विकास के पर्याय थे आचार्य तुलसी : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

विकास के पर्याय थे आचार्य तुलसी : आचार्यश्री महाश्रमण

विकास महोत्सव का आयोजन

नंदनवन, 24 सितंबर, 2023
आचार्य तुलसी के परंपर पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमण जी जिनको गुरुदेव तुलसी ने संघ की ऊँचाइयों तक पहुँचाया, आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने जिन्हें अपना दायित्व सौंपा ऐसे युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि वर्धमान होने की अनुशंसा आगम श्लोक में की गई है। वर्धमानता अच्छी भी होती है, तो गलत भी हो सकती है। सम्यक् दिशा में वर्धमानता है, तो अच्छी बात है। गलत दिशा में वर्धमानता अश्रेयस्कर हो सकती है। विकास अच्छा लगता है, विकास की दिशा सही होनी चाहिए। विकास अध्यात्म और भौतिकता दोनों में हो सकता है। भौतिक विकास समाज-देश के लिए अच्छा हो सकता है, तो अध्यात्म का विकास अपेक्षित होता है आत्म जगत के कल्याण के लिए। हमारा तेरापंथ धर्मसंघ अध्यात्म की भूमि पर संगठित धर्मसंघ है। आचार्य भिक्षु ने कहा प्रभो! महावीर पंथ तो तुम्हारा है। हम तो चलने वाले पथिक हैं। तेरापंथ नाम में भी समर्पण निहित है। तेरापंथ नाम का विश्लेषण करें तो इसमें अममत्व की बुद्धि का दर्शन होता है। अहंकार रूप में मेरा-मेरा नहीं है। अनासक्तता और भक्तिमत्ता से जुड़ा यह तेरापंथ है। तेरा शब्द की अनेक शब्दों में व्याख्या की गई है।
सूत्र और शब्द की व्याख्या अपने ढंग से हो सकती है। तेरापंथ की व्याख्या का एक आयाम है, तेरह साधु, तेरह श्रावक और तेरह नियम। आचार्य भिक्षु की उत्तरवर्ती आचार्य परंपरा में अष्टम आचार्य कालूगणी हुए। कालूगणी ने अभूतपूर्व कार्य यह कर दिया कि लगभग 22 वर्ष की छोटी उम्र के संत को युवाचार्य बना दिया। तेरापंथ की यह अभूतपूर्व घटना हुई है, जो इतनी उम्र में मुनि तुलसी को युवाचार्य पद पर स्थापित कर दिया। आचार्यश्री तुलसी नए-नए उन्मेष लाने वाले, विकास के आयाम उद्घाटित करने वाले आचार्य थे। शिक्षा का अपने ढंग से विकास हुआ तो दीक्षाओं का भी विकास हुआ। परीक्षा का भी कार्यक्रम बना। शिक्षा के अनेक आयाम आए। दीक्षा के संदर्भ में समण दीक्षा भी एक नए आयाम के रूप में आया। अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान, जीवन-विज्ञान आदि अनेक अवदान सामने आए। गुरुदेव तुलसी ने पूर्वांचल व दक्षिणांचल की लंबी यात्राएँ की।
आज का दिन गुरुदेव तुलसी से जुड़ा दिन है। उनमें कुछ वैशेष्ट्य भी था। अनेक साधु-साध्वियाँ उनके उपपात में रहे हैं। अंत समय में गृहस्थों, पदमचंद पटावरी उनके निकट रहे थे। आचार्यश्री तुलसी ने पद का विसर्जन भी किया। इस विकास महोत्सव का आधार है-आचार्य पद का विसर्जन। जब आचार्यश्री तुलसी ने पट्टोत्सव मनाने का औचित्य नहीं रखा तो आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने कहा कि इस दिन को कैसे छोड़ा जा सकता है। पद को आपने छोड़ दिया पर आपके पट्टोत्सव को हम विकास महोत्सव के रूप में मनाएँगे। विकास महोत्सव त्याग और विसर्जन पर टिका हुआ है। गहराई का विषय है कि आचार्य तुलसी ने आचार्य पद का विसर्जन क्यों किया?
विकास महोत्सव व मर्यादा महोत्सव किसी व्यक्ति से जुड़े हुए प्रसंग नहीं हैं। विकास महोत्सव का संदर्भ तो गुरुदेव तुलसी है, पर अब विकास का संदर्भ हो सकता है। ये दोनों महोत्सव संघीय संदर्भ से जुड़े हैं। विकास परिषद के मांगीलालजी सेठिया संयोजक हैं। पदमजी पटावरी, बुद्धमलजी दुगड़ व बनेचंदजी मालू भी इसके सदस्य हैं। उम्र का ध्यान न करते हुए विकास का चिंतन करते रहें। अनेक तरीकों से शिक्षा का विकास होता रहना चाहिए। साथ में साधना भी चलती रहे। संयम और तप हमारा गतिमान होता रहे। साधु-साध्वियाँ, समणियाँ, श्रावक-श्राविकाएँ एवं संघीय संस्थाएँ भी यथोचित विकास करती रहें। कल्याण परिषद में विकास के आयाम रखे जा सकते हैं। कल्याण परिषद व समीक्षा परिषद चिंतन-मंथन का मंच है। बहुश्रुत परिषद भी है।
विकास के लिए जरूरी है पुरातन अधुनातन का समन्वय। संयम, त्याग, तपस्या में विकास चले। विकास महोत्सव तेरापंथ की प्रगति का निमित्त बने। दिल्ली में विकास महोत्सव पर लिखित पूज्य गुरुदेव तुलसी व आचार्यश्री महाप्रज्ञ द्वारा पत्र का पूज्यप्रवर ने वाचन किया। जो विकास महोत्सव का आधार है। पूज्यप्रवर ने बहिर्विहारी साधु-साध्वियों एवं समणियों को चातुर्मास के बाद के विहार के निर्देश फरमाए। मुमुक्षु धनराजजी बैद को 22 नवंबर को मुंबई में दीक्षा देने का फरमाया। मुमुक्षु विकास, मुकेश व मंथन को साधु प्रतिक्रमण का आदेश फरमाया। संघ गान का सुस्वर संगान हुआ। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने गुरुदेव तुलसी के आचार्य पद विसर्जन के प्रसंग को विस्तार से समझाया। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने भी गुरुदेव को गणाधिपति के संबोध से संबोधित किया। गुरुदेव ने विसर्जन पर नए इतिहास का सृजन किया। लोगों में प्रतिक्रिया हुई कि यह कार्य कोई शक्तिधर ही कर सकता है। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि कुछ प्राप्त करने के लिए तपना-खपना पड़ता है। संघर्षों को झेलना पड़ता है। गुरुदेव श्री तुलसी ने कालूगणी के स्वप्न को अपना स्वप्न बनाया। साध्वियों की शिक्षा का आगाज किया। साध्वियों द्वारा समूह गीत का संगान हुआ। विकास परिषद के संयोजक मांगीलाल सेठिया, सदस्य पदमचंद पटावरी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। स्थानीय महिला मंडल ने सुमधुर गीत से विकास महोत्सव को वर्धापित किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।