संगठन को कार्यकारी बनाए रखने के लिए शासन और अनुशासन अपेक्षित : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

संगठन को कार्यकारी बनाए रखने के लिए शासन और अनुशासन अपेक्षित : आचार्यश्री महाश्रमण

नंदनवन, 6 अक्टूबर, 2023
अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के छठे दिवस-अनुशासन दिवस पर अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि अनुशासन, शासन, प्रशासन-ये ऐसे तत्त्व हैं, जो संगठन को कार्यकारी बनाए रखते हैं। जहाँ अनुशासन-प्रशासन सही नहीं है, तो संगठन लड़खड़ा सकता है। जहाँ संगठन समाज है, वहाँ इन तत्त्वों की अपेक्षा रह सकती है।
स्वर्ग के ऊपर विभाग में कोई अनुशासन नहीं है, वहाँ देव सब समान है, स्वानुशासित होते हैं, वे कल्पातीत देव कहलाते हैं। जो विभाग कल्पोपन्न है, वहाँ व्यवस्था की अपेक्षा होती है। इनमें 64 इंद्र होते हैं। अनुशासन दो प्रकार का हो सकता है-स्वानुशासन और परानुशासन। हमारे धर्मसंघ का एक घोष है-निज पर शासन, फिर अनुशासन। स्वयं पर अनुशासन करो फिर दूसरों पर अनुशासन करना सीखो।
गुरु और शिष्य दो होते हैं। गुरु स्वयं अनुशासन में रहे। गुरु हो या शिष्य, अनुशासित सबको रहना चाहिए। राजतंत्र में तो राजा स्थायी रह सकता है पर लोकतंत्र में सरकार बदल सकती है। लोकतंत्र में भी अनुशासन हो। कर्तव्य और अनुशासन के बिना लोकतंत्र का देवता मृत्यु को प्राप्त कर सकता है। जो स्वयं शिष्य या अनुशासित नहीं है, वह दूसरों पर क्या अनुशासन कर सकेगा। हमारे सभी पूर्वाचार्य अपने गुरु के अनुशासन में रहे, तभी वे हमारे अनुशास्ता बने। गुरुदेव तुलसी ने तो अपने जीवनकाल में ही अपने शिष्य को आचार्य पद पर स्थापित कर दिया था।
विद्यालय हो या सामाजिक संस्थाएँ सब जगह अनुशासन हो। अर्हता का विकास हो। स्वयं पर स्वयं का अनुशासन रहे यह अर्हता हमारे में रहे। जहाँ सब अपने आपको नेता मानने लग जाएँ, सारे लोग अपने आपको पंडित मानते हैं और सबमें अवांछनीय महत्ता आ जाए पर पहले से अनुभव-अध्ययन या प्रतिष्ठा नहीं है, जहाँ ऐसी स्थिति रहती है, वो राष्ट्र दुःखी बन सकता है। हमारे में बड़ों के अनुशासन में रहने का विनय भाव हो तो ही हम दूसरों पर अनुशासन कर सकते हैं। अनुशासन से ही धर्मसंघ या सामाजिक संस्थाएँ अच्छी प्रगति में रह सकती हैं। हम अनुशासन में रहने का प्रयास करें। हमारे जीवन में अनुशासन आए।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि जिंदगी में अनेक प्रश्न होते हैं, उनका समाधान प्राप्त करने के लिए जीने की कला आनी चाहिए। जीने की कला के सामने अन्य कलाएँ विकलाएँ हैं। समस्या जीवन में आ सकती है, पर शांति से जीना सीख लें तो समस्या सुलझ सकती है। सहजता से शांति का जीवन जीया जा सकता है। इसके लिए हम बात को सामान्य लेना सीखें और मान-अपमान में सम रहें। मुंबई यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रो0 रवींद्र कुलकर्णी पूज्यप्रवर की सन्निधि में दर्शनार्थ पधारे। उन्होंने अपनी भावना व्यक्त करते हुए अनुशासन के महत्त्व को समझाया। नवभारत टाइम्स से जुड़े विश्वनाथ सचदेवा ने भी अपने विचार अभिव्यक्त किए।
अभातेममं के तत्त्वावधान में जैन स्काॅलर श्रुतोत्सव का आयोजन पूज्यप्रवर की सन्निधि में शुरू हुआ। राष्ट्रीय अध्यक्षा नीलम सेठिया ने अपने विचार रखे। जैन स्काॅलरों को डिग्रियाँ प्रदान की गई। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।