आवश्यकता सीमित होती है और लालसा अनंत : आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन, 20 अक्टूबर, 2023
तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवती सूत्र की विवेचना करते हुए फरमाया कि सौमिल ब्राह्मण ने परम प्रभु महावीर से पूछा-भंते! वह प्रासुक विहार क्या है? भगवान ने उत्तर दिया कि सौमिल! मैं आरामो, उद्यानो, देवकुलो, सभाओं आदि वस्तियों में निवास करता हूँ, प्रासुक ऐषणीय पीठ-फलक, शैय्या संस्तारक को ग्रहण कर विहार करता हूँ वह प्रासुक विहार है।
साधु प्रवास करता है, तो साधु को मकान व कुछ उपकरण-सामग्री आदि भी चाहिए। लंबा प्रवास या चतुर्मास हो तो अनुकूल सामग्री मिलने से प्रवास ठीक हो सकता है। स्थान भी निरवाला मिले, बसता मकान न हो। चारित्रात्मा के लिए प्रासुक विहार अनिवार्य है। प्रवचन सुनने वालों, सेवा-उपासना करने वालों को भी स्थान अच्छा मिल जाए तो वह प्रवास कल्याणकारी सिद्ध हो सकता है।
साधु की चर्या के अनुकूल सुविधाएँ मिल जाएँ तो साधु की साधना अच्छी हो सकती है। साधु भी ज्यादा सुविधाशीलता न रखें, संतोष रखें। गृहस्थ भी संतोष का जीवन जीएँ तो शांति रह सकती है। दो शब्द हैं-Want or Need लालसा कितनी और आवश्यकता कितनी। आवश्यकता की तो पूर्ति हो सकती है। लालसा तो अनंत होती है।
सघन साधना शिविर के शिविरार्थी भी Want or Need समझें। अपेक्षा की तो पूर्ति हो सकती है। संतोष को धारण करना सीखें। पूज्यप्रवर ने असीम कृपा कराते हुए मुमुक्षु मुकेश चिप्पड़ को मुंबई में ही 31 जनवरी को मुनि दीक्षा प्रदान करने की घोषणा करवाई। मुंबई अशोक नगर प्रेक्षाध्यान योग साधना केंद्र के साधकों ने इस केंद्र के सत्ताइसवें वर्ष के उपलक्ष्य में पूज्यप्रवर के दर्शन किए। पारस दुगड़ ने इसके संदर्भ में जानकारी दी। साधिकाओं ने गीत की प्रस्तुति दी। पूज्यप्रवर ने उनको आशीर्वचन फरमाते हुए निरंतरता बनी रहने की मंगलकामना की। अणुव्रतसेवी प्रो0 ललीता जोगड़ ने पूज्यप्रवर के 1051 उपनाम की बुकलेट पूज्यप्रवर को अर्पित की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।