सच्चाई को प्रकट करने का लक्ष्य अवांछनीय ना हो : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सच्चाई को प्रकट करने का लक्ष्य अवांछनीय ना हो : आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ के आद्य प्रवर्तक आचार्य श्री भिक्षु का 221वाँ महाप्रयाण दिवस

नंदनवन, 27 सितंबर, 2023
इस दिन को परमपूज्य जयाचार्यप्रवर ने भिक्षु चरमोत्सव के रूप में स्थापित किया था। आज के दिन सिरियारी आचार्य भिक्षु समाधि स्थल पर देश के कोने-कोने से हजारों की संख्या में श्रावक-श्राविकाएँ अपने प्रथम अनुशास्ता को श्रद्धासिक्त भावांजलि प्रदान करने के लिए सिरियारी में आते हैं। आचार्यश्री भिक्षु के परंपर पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि धर्म की व्याख्या तीन शब्दों में की गई है-अहिंसा, संयम और तप। अध्यात्म के जगत में इन तीन के सिवा कोई धर्म है ही नहीं। जिसका मन सदा धर्म में है, उसे देव भी नमस्कार करते हैं।
धर्म सामान्य नहीं उत्कृष्ट मंगल है। मंगलपाठ में अर्हत, सिद्ध, साधु भी मंगल है और धर्म भी मंगल है। धर्म को मंगल बता दिया फिर इन तीन को मंगल बताने की क्या अपेक्षा थी या इन तीन को मंगल बता दिया फिर धर्म को मंगल बताने की क्या अपेक्षा थी। एक कार्य रूप मंगल अरहंत, सिद्ध, साधु है और कारण रूप में धर्म मंगल है। परम वंदनीय आचार्य भिक्षु का चरमोत्सव दिन है। भिक्षु नाम धर्मसंघ में प्रचलित हो गया। दुनिया में मनुष्य तो बहुत हुए हैं, होते रहेंगे पर मनुष्य-मनुष्य में अंतर होता है। आचार्य भिक्षु का लगभग 77 वर्ष का जीवनकाल रहा। आचार्य भिक्षु ने पहले दीक्षा लेने के लिए अभिनिष्क्रमण किया तो बाद में सिद्धांत के लिए स्थानकवासी संप्रदाय से अभिनिष्क्रमण किया।
सच्चाई को जानना कभी-कभी कठिन हो सकता है। गहराई में जाने से, साधना करने से, साक्षात्कार करने से या गहरे मनन में जाने से सच्चाई का साक्षात्कार हो जाता है। सच्चाई दो प्रकार की होती है-सहजगम्य सच्चाई और श्रमसाध्य सच्चाई। सच्चाई को हमेशा प्रकट करना भी सहज काम नहीं है। साहस साध्य सच्चाई को प्रकट करने में आदमी कभी असफल भी रह सकता है। कई-कई व्यक्तियों में सच्चाई को जानकर उन्हें प्रकट करने का साहस होता है। सच्चाई को प्रकट करने का लक्ष्य भी अवांछनीय नहीं होना चाहिए। आचार्य भिक्षु तेरापंथ के जनक थे। उनको जब मैं चिंतन के आकाश में देखता हूँ तो ऐसा प्रतीत होता है कि उनमें साहस तो था। उनके ग्रंथ जो हमें मिलते हैं, मानो साफ-साफ कहने वाले ग्रंथ हैं।
प्रहार करना हो तो प्रहार के योग्य भाषा को काम में लेना चाहिए। कहीं-कहीं बात की ऊँची भूमिका में जाने के बाद कुछ अन्यथा स्थिति भी आ सकती है। आचार्य भिक्षु में प्रतिभा-बुद्धि अच्छी थी। अपने ढंग से वे बात का खंडन भी करते थे। उनमें जिनवाणी के प्रति श्रद्धा का भाव था। उनकी धर्मक्रांति का एक पक्ष आचार संबंधी था। हमारे श्रद्धा व नाम जप के केंद्र आचार्य भिक्षु बने हुए हैं।
वि0सं0 1859 का आचार्य भिक्षु का चतुर्मास पाली था। वहाँ से वे सोजत में आए। सोजत में सिरियारी के हुकमचंद आच्छा ने सिरियारी चतुर्मास कराने की प्रार्थना की थी। आचार्य भिक्षु ने उनकी अर्ज स्वीकार कर 1860 का चतुर्मास सिरियारी किया था। वहाँ उस समय लगभग 781 परिवार तो श्रद्धा के थे। उस चतुर्मास के प्रसंग को विस्तार से समझाया। अंत समय के प्रसंग को भी समझाया। स्वामीजी के बारे में स्वरचित सुमधुर गीत-चरमोत्सव दिन स्वामीजी का आज का संगान करवाया।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने समझाया कि एक नेतृत्व के कारण सब लोग निश्चिंतता का अनुभव करते हैं। तेरापंथ में हर व्यक्ति को अपने विचार रखने का अधिकार है। आचार्य सबकी बात ध्यान से सुनकर निर्णय देते हैं। एक नेतृत्व के तले सब आनंद की अनुभूति करते हैं। मुख्यमुनि महावीर कुमार जी ने भिक्षु अष्टकम का समुच्चरण करते हुए फरमाया कि भिक्षु स्वामी तो अंत तक सत्य पर चले रहे। सत्य सभी को प्रिय होता है। आचार्य भिक्षु विपरीत स्थिति में भी सत्य के मार्ग पर चलते रहे। आत्मा का कार्य सिद्ध करने के लिए उन्होंने अपना सर्वस्व सत्य का निछावर कर दिया था।
साधुवृंद एवं साध्वीवृंद ने समूह गीत की प्रस्तुति दी। साध्वीवृंद ने आचार्य भिक्षु के अभिनिष्क्रमण के समय की घटना पर प्रस्तुति दी। मीरां-भायंदर रवि मालू आदि युवकों ने गीत की प्रस्तुति दी। संघगान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया। रात्रिकालीन कार्यक्रम में धम्म जागरणा का आयोजन हुआ। पूज्यप्रवर ने सुमधुर गीत ‘भिक्षु स्वामी पधारोजी’ का संगान करवाया। मुख्य मुनिश्री एवं साधुवृंद ने अलग-अलग गीतों की प्रस्तुति दी। धर्मसंघ के जाने-माने कलाकार ऋषि दुगड़ आदि ने सुंदर भजनों की प्रस्तुति दी।