आश्रव के निरोध से गुणस्थान का ग्राफ ऊँचा चढ़ता है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आश्रव के निरोध से गुणस्थान का ग्राफ ऊँचा चढ़ता है : आचार्यश्री महाश्रमण

नंदनवर, 8 अक्टूबर, 2023
अर्हत् वाङ्मय के व्याख्याता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र के सत्रहवें शतक के तीसरे उद्देशक में कहा गया है-प्रश्न किया गया कि भंते! शैलेषी अवस्था में अणगार ऐदन, भेदन स्पंदन, घटन आदि ऐसा होता है क्या? आगम में चैदह गुणस्थान बताए गए हैं। चैदहवाँ गुणस्थान है-उपयोगी केवली गुणस्थान। ज्यों-ज्यों आश्रव का निरोध और संवर का विकास होता है, तो गुणस्थानों का विकास होता जाता है, ग्राफ ऊँचा चढ़ता जाता है। ग्यारहवें गुणस्थान में कषाय उपशम हो जाता है। बारहवें गुणस्थान में कषाय क्षय हो जाते हैं। ग्यारहवें गुणस्थान वाला आगे नहीं बढ़ता है, नीचे गिर जाता है। क्षायक श्रेणी वाला ग्यारहवाँ गुणस्थान को छुता ही नहीं है।
तेरहवाँ गुणस्थान सयोगी केवली का है और चैदहवाँ गुणस्थान अयोगी केवली का है। पहले गुणस्थान में भी थोड़ी गुणवत्ता होती है। चैदहवें गुणस्थान में साधु मेरू पर्वत की तरह अडोल हो जाता है, चंचलता मिट जाती है। शैलेषी अवस्था है, अप्रकंपन स्थिरता हो जाती है। आदर्श है कि स्थरता देखनी हो तो चैदहवें गुणस्थान के साधु की देखें। वह तो नवकार मंत्र भी नहीं बोलता है। ध्यान साधना को प्राप्त वह साधु होता है। उसका कालमान भी पाँच हृस्वाक्षर जितना है।
हमारा जीव जन्म-मरण करते-करते वह भव्य जीव चैदहवें गुणस्थान में चला जाता है। 8, 9, 10, 12, 13 व 14वाँ गुणस्थान संसारी अवस्था में एक बार ही आते हैं। पूज्यप्रवर ने प्रवचन से पहले ध्यान का प्रयोग करवाया था। जब भी विश्राम करना हो तो कार्य के साथ ध्यान-कायोत्सर्ग को जोड़ें। चलते समय भावक्रिया को जोड़ दें। ट्रेन-प्लेन में यात्रा कर रहे हों तो उस समय भी ध्यान-स्वाध्याय किया जा सकता है। दिनचर्या में एक सामायिक भी करने का प्रयास करें। सुबह की सामायिक तो अमृत है। अध्यात्म को जीवन में जोड़ें।
अध्यात्म की सर्वोच्च अवस्था शैलेषी अवस्था है। तेरहवें गुणस्थान वाला तो प्रवचन आदि भी करता है। छठे गुणस्थान से साधु की भूमिका शुरू होती है। आगम संपादन के अंतर्गत जैविभा द्वारा प्रकाशित ग्रंथ ‘अंतगड़ दशाओं’ पूज्यप्रवर को लोकार्पित किया गया। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि संसार का अंत करने वाले व्यक्तियों का वर्णन है। गुरुदेव तुलसी ने आगम संपादन का कार्य शुरू किया था। आज भी वह कार्य प्रवर्धमान है। गुरुदेव तुलसी व आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का विशेष आशीष रहा है। बहुश्रुत मुनि दिनेश कुमार जी एवं मुनि योगेश कुमार जी का इस आगम संपादन में विशेष श्रम रहा है। मुनि योगेश कुमार जी ने इस ग्रंथ की संक्षिप्त जानकारी दी। इस ग्रंथ में मुक्ति हासिल करने का द्वारा बताया गया है। आत्मा के नैसर्गिक साम्राज्य में प्रवेश करने की प्रेरणा है। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।