योग का निरोध ही ध्यान है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

योग का निरोध ही ध्यान है: आचार्यश्री महाश्रमण

नंदनवन, 30 सितंबर, 2023
तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि श्री वीर स्वामी को नमन किया गया हे। जैन दर्शन में चार निक्षेप बताए गए हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। किसी चीज को जानने के लिए ये निक्षेप समझने चाहिए। भाव महावीर को नमन किया जाता है। तीर्थंकर महावीर जो वर्तमान में सिद्धावस्था में हैं, उनको मैं नमस्कार करता हूँ। हमारे समझने का माध्यम नाम बनता है। स्थापना से हम महावीर को जान सकते हैं। द्रव्य से हम होने वाले तीर्थंकर को जान सकते हैं, पर मूल तो भाव तीर्थंकर ही वंदनीय हैं। निक्षेपों से हम महावीर को जान सकते हैं, निक्षेपवाद जैन दर्शन का एक सिद्धांत है, जिसकी आगम में हमें जानकारियाँ मिलती हैं। वर्तमान में जो साधु है, वो साधु के रूप में वंदनीय होता है।
शब्द की परिभाषा स्पष्ट हो जाए। मेरी पुस्तक में गुरुदेव शब्द का अर्थ है-आचार्य तुलसी और आचार्यप्रवर शब्द आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के नाम को समझा जाए। एक शब्द के अनेक अर्थ हो सकते हैं। परिभाषा स्पष्ट हो जाए तो थोड़े में बात समझ में आ सकती है। आज प्रेक्षाध्यान से जुड़ा हुआ दिवस है। हमारी चेतना वर्तमान में कुछ विकृत अवस्था में है। विकृत अवस्था वाली चेतना को हम संस्कृत वाली चेतना बनाने का, प्रकृत वाली चेतना बनाने का प्रयास करें। जहाँ मोहनीय कर्म से युक्त चेतना है, वो विकृत अवस्था वाली चेतना है। मोहनीय कर्म हल्का हो जाए तो संस्कृत अवस्था वाली चेतना हो सकती है, अच्छे संस्कार आ सकते हैं।
अपने स्वभाव में आत्मा स्थित हो जाए वह प्रकृत अवस्था वाली चेतना हो जाती है। मोहनीय कर्म का जितना प्रभाव हमारी आत्मा पर पड़ता है, उस संदर्भ में आत्मा विकृत हो सकती है। मोहनीय कर्म को हल्का करने का प्रयास हो। चार घाति कर्मों को कमजोर करने के लिए तपस्या-साधना करने की अपेक्षा होती है। तपस्या में ध्यान भी एक प्रकार है। हम मन, वाणी और शरीर की प्रवृत्ति को कमजोर कर दें तो हमारी ध्यान की अवस्था बन जाती है। योग का निरोध ही ध्यान है। ध्यान अपने आपमें शुद्ध है। आचार्यश्री तुलसी के समय मुनि नथमल जी द्वारा ध्यान का विशेष प्रादूर्भाव हुआ। नामकरण वि0सं0 2023 जयपुर में 30 सितंबर के दिन हुआ था। पूज्यप्रवर ने ध्यान का प्रयोग करवाया। तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि इष्ट देव भौतिक ऋद्धि दे सकते हैं, पर शांति नहीं दे सकते। भीतर रहने वाला व्यक्ति शांति को प्राप्त कर सकता है। जो व्यक्ति समाधि का अनुभव करता है, वो शांति को प्राप्त कर सकता है। जो व्यक्ति अशांत है, उसे शांति कैसे मिल सकती है। मुनि कुमार श्रमणजी ने प्रेक्षाध्यान के महत्त्व को समझाया। जैविभा द्वारा पुस्तक Knotion od Soul in Jainisum समणी रोहिणीप्रज्ञा जी की कृति पूज्यप्रवर को समर्पित की गई। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। समणी रोहिणीप्रज्ञा जी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की।