
अणुव्रत के छोटे नियमों से मानव जीवन का कल्याण संभव : आचार्यश्री महाश्रमण
16 सितम्बर 2023 नन्दनवन, मुम्बई
पर्युषण महापर्व के पांचवें दिन अणुव्रत चेतना दिवस पर अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा के क्रम को आगे बढ़ाते हुए फरमाया कि मरीचि ने भगवान ऋषभ के साधु जीवन से मुक्ति ले ली और साधक के रूप में जीवन यापन करने लगा। मरीचि को जब सूचना मिली कि वह तीर्थंकरए वासुदेव और चक्रवर्ती बनने वाला है तो यह खुशी उसके गर्व का कारण बन गयी। कषाय रूप में अहंकार का भाव आया हैए वह परित्याज्य होना चाहिये। मनुष्य को ज्ञानए तप आदि का घमंड नहीं करना चाहिये। साधक मरीचि एक बार बीमार होता है तो उसकी सेवा करने वाला कोई नहीं थाए क्योंकि वह अकेले साधना कर रहा था। संघ होता है तो एकदूसरे की आवश्यकतानुसार सेवा.सहयोग हो सकता है। सेवा को तो परम धर्म कहा गया है। सौभाग्य से प्राप्त इस मानव शरीर से किसी की पवित्र सेवा हो तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है। साधु का जीवन तो कृत्य क्षयोपशम है। पुण्य अलग चीज हैए क्षयोपशम अलग चीज है। पुण्य से नामए ख्यातिए पद मिल सकता है। साधुपणा या देशविरति क्षयोपशम से मिलती है। हमारे जीवन में सेवा की अपेक्षा हो जाती है। सेवा का अपना महत्व है। सेवा की भावना वर्धमान होती रहे।
नयसार का जीव बीच के चौथे भव से पंद्रहवें भव तक देवगति और मनुष्य गति में भ्रमण करता है। सोलहवें भव में नयसार की आत्मा चारित्र ग्रहण कर लेती है और निदान भी कर लेती है। निदान का आगे फल भी मिलता है।
सतरहवें भव में नयसार का जीव पोतनपुर के राजा प्रजापति की रानी मृगावती के गर्भ से त्रिपृष्ठ के रूप में पैदा हुआ। राजा की अन्य रानी अचल के गर्भ से अचल नाम की संतान भी थी। राजा के दोनों बेटे विनीत और आज्ञाकारी थे। वे शिक्षा आदि ग्रहण कर राजा के सहयोग के लिए अच्छे ढंग से तैयार हो गए। बेटे बड़े होकर सहयोग करने वाले हो जाते हैंए तो वह पिता कितना सौभाग्यशाली होता है। उस समय एक बलशाली राजा अश्वग्रीव जो तीन खण्डों का अधिपति था और वह युद्ध का भी शौकीन था। एक बार उसने ज्योतिषियों से अपने भविष्य के बारे में चर्चा की। वैसे ज्योतिष में ज्यादा नहीं उलझना चाहियेए सत्पुरूषार्थ करते रहना चाहिये। भविष्य की अनावश्यक चिन्ता नहीं करनी चाहिये। अच्छी साधनाए स्वाध्याय और सेवा करें।
अणुव्रत चेतना दिवस के संदर्भ में प्रेरणा प्रदान कराते हुए पूज्यवर ने फरमाया कि आज पर्युषण के अन्तर्गत अणुव्रत चेतना दिवस है। श्रावकों के व्रतों में पांच अणुव्रत आते हैं। श्रावक जीवन में बारह व्रतों का भी महत्व है। श्रावक को 50 वर्ष आने के बाद वर्ष में कम से कम 365 समायिक करनी चाहिये। पर्युषण में तो ज्यादा समाई की कमाई करनी चाहिये। 60 वर्ष के बाद सुमंगल साधना की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करें। जीवन में व्रत बढ़ेए ऐसा प्रयास होता रहे।
पूज्यवर से तपस्वियों ने अपनी धारणानुसार तपस्याओं के प्रत्याख्यान ग्रहण किये।
मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने ष्संयम का हो जागरणष् गीत का संगान किया। साध्वी प्रमुखाश्री विश्रुतविभाजीए साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने अणुव्रत चेतना दिवस पर प्रेरणाएं प्रदान करवायी। साध्वी वैराग्यप्रभाजीए साध्वी समग्रप्रभाजी आदि साध्वियों ने अणुव्रत चेतना दिवस के संदर्भ में गीत का संगान किया। मुनि राजकुमारजीए मुनि रजनीशकुमारजीए मुनि नम्रकुमारजी ने अभिव्यक्तियां दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।