कालूगणी के स्वर्गारोहण दिवस पर कार्यक्रम

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कालूगणी के स्वर्गारोहण दिवस पर कार्यक्रम

बीदासर।
समाधि केंद्र व्यवस्थापिका साध्वी रचनाश्री जी के सान्निध्य में तेरापंथ के अष्टमाचार्य कालूगणी का स्वर्गारोहण दिवस मनया गया। इस अवसर पर साध्वीश्री जी ने कहा कि पूज्य कालूगणी आचार संपदा, श्रुत संपदा, शरीर संपदा, वचन संपदा, वाचना संपदा, मति संपदा, प्रयोग संपदा एवं संग्रह संपदाµइन आठ गणी संपदा से संपन्न आचार्य थे। बचपन में उनका नाम शोभाचंद था। कालाभैरवजी की मान्यता के कारण उनका नाम ‘कालू’ रखा गया। वे वीतराग कल्प आचार्य मघवागणी के पास दीक्षित एवं शिक्षित हुए। उनकी अर्हताओं ने आचार्य डालगणी को आकृष्ट किया और डालगणी ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया।
आचार्य कालूगणी ने संघ को शिखर की ऊँचाई दी। पट्ट पर बैठते ही साध्वी लाधुजी को कड़ा उपालंभ दिया और उन्हें अग्रगण्य पद से निष्कासित कर दिया। इस घटना से अन्य सभी साधु-साध्वी सतर्क हो गए और जागरूकता से आचार का पालन करने लगे। कालूगणी ने शिक्षा पर बहुत जोर दिया। तेरापंथ में संस्कृत अध्ययन का द्वार कालूगणी ने खोला। संस्कृत के प्रकांड विद्वान घनश्यामजी कालूगणी से इतने प्रभावित हुए कि वे मुखवस्त्रिका बांधकर भी कालूगणी को पढ़ाने के लिए तैयार हो गए। पंडित रघुनंदन शर्माजी ने 100 श्लोकों की रचना कर कालूगणी को उपरित किया। साध्वी लब्धियशा जी, साध्वी जयंतयशा जी ने अपने विचार व्यक्त किए। शासनश्री साध्वी किरणमाला जी ने गीत की प्रस्तुति दी।