अवबोध

स्वाध्याय

अवबोध

कर्म बोध
बंध व विविध
 
प्रश्न 2 : कर्म रूपी या अरूपी, जीव या अजीव?
उत्तर : कर्म रूपी व अजीव है।
 
प्रश्न 3 : आत्म प्रदेश अधिक हैं या कर्म प्रदेश?
उत्तर : आत्म प्रदेश से कर्म प्रदेश अधिक हैं। आत्म प्रदेश असंख्य हैं जबकि कर्म की वर्गणाएँ अनंत हैं। एक-एक कर्म वर्गणा के अनंत-अनंत प्रदेश हैं।
 
प्रश्न 4 : निर्जरित कर्म वर्गणा चतु:स्पर्शी ही रहती है या अष्टस्पर्शी भी हो सकती है?
उत्तर : निर्जरण होने के बाद कर्म कर्म-वर्गणा के रूप में नहीं रहते, वे केवल पुद्गल रह जाते हैं। वे चतु:स्पर्शी रहकर भी भाषा, मन आदि में प्रयुक्त हो सकते हैं। आहारक, वैक्रिय, तैजस् आदि अष्टस्पर्शी पुद्गल में भी परिणत हो सकते हैं। वे द्विस्पर्शी परमाणु भी बन सकते हैं और पुन: कर्म रूप में भी परिवर्तित हो सकते हैं।
 
प्रश्न 5 : कर्मबंध का मुख्य हेतु क्या है?
उत्तर : कर्मबंध का मुख्य हेतु आश्रव है। ये पाँच हैं-मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय व योग। कर्मबंध के हेतुओं का यह एक संक्षिप्त वर्णन है। विस्तार में आठ ही कर्मों के बंध के पृथक्-पृथक् कारण बतलाए गए हैं।
 
प्रश्न 6 : जीव वध से संबंधित कितनी क्रियाएँ हैं?
उत्तर : जीव वध से संबंधित क्रियाएँ मुख्य रूप से पाँच प्रकार की बतलाई गई हैं-
(1) कायिकी - हिंसा आदि में प्रवृत्त काया की क्रिया।
(2) आधिकरणिकी - शरीर आदि का शस्त्र रूप में प्रयोग करने से होने वाली क्रिया।
(3) प्रादेषिकी - प्रद्वेष (कषाय) से होने वाली क्रिया।
(4) पारितापनिकी - परिताप-कष्ट पहुँचाने से होने वाली क्रिया।
(5) प्राणातिपात क्रिया - प्राणों का अतिपात-समाप्त करने से होने वाली क्रिया।
 
प्रश्न 7 : जीव के कितनी क्रियाएँ होती हैं?
उत्तर : जीव कोई भी असत्-क्रिया करता है, तो उसके न्यूनतम प्रथम तीन क्रिया अवश्य होती है। कदाचित् पारितापनिकी के साथ चार व प्राणातिपात क्रिया के साथ पाँच क्रिया भी हो सकती है।
 
प्रश्न 8 : कर्म रूपी आत्मा अरूपी है। रूपी व अरूपी का संबंध कैसे संभव है?
उत्तर : अनादिकाल से संसारी आत्मा कार्मण शरीर से निरंतर संबंधित है। इस दृष्टि से जीव को कथंचित् रूपी माना गया है। रूपी जीव के साथ रूपी कर्म पुद्गलों के चिपकने में कोई विसंगति नहीं है।
 
(क्रमश:)