोरथ होते हैं। एक उम्र के बाद परिग्रह का अल्पीकरण कर हल्का बनने का प्रयास करें। साधुपना आ जाये, ऐसी भावना रखें। अंतिम समय संलेखना-संथारे में जाये। परिणाम शुद्ध रहे। आगे भी आत्मा अच्छी रहे। परिवार से निवृत्ति ले धर्म-अध्यात्म की साधना करें। वह हमारे लिए श्रेयस्कर हो सकता है। 
पूज्यवर ने कालूयशोविलास का रसास्वाद कराते हुए पूज्य कालूगणी के द्वारा संवत्सरी को किये गये उपवास और पारणे के प्रसंग को व्याख्यायित किया। 
जैन विश्व भारती के वार्षिक अधिवेशन का आयोजन पूज्यवर की सन्निधि में हुआ। पूज्यवर ने आशीर्वचन प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन विश्व भारती की यात्रा प्रवर्धमान है। गुरुदेव श्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का तो कितना प्रवास वहां हुआ था। आचार्यश्री तुलसी ने तो लगातार दो चातुर्मास वहां पर किये। ऐसा लगता है जैन विश्व भारती ने काफी विकास किया है। सरलता से सारे कार्य गतिमान हैं। समणियों का भी मुख्यालय है। पारमार्थिक शिक्षण संस्था में मुमुक्षु बहनों का अध्ययन भी चलता है। एक अच्छी सम्पदा तेरापंथ समाज को प्राप्त है। यह संस्था बहुआयामी और महत्वपूर्ण है। यह संस्था धार्मिक, आध्यात्मिक प्रगति करती रहे। पूज्यवर ने तपस्वियों को तपस्या के प्रत्याख्यान करवाये। 
जैन विश्व भारती द्वारा संचालित पुरस्कार घोषणा सूची
आचार्य महाप्रज्ञ अहिंसा सम्मान
- राजगुरु राकेशभाई, सद्गुरु आश्रम, सूरत 
प्रज्ञा पुरस्कार
- राजकुमार नाहटा, दिल्ली
आचार्य तुलसी अनेकान्त सम्मान
- बनेचंद मालू, कोलकाता
संघ सेवा पुरस्कार
- ख्यालीलाल तातेड़, मुंबई एवं  किशनलाल डागलिया, मुंबई
जैन विद्या पुरस्कार
- प्रेमलता सिसोदिया, मुंबई
जय तुलसी विद्या पुरस्कार
- श्री जैन श्श्वेताम्बर तेरापंथी बाल विहार, चु्रू
आचार्यश्री महाश्रमणजी के संसार- पक्षीय अग्रज सूरजकरण दूगड़ के सुपुत्र 36 वर्षीय सुपुत्र नरेश दूगड़ के आकस्मिक देहावसान के संदर्भ में उनके परिजन संबल प्राप्ति हेतु गुरु सन्निधि में उपस्थित हुए। दूगड़ परिवार एवं परिजनों की ओर से स्व0 नरेश दूगड़ के पिताजी सूरजकरण दूगड़, श्रीचंद दूगड़, महेन्द्र दूगड़, ललित दूगड़, तेजकरण दूगड़, कमल दूगड़, विमल दूगड़, धर्मचन्द गुलगुलिया, लखपत गुलगुलिया एवं विजय बोथरा ने दिवंगत नरेश दूगड़ के सद्गुणों को याद करते हुए उनकी आत्मा के प्रति श्रद्धांजलि समर्पित की। आचार्यश्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष मदनलाल तातेड़, जैन विश्व भारती के मंत्री सलिल लोढा़, मुम्बई सभा के पूर्व अध्यक्ष भंवरलाल कर्णावट, सुमतिचंद गोठी एवं मरुधर मित्र परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंघी ने दिवंगत आत्मा को श्रद्धा सुमन समर्पित करते हुए परिवारजन के प्रति संवेदना के भाव व्यक्त किये। 
साध्वी प्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी, मुख्य मुनिश्री महावीरकुमारजी, साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी एवं स्व0 नरेश दूगड़ की संसारपक्षीया बहिन साध्वी चारित्रयशाजी व साध्वी सुमतिप्रभाजी ने भी दिवंगत आत्मा के प्रति अपनी आध्यात्मिक मंगलकामना अभिव्यक्त की। 
पूज्यवर ने आध्यात्मिक संबल प्रदान कराते हुए फरमाया कि हमारी सृष्टि की कुछ नियम-व्यवस्थाएं हैं, ऐसा प्रतीत हो रहा है। आत्मा जन्म लेती है तो जन्म के साथ मृत्यु का अनिवार्यतया संबंध होता है। पता नहीं कितने पिछले जन्मों के बन्धे कर्म उदय में आ जाते हैं। शुभ-अशुभ स्थितियां आ सकती है। अच्छे प्राणी की देवों को भी कामना रहती है। दूगड़ परिवार में युवावस्था का व्यक्ति चला गया, मेरा संसारपक्षीय भतीजा था। वैसे पूरा संघ हमारा परिवार है। मृत्यु का होना निश्चित है, पर कब होगी, जानना अनिश्चित है। 
ज्ञानी को कुछ ज्ञान हो भी जाये तो भी ऐसी बात प्रकट न करना ही अच्छा है। आदमी समता और शक्ति में रहे। नियति के नियम के आगे झुकना ही होता है। एक घटना से परिवार में अनेक सदस्य प्रभावित हो सकते हैं। संसार के रिश्ते जन्म-मरण की परम्परा के साथ जुड़े रहते हैं। आदमी अल्प आयुष्य प्राप्त कर भी प्रिय हो सकता है। आत्मा शाश्वत है, संयोग-वियोग जुड़े रहते हैं। ऐसी स्थिति में सभी पारिवारिकजन समता, शान्ति और मनोबल बनाए रखें। दिवंगत आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना। 
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमारजी ने किया।