आसक्ति से अनासक्त चेतना का विकास करने का पर्व है -पर्युषण महापर्व
सिवानी, हरियाणा
शासनश्री साध्वी कुंथुश्रीजी के सान्निध्य में तेरापंथी सभा, सिवानी के तत्वावधान में तेरापंथ भवन में पर्युषण महापर्व के कार्यक्रम सानन्द सम्पन्न हुए। शासनश्री साध्वी कुंथुश्रीजी ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा- ‘पर्युषण पर्व महान पर्व है, आलौकिक पर्व है, बाहर से भीतर, वासना से उपासना की ओर जाने एवं आसक्ति से अनासक्त चेतना का विकास करने का पर्व है। इन दिनों विशेष धर्माराधना की जाती है। आगम वाचन, प्रवचन, श्रवण, प्रतिक्रमण, तप, त्याग, प्रत्याख्यान, पौषध, जप आदि करना ही इस पर्व की साधना-आराधना है।’
पर्युषण पर्व के प्रथम दिन खाद्य संयम दिवस पर साध्वीश्रीजी ने कहा- ‘भोजन हमारे जीवन का पहला तत्व है, शरीर के साथ भोजन का घनिष्ठ सम्बन्ध है। विकास का पहला द्वार है, हमारे व्यक्तित्व का घटक है, वृत्तियों का निर्माता है, पर उद्देश्य आत्महित होना चाहिए। केवल स्वाद के लिए चटपटे गरिष्ट एवं तली हुए वस्तुओं का अधिक प्रयोग नहीं करना चाहिए। साध्वीश्रीजी ने आगे भगवान महावीर के पूर्व भव नयसार के भव का सुन्दर विवेचन किया। साध्वी सुमंगलाजी एवं साध्वी सुलभयशाजी ने सुमधुर गीत का संगान किया। साध्वी सम्बोधयशाजी ने खाद्य संयम पर सारगर्भित विचारों की प्रस्तुति दी।
स्वाध्याय दिवस पर शासनश्री साध्वी कुंथुश्रीजी ने कहा- ‘पर्वाधिराज पर्युषण आत्मावलोकन का पर्व है। आत्मा के विषय में अनुप्रेक्षा चिंतन-मनन करना स्वाध्याय है। शास्त्रों का मर्यादापूर्वक अध्ययन करना स्वाध्याय है। स्वाध्याय से ज्ञानावरणीय कर्म क्षीण होता है। ज्ञान का विकास होता है। मानसिक संबल प्राप्त होता है। स्वाध्याय से हमारा दृष्टिकोण सकारात्मक होता है।’ साध्वीश्रीजी ने भगवान महावीर के पूर्वभव मरीचिकुमार के भव का रोचक ढ़ंग से विवेचन किया। साध्वी सुलभयशा ने कहा- ‘स्वाध्याय अन्धकार से प्रकाश की ओर प्रस्थान करवाता है। भीतर का कचरा निकालता है।’ साध्वीश्रीजी ने मर्यादा पत्र हाजरी का वाचन किया। सभाध्यक्ष रतनलाल जैन ने श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन श्रावक समाज को करवाया।
सामायिक दिवस पर शासनश्री साध्वी कुंथुश्रीजी ने कहा- ‘भगवान महावीर से पूछा गया- भंते!सामायिक क्या है? सामायिक का अर्थ क्या है? भगवान ने फरमाया- सामायिक का अर्थ है समता की साधना, आत्मा में रहना, अपनी आत्मा में स्थित होने का अभ्यास करना। सामायिक करना प्रत्येक श्रावक का पुनीत कर्तव्य है। सामायिक से भावशुद्धि, चित्त समाधि, कषाय की मन्दता, मन की एकग्रता एवं तनाव मुक्ति होती है। कर्मजा शक्ति का विकास होता है। पुनिया श्रावक की एक सामायिक जगत प्रसिद्ध है।’ साध्वी सुलभयशाजी के मधुर गीत से कार्यक्रम प्रारंभ हुआ।
वाणी संयम दिवस पर शासनश्री साध्वी कुंथुश्रीजी ने कहा- ‘पर्युषण पर्व अध्यात्म प्रधान, त्याग प्रधान एवं संयम प्रधान पर्व है। इसे तप, जप, त्याग एवं आध्यात्मिक अनुष्ठान से मनाया जाता है। कब बोलंे, कितना बोलंे, कैसे बोलें -यह विवेक होना चाहिए। किसी के दिल में ठेस पहुंचे, ऐसी भाषा नहीं बोलें। जीवन में कई प्रसंग ऐसे आते हैं, जहां मौन रहना श्रेयस्कर होता है। मौन से ऊर्जा उत्पन्न होती है।’ साध्वीश्रीजी ने भगवान महावीर के सौलहवें भव विश्वभूति के भव का विस्तार से विवेचन किया। साध्वी सम्बोधयशाजी ने वाणी संयम पर अपने विचार अभिव्यक्त किये।
अणुव्रत चेतना दिवस पर शासनश्री साध्वी कुंथुश्रीजी ने कहा- ‘आज का दिन अणुव्रत चेतना का दिन है। अणुव्रत क्या है- एक वाक्य में इसका अर्थ हो सकता है कि चरित्र विकास के लिए किए जाने वाले संकल्प का नाम है- अणुव्रत अर्थात छोटे-छोटे व्रत एवं नियम। अणुव्रत का दर्शन क्या है, पौराणिकता क्या है, प्रतीक क्या है, उपासना पद्धति क्या है- इन सबकी जानकारी सभी को होनी चाहिये। अणुव्रत लोकल ट्रेन की तरह सबके लिए है, हर कोई जा सकता है, सर्व-साधारण भी अणुव्रतों को अपना सकता है। साध्वीश्रीजी ने भगवान महावीर के अठारहवें भव का रोचक वर्णन किया। साध्वी सुमंगलाश्रीजी ने भगवान ऋषभ के पूर्व भवों पर प्रकाश डाला।
जप दिवस पर शासनश्री साध्वी कुंथुश्रीजी ने कहा- ‘व्यक्ति बदलना चाहता है। बदलाव का एक सूत्र है- नाद योग। जप में वह शक्ति है कि व्यक्ति चाहे जैसा बन सकता है। तन्मयता, एकग्रता एवं विधि संहिता से जप करने से ऊर्जा प्राप्त होती है। मनवांछित कार्य भी सिद्ध हो सकते हैं। मंत्र जप से अपनी आत्मा को प्रभावित करें। आत्माराधना करें।’ साध्वीश्रीजी ने भगवान महावीर के पूर्व भव त्रिपृष्ठ वासुदेव के भव का विवेचन किया। साध्वी सुमंगलाश्रीजी ने 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के पूर्व भव का विशद विवरण प्रस्तुत किया। साध्वी सुलभयशाजी ने मधुर गीत से मंगलाचरण किया।
ध्यान दिवस पर शासनश्री साध्वी कुंथुश्रीजी ने कहा- ‘आज का युग टेंशन का युग है, शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक तनावों को दूर करने के लिए आचार्य महाप्रज्ञजी का अनुपम अवदान है- प्रेक्षाध्यान। एक आलम्बन पर अपने आपको स्थित करना, एकाग्र करना ध्यान है। ध्येय में एकाग्र होना, अपने आपको देखना, स्वयं से स्वयं को देखना ही ध्यान है। ध्यान के पांच हेतु हैं- आध्यात्मिक चेतना का विकास, मन की प्रसन्नता, चित्त की निर्मलता, आवेश-आवेग पर नियंत्रण एवं अंतदृष्टि का जागरण। प्रेक्षाध्यान वर्तमान में जीना सिखाता है। तनाव मुक्त जीना सिखाता है।’ साध्वीश्री सुलभयशाजी ने प्रारम्भ में प्रेक्षाध्यान के प्रयोग करवाये।
संवत्सरी महापर्व पर शासनश्री साध्वी कुंथुश्रीजी ने कहा- ‘जैन इतिहास के अनुसार संवत्सरी का दिन अहिंसा की प्रतिष्ठा का दिन है। यह अध्यात्म का शिरोमणि पर्व है। यह साधना-आराधना का पावन पर्व है, कषाय विजय का पर्व है, अतीत के पर्यालोचन का पर्व है एवं राग द्वेष की ग्रन्थियों को खोलने का पर्व है। क्या किया, क्या कर रहे हैं और क्या करणीय है, इन बिन्दुओं पर चिन्तन करंे, आत्मनिरीक्षण करें।’ साध्वीश्री ने संवत्सरी पर्व का विशद ऐतिहासिक विवेचन किया एवं भगवान महावीर की साधना का रोमाचंक वर्णन करते हुए महासती चन्दनबाला के जीवन प्रसंग को संगीत की स्वर लहरियों के साथ प्रभावी ढ़ंग से प्रस्तुत किया। तेरापंथ की गौरवशाली आचार्य परम्परा आचार्य भिक्षु से आचार्य महाश्रमणजी तक का गौरवपूर्ण सफरनामा प्रस्तुत किया। साध्वी सुमंगलाश्रीजी ने भगवान महावीर के जन्म से लेकर दीक्षा तक जीवन चरित्र का वाचन किया एवं जैन धर्म के प्रभावक आचार्यों का वर्णन किया। साध्वी सुलभयशाजी ने गीत का संगान किया। तोषाम से समागत महासभा सदस्य पवन जैन, तोषाम सभाध्यक्ष नरेन्द्र जैन, राजेन्द्र जैन तीन भाइयों ने भावपूर्ण गीत प्रस्तुत किया। सभी विषयों पर साध्वीवृंद के प्रासंगिक गीत एवं व्यक्तव्य हुए। रात्रि में प्रतिदिन सामूहिक प्रतिक्रमण का क्रम चला।
क्षमायाचना दिवस पर शासनश्री साध्वी कुंथुश्रीजी ने धर्म परिषद् को सम्बोधित करते हुए कहा- ‘क्षमा वीरों का भूषण है, कायर व्यक्ति क्षमा की गरिमा से मंडित नहीं हो सकता, क्षमा वही कर सकता है, जिसका हृदय विशाल हो, जिसमें सहज-सरलता हो। क्षमा वीरत्व की अलंकृति है। मानव गलती का पुतला है, चाहे अनचाहे ज्ञात-अज्ञात में त्रुटियां हो जाती हैं, उसके प्रतिकार के लिए अनुपम अवदान है खमत-खामणा। आज के दिन सभी प्रणियों के प्रति हार्दिक अन्तकरण से खमत-खामणा करें। जिसके प्रति मनमुटाव हो उससे विशेष क्षमायाचना करें।’ साध्वीश्रीजी ने समस्त श्रावक समाज से साध्वियों की तरफ से खमत-खामणा किया।
तेरापंथी सभाध्यक्ष रतनलाल जैन ने साध्वीवृंद तथा समस्त श्रावक समाज से खमत-खामणा किया। तेरापंथी महासभा के सदस्य पवन जैन, तोषाम ने अपने विचार प्रस्तुत किये। पर्युषण पर्व के आठांे ही दिन तप-जप, स्वाध्याय-ध्यान का नियमित क्रम चला। छोटे से क्षेत्र में 51 पौषध 100 से अधिक उपवास हुए। चातुर्मासकाल में 10 अठाई हो चुकी है।