मन की स्थिरता के लिए तन की स्थिरता भी आवश्यक : आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन, 23 अक्टूबर, 2023
अश्विन शुक्ला नवमी, शारदीय नवरात्रि की समाप्ति और नवाह्निक जप अनुष्ठान संपन्नता की पर परमपूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रवचन से पूर्व नौवें दिन का जप अनुष्ठान करवाया। सघन साधना शिविर भी संपन्नता की ओर है। अध्यात्म के सुमेरू आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आर्ष वाणी की अमृत वर्षा करते हुए फरमाया कि मन के बारे में प्रश्न किया गया कि मन निर्वृत्ति कितने प्रकार की होती है? गौतम के नाम उत्तर दिया गया है कि मन निर्वृत्ति चार प्रकार की होती हैµसत्य, असत्य, सत्य-मृषा और असत्या-मृषा मनःनिर्वृत्ति।
भाषा और मन इन दोनों में भी बहुत निकटता प्रतीत हो रही है। आगम में भाषा और मन पर्याप्ति को एक में ही समाविष्ट किया गया है। कई बातें हम मन में ही रख लेते हैं, उसको भाषा का जामा नहीं पहनाते हैं। मन की मन में ही रह जाती है। हम सत्य विषयक चिंतन कर लेते हैं तो असत्य विषयक चिंतन कर लेते हैं। कोई सत्य-असत्य मिश्रित चिंतन करने वाला भी हो सकता है। व्यवहारात्मक-निर्देशात्मक चिंतन भी हो सकता है। मन का होना हमारे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। मन होने वाले प्राणी तो बहुत कम हैं। हम तो अनंत प्राणियों से ऊपर हैं। मन की चंचलता भी हमारे में होती है। हम संज्ञी पंचेन्द्रिय प्राणी हैं। मन का होना एक विकास का द्योतक है। यह भी क्षयोपशम का भाव है। हमें जो यह मनस्विता प्राप्त है, यह दुर्गति में ले जाने में भी निमित्त बन सकती है तो स्वर्ग और मोक्ष में ले जाने में भी मनस्विता निमित्त हो सकती है। यह तो एक प्रकार की शक्ति है, इसका उपयोग कैसे-क्या करते हैं, यह खास बात है।
मन सुमन रहे। केवलज्ञानी नो संज्ञी-नो असंज्ञी होते हैं। असंज्ञी होना एक अविकास की सी स्थिति है। संज्ञी होना विकास की बात है। नो संज्ञी-नो असंज्ञी होना उससे भी बड़ी बात है। एक विकसित स्थिति है। हम भी नो संज्ञी-नो असंज्ञी तेरहवें गुणस्थान वाले बन जाएँ। चार प्राप्त इंद्रियों तक अमनस्कता है। मन है तो पाँचवीं इंद्रिय प्राप्त होगी। वैसे पंचेन्द्रिय में भी संज्ञी-असंज्ञी दोनों होते हैं।हमारा मन सत्यता के साथ जुड़कर निर्वधता को साथ रखे। मन की चंचलता को हम कम करें। मन की चंचलता को कम करने के लिए तन की चंचलता पर ध्यान देना चाहिए। शरीर की स्थिरता का अभ्यास सहो तो मन की स्थिरता हो सकती है। शरीर से स्थिर और शिथिल रहे। सघन साधना शिविर तो आज समाप्त हो रहा है, पर आगे भी वे शिविरार्थी तन की शिथिलता रखने का प्रयास करें। वाणी की भी अप्रयोग की स्थिति भी जब ध्यान करें तब रहे। ध्यान में हमेशा सीधा बैठें।
मन की चंचलता बढ़ाने वाले मूल तो राग-द्वेष हैं। भाव आता है, तो मन के पंखे घूमते हैं। श्वास भी लंबा चले। इससे चंचलता में कमी आ सकती है। हम प्रयास के द्वारा मन की चंचलता कम कर सकते हैं। मन को साधने का प्रयास करें। सघन साधना शिविर के संदर्भ में महासभा की ओर से अशोक तातेड़ ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। शिविरार्थियों ने गीत की प्रस्तुति दी। मुख्यमुनि महावीर कुमार जी ने सघन साधना शिविर के अनेक प्रसंगों एवं उसके महत्त्व को समझाया। पूज्यप्रवर ने भी आशीर्वचन फरमाया। अमृतवाणी के मंचीय कार्यक्रम रूपचंद दुगड़ ने अमृत वाणी के विषय में जानकारी दी। अमृतवाणी स्वर संगम का फाइनल आयोजन आज शुरू हुआ। इसके संयोजक पन्नालाल पुगलिया ने इसकी जानकारी दी। अमृतवाणी स्वर संगम के प्रायोजक उम्मेद दुगड़ एवं प्रवचन प्रसारण के सहयोगियों का अमृतवाणी द्वारा सम्मान किया गया। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।