धर्म के क्षेत्र में उत्तम पुरुष होते हैं तीर्थंकर: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

धर्म के क्षेत्र में उत्तम पुरुष होते हैं तीर्थंकर: आचार्यश्री महाश्रमण

23 सितम्बर 2023 नन्दनवन, मुम्बई
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र की विवेचना कराते हुए फरमाया कि प्रश्न किया गया है- ‘भन्ते! सारे स्वप्न कितने प्रज्ञप्त हैं। कितने होते हैं?’ उत्तर दिया गया- ‘गौतम! कुल 72 स्वप्न बताये गये हैं। इन 72 स्वप्नों के भी दो विभाग हैं- महास्वप्न और सामान्य स्वप्न। महास्वप्न संख्या में 30 हैं, सामान्य स्वप्न 42 बताये गये हैं। कई स्वप्न महत्वपूर्ण प्रतिष्ठित होते हैं। जैसे गजराज, मृगराज सिंह, वृषभ, अग्नि के स्वप्न को देखना। दुनिया में कुछ विशिष्ट पुरुष होते हैं। जैसे तिरेसठ श्लाका पुरुष। आगम में 54 उत्तर पुरुष बताये गये हैं- 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 वासुदेव और 9 बलदेव। धर्म के क्षेत्र में तीर्थंकर उत्तम पुरुष होते हैं। भौतिकता के क्षेत्र में ऐश्वर्य आदि भौतिक पदार्थ होते हैं। तीर्थंकरों का कुछ अतिशय, बाह्य विशिष्टता भी होती है। केवली तो सिर्फ धर्म के क्षेत्र में ही विशिष्ट होते हैं। वासुदेव बलदेव भाई-भाई होते हैं।
तीर्थंकर की माताएं जब तीर्थंकर गर्भ में प्रवेश करते हैं, तब 14 महास्वप्न देखकर जागृत होती हैं। चक्रवर्ती की माताएं भी 14 महास्वप्न देखती हैं। तीर्थंकर के समान ही भौतिक जगत के उच्च पुरुष चक्रवर्ती होते हैं। तीर्थंकर और चक्रवर्ती की माताओं के स्वप्न में कुछ अन्तर होता है। वासुदेव की माता 7 महास्वप्न देखती है। बड़ा आदमी दो प्रकार से हो सकता है- राजा बनना या तीर्थंकर बनना।
तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य प्रवर्तक आचार्यश्री भिक्षु की मां दीपांजी ने भी सिंह का स्वप्न देखा था। जब आचार्य भिक्षु की दीक्षा की बात आई तो उनकी माता ने दीक्षा देने से यह कहकर मना कर दिया कि मैंने सिंह का स्वप्न देखा है तो मेरा पुत्र तो राजा बनेगा। बाद में उनके गुरु ने समझाया कि यह संत बनकर भी सिंह की तरह दहाड़ेगा, तब माता ने दीक्षा अनुमति दी। दीक्षा के पश्चात आगे चलकर किस प्रकार महामना आचार्यश्री भिक्षु ने धर्म क्रांति कर तेरापंथ धर्मसंघ की स्थापना की और हमारे आद्य प्रणेता, अनुशास्ता बन गए।
पूज्यवर से तपस्वियों ने अपनी-अपनी धारणा के अनुसार तपस्या के प्रत्याख्यान ग्रहण किये। तेरापंथ कन्या मंडल की कन्याओं द्वारा प्रस्तुति दी गई।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमारजी ने किया।