विवेक चेतना से करें उचित-अनुचित का निर्णय : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

विवेक चेतना से करें उचित-अनुचित का निर्णय : आचार्यश्री महाश्रमण

नौ दिवसीय सघन चेतना शिविर का शुभारंभ

नंदनवन, 15 अक्टूबर, 2023
अश्विन शुक्ला एकम-नवरात्रा और तेरापंथ धर्मसंघ के नवाह्निक जप-अनुष्ठान का बोधि प्रदाता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अपने श्रीमुख से इसका प्रारंभ करते हुए आगम वाणी का अनुष्ठान धर्मसभा में करवाया। सभी साधु-साध्वियाँ एवं श्रावक-श्राविकाएँ भी इसमें उपस्थित रहे। विशेष तप के साथ यह आध्यात्मिक अनुष्ठान करवाया जाता है। अर्हत वाङ्मय के उद्गाता आचार्यश्री महाश्रमण जी भगवती सूत्र आगम का पारायण करवाते हुए फरमाया कि भगवान महावीर के समय का प्रसंग है। यह प्रसंग तत्त्व दर्शन की दृष्टि से थोड़ा गहराई लिए हुए है। भगवान महावीर का राजगृह नगर में कई बार आने, चातुर्मास करने का प्रयोजन हुआ है।
मैं राजगृह नगर की तुलना जैन विश्व भारती से करना चाहता हूँ गुरुदेव तुलसी का भी जैविभा, लाडनूं में कई बार प्रवास हुआ था। लगातार दो-दो चातुर्मास वहाँ किए थे। लाडनूं गुरुदेव तुलसी की जन्मभूमि, दीक्षा भूमि और कुछ प्रसंगों में दीक्षा भूमि भी रही है। जैविभा वहाँ लाडनूं में होने से उसका भी सम्मान बढ़ गया। राजगृह नगर में अन्य अतिथिµअन्य सिद्धांत से जुड़े लोग भी रहते थे, जो जैन दर्शन से जुड़े हुए नहीं थे। वे सब इकट्ठा होकर आपस में चर्चा कर रहे थे कि महावीर पाँच अस्तिकाय की बात करते हैं। इनमें चार को जीव एक को अजीव तथा चार को रूपी व एक को अरूपी बतलाते हैं। यह बात कैसे है, क्या उनका सिद्धांत है। ऐसी जिज्ञासा उन लोगों के मन में हुई, तो किससे इस विषय में बात करें?
उन्हीं दिनों भगवान महावीर का राजगृह नगर के परिपाश्र्व में पधारना हुआ। भगवान महावीर का एक श्रमणोपासक श्रावक मद्दुक था। उसको जब भगवान का राजगृत में पधारने का समाचार मिला तो वह आनंदित होकर भगवान के दर्शन करने के लिए तैयार होकर पैदल चलकर गया। उन अन्य तीर्थियों ने जब मद्दुक को भगवान के पास जाते हुए देखातो सोचा मद्दुक से पूछे कि महावीर का यह सिद्धांत कैसे है?
उन अन्य तीर्थियों ने मद्दुक से पूछा कि तुम्हारे भगवान पाँच अस्तिकाय आदि की बात बताते हैं, वो कैसे है? जो दिखाई न दे, अरूपी है ये कैसे? मद्दुक तत्त्व का जानकार था। तत्त्व-सिद्धांत का जानकार श्रावक ऐसे प्रश्नों का उत्तर दे सकते हैं। मद्दुक ने कहा कि ये धर्मास्तिकाय-अधर्मास्तिकाय अमूर्त-अरूपी हो पर किसी चीज को हम कार्य के आधार पर जान सकते हैं। अनुमान-ज्ञान से कार्य के आधार पर पदार्थ को जान सकते हैं। धर्मास्तिकाय-अधर्मास्तिकाय अमूर्त है, उसके कार्य को जानना भी मुश्किल लगता है। मद्दुक ने कहा कि दिखाई देना न देना अस्तित्व का आधार नहीं है। मद्दुक ने हवा-सुगंध के उदाहरण से उस बात को समझाया। उन लोगों को समझाकर मद्दुक भगवान के पास पहुँचा और प्रभु के दर्शन किए। भगवान ने उस प्रसंग को मद्दुक को बताते हुए कहा कि मद्दुक तुमने अच्छा उत्तर दिया है।
इस प्रसंग से हम एक प्रेरणा ले या दे सकते हैं कि आज भी कई श्रावक मद्दुक जैसे जानकार हो सकते हैं। आज हमारे समाज में अनेक पढ़े-लिखे लोग हैं, अगर उनके पास समय हो तो वे जैन दर्शन, जैन धर्म का और अध्ययन कर लें तो अच्छा हो सकता है। आज तो अनेक आगम-ग्रंथ उपलब्ध हैं। उपासक श्रेणी में भी अपने ढंग से अच्छे जानकार हैं पर साथ में उत्तर देने की भी क्षमता हो। टू दी पाइंट उत्तर देकर प्रश्नकर्ता को संतुष्ट कर सकें, ऐसा प्रयास हो। जैसे-तैसे उत्तर न दें। मद्दुक के प्रसंग से जानकारी लें।
हमारी सृष्टि में छः द्रव्य हैं। सृष्टि लोक क्या है, इस प्रसंग में भगवान महावीर का सिद्धांत महत्त्वपूर्ण हैµपंचास्तिकाय। अलोक में ये छहों द्रव्य नहीं मिल सकते हैं। जो दिखाई न दे, उसका भी अस्तित्व हो सकता है। हवा का स्पर्शेन्द्रियों से अनुभव किया जा सकता है। सुगंध का नाक से अनुभव किया जा सकता है। शब्द का कान से अनुभव किया जा सकता है। कुछ चीजें इंद्रियातीत भी संसार में हो सकती हैं। अमूर्त किसी इंद्रिय का विषय नहीं है। पर उनका अस्तित्व हो सकता है। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि इथिकल वेल्यु की आवश्यकता समाज, परिवार में हर जगह हो सकती है। नैतिकता समाजशास्त्र का मुख्य शब्द है। नैतिकता को जानते हुए भी व्यक्ति आगे नहीं बढ़ सकता है। व्यक्ति विलासता का जीवन जीता है, आय के òोत कम हैं तो धन का अर्जन करने के लिए अनैतिक साधनों का सहारा ले सकता है। जहाँ व्यक्ति की आवश्यकताएँ, आकांक्षाएँ बढ़ जाती हैं, तो नैतिकता का रहना मुश्किल है। इन तीनों का सीमाकरण हो। अच्छा जीवन जीने के लिए व्यक्ति नैतिकता की पृष्ठभूमि तैयार करें, संयम करें।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि हमें मनुष्य जीवन मिला है। हम बुरे कर्मों से बचें और अच्छे कर्म करें। मनुष्य के पास विवेक चेतना है। कृत्य-अकृत्य की चेतना ही मनुष्य और पशु की भेद रेखा है। हम विवेक चेतना से उचित-अनुचित का निर्णय कर सकते हैं। दिलीप सरावगी ने आध्यात्मिक कार्यक्रम ट्रांसम्यूट की सूचना दी।पूज्यप्रवर ने आज से शुरू हुए नौ दिवसीय सघन साधना शिविर के शिविरार्थियों को प्रेरणाएँ प्रदान करवाई। पूज्यप्रवर ने ट्रांसम्यूट के संभागियों को भी आशीर्वचन फरमाया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।