आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे संतों का मिलना देश की जनता का सौभाग्य: मोहन भागवत
21 सितम्बर 2023 नन्दनवन, मुम्बई
जिन शासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए फरमाया ने कि प्रश्न होता है कि जीवन क्यों जीयें? उद्देश्य क्या है? जीवन तो सभी जीव जीते हैं पर मानव एक विशिष्ट प्राणी होता है। आदमी के पास चिंतन की क्षमता अपने- अपने स्तर की होती है। जीवन उद्देश्यपूर्ण हो। अनेक संदर्भों में अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित किया जा सकता है लेकिन मानव जीवन में पूर्व कर्म क्षय करने का भी एक लक्ष्य हो। आत्मवाद का सिद्धान्त है कि आत्मा शाश्वत है। भगवद् गीता में भी बताया गया है कि आत्मा अक्लेद्य, अशोष्य, अदाह्य है। आत्मा नया जन्म धारण करती रहती है। आत्मा के जन्मों में कर्माें का बंधन होता है। मानव जीवन का परम लक्ष्य कर्माें को काटने का होना चाहिये। भारत में संत परंपरा में साधु बनने का लक्ष्य कर्म काटने का ही होता है। अहिंसा, संयम और तपस्या की साधना कर्म काटने के लिए की जाती है। आत्मा विशुद्धि को प्राप्त कर सकती है।
अभी पर्युषण पर्व के अंतर्गत संवत्सरी महापर्व आया था। कल क्षमायाचना का दिन था। तेरापंथ धर्मसंघ को शुरू हुए 263 वर्ष हो चुके है। आचार्य भिक्षु हमारे प्रथम आचार्य थे। अष्टम् आचार्य कालूगणी का आज ही के दिन भाद्रव शुक्ला षष्टम् को 87 वर्ष पूर्व महाप्रयाण हुआ था। उनके दो शिष्य आचार्य बने थे। आचार्य तुलसी व आचार्य महाप्रज्ञजी। पूज्य कालूगणी के समय ही जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा का प्रादुर्भाव हुआ था। लगभग राष्ट्रीय स्वयं सेवक का भी उस समय प्रादुर्भाव हुआ था। भगवान महावीर एक उच्च पुरूष थे जो सर्व मानव जाति के उद्धारक थे। जैन शासन के वे अंतिम तीर्थंकर थे। उनके निर्वाण का 2550वां वर्ष भी चल रहा है।
दुनिया में अनेक महापुरूष राह बताने वाले होते हैं। भारत में अनेक ग्रंथ हैं जिनसे अध्यात्म का शिक्षण मिलता रहे। ग्रंथ, पंथ और संत-संपदा का अच्छा लाभ उठाने का प्रयास किया जाये। संतों के मार्गदर्शन से समाज भी स्वस्थ रह सकता है। गृहस्थ जीवन में भी अच्छा जीवन जीयंे। आचार्य तुलसी द्वारा प्रारंभ किये गये। अणुव्रत आन्दोलन का भी 75वां वर्ष मनाया जा रहा है। अणुव्रत के छोटे-छोटे नियम जीवन में हो। मनुष्य जन्म दुर्लभ बताया गया है। उसका हम अच्छा उपयोग करें। जिनको साधुत्व प्राप्त हो जाता है। वह तो बहुत ऊंची बात हो जाती है। गृहस्थ जीवन में भी एक सीमा तक अहिंसा रहे। संकल्पपूर्वक हिंसा न हो।
आज के कार्यक्रम में विशेष रूप से समागत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने अपने भाव व्यक्त करते हुए कहा कि आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे राष्ट्रसंत के समक्ष बोलना मैं आवश्यक नहीं समझता, किन्तु आचार्यश्री की आज्ञा का पालन करते हुए बोल रहा हूं। धर्म की भाषा कोई भी हो, सद्-असद् का मापदंड सबका समान है। संत हमें हमेशा पथदर्शन देते रहते हैं। कल्याण त्याग में है, भोग में नहीं। छोड़ने से अमरत्व की प्राप्ति होती है। हमारा देश सौभाग्यशाली है कि हमें आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे संत मिले हैं। हमें सदाचार से परमार्थ करते हुए अणुव्रत का पालन करना चाहिये। अच्छे मनुष्य तो बुराई में से भी अच्छाई निकाल लेते हैं। परिवार समाज की ईकाई है। असत्यता की दुनिया में सत्य को निष्कासित किया जा रहा है। संतों की प्रेरणा से सदाचार के साथ मनुष्य जीवन का सही उपयोग करना सीखें। आचार्यश्री जैसे संत जगह-जगह विचरण कर जीवन का सार बतायेंगे तो लोगों का कल्याण हो सकता है। भय का निवारण धर्म से ही हो सकता है। मैं अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा को चार्ज करने के लिए आचार्यश्री महाश्रमणजी के पास आता हूं।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर- संघचालक मोहन भागवत को संबोधित करते हुए पूज्यवर ने फरमाया कि आज मोहनजी भागवत का समागमन हुआ है। आज के कार्यक्रम में भागवतजी का भी संभाषण हुआ। विशिष्ट व्यक्तित्व विशिष्ट स्थान पर हो, फिर मनीषी हो, चिन्तन की प्रधानता हो, व्यवहार से भी लगे कि एक महान व्यक्तित्व है। ऐसे व्यक्तियों के भाषण से मार्गदर्शन मिल सकता है। प्रचारक का भी जीवन कुछ अंशों में साधु जैसा ही संयमी होता है। ज्ञानी पुरुषों के संपर्क से नया चिन्तन नया पथदर्शन प्राप्त हो सकता है। आप राष्ट्र, धर्म की खूब सेवा करते रहंे। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अच्छा धार्मिक आध्यात्मिक कार्य करता रहे।
पूज्यवर से तपस्वियों ने अपने धारणानुसार तपस्या के प्रत्याख्यान ग्रहण किये। आचार्य महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति अध्यक्ष मदनलाल तातेड़ ने मोहनजी भागवत के स्वागत में अपनी अभिव्यक्ति दी एवं साहित्य भेंट कर मोहनजी भागवत का सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।