आचार्य भिक्षु चरमोत्सव के आयोजन

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आचार्य भिक्षु चरमोत्सव के आयोजन

चंडिगढ़
आचार्यश्री भिक्षु श्रमण परंपरा के महान संवाहक थे। उनका जन्म वि0सं0 1783 आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी को कंटालिया में हुआ। उनके पिता का नाम बल्लुजी तथा माता का नाम दींपाबाई था। आचार्य भिक्षु का जन्म नाम भीखण था। प्रारंभ से ही वे असाधारण प्रतिभा के धनी थे। यह शब्द मनीषी संत मुनि विनय कुमार जी ‘आलोक’ ने आचार्य भिक्षु चरमोत्सव पर सभा को संबोधित करते हुए कहे।
आचार्य भिक्षु ने अपने मौलिक चिंतन के आधार पर नए मूल्यों की स्थापना की। हिंसा व दान-दया संबंधी उनकी व्याख्या सर्वथा वैज्ञानिक कही जा सकती है। मुनिश्री ने कहा कि आचार्य भिक्षु की अहिंसा सार्वभौमिक क्षमता पर आधारित थी। अध्यात्म व व्यवहार की भूमिका भी उनकी भिन्न थी। उन्होंने कभी और किसी भी प्रसंग पर दोनों को एक तुला से तोलने का प्रयत्न नहीं किया। साध्य साधन के विषय में भी उनका दृष्टिकोण स्पष्ट था। उन्होंने कहा कि रक्त से सना वस्त कभी रक्त से शुद्ध नहीं होता। वैसे ही हिंसा प्रधान प्रवृत्ति कभी अध्यात्म के पावन लक्ष्य तक नहीं पहुचा सकती।
मुनि अभय कुमार जी ने गीत के द्वारा अपनी श्रद्धा व्यक्त की। तेरापंथ सभा के अध्यक्ष वेद प्रकाश जैन, मंत्री सुधीर जैन, उपाध्यक्ष विजय गोयल, विजय शर्मा, राजिंद्र कुमार जैन और डाॅ0 गीता राय ने अपनी श्रद्धा अभिव्यक्त की।