धर्म-ध्यान कर उठाए शरीर की अनुकूलता का लाभ: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

धर्म-ध्यान कर उठाए शरीर की अनुकूलता का लाभ: आचार्यश्री महाश्रमण

नंदनवन, 19 अक्टूबर, 2023
ध्यान-योग के साधक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि सौमिल ब्राह्मण परम वंदनीय भगवान महावीर से प्रश्न कर रहा है। सौमिल ने पूछाµभंते! वह तुम्हारा अव्याबाध क्या है? भगवान ने उत्तर दिया कि अव्याबाध ये जो वात्तिक, पैत्तिक, शैलेष्मिक, सान्निपातिक ये विविध रोग और आतंक होते हैं, वे शरीर के जो दोष हैं, उपशांत हैं, उदीर्ण नहीं हैं, वह अव्याबाध हैं। शरीर हमारे जीवन का एक अंग है। शरीर में बाधा पैदा हो जाए तो फिर कठिनाई का अनुभव होता है। शरीर में वात-पित्त और कफ असंतुलित हो जाए तो बीमारी हो सकती है। जब वात-पित्त-कफ आदि दोष संतुलित रहते हैं, तो यह एक स्वस्थता का आयाम है। शरीर में अग्नि भी संतुलित रूप में रहे ताकि भूख भी अच्छी लगती रहे। शरीर में सात रक्त आदि सात धातुएँ हैं। वे भी संतुलित रहें। मल विसर्जन क्रिया ठीक रहे। मन प्रसन्न रहे। यह है तो आदमी स्वस्थ होता है।
जब तक शरीर ठीक है, तब तक धर्म कर लो। जब तक बुढ़ापा पीड़ित न करे, जब तक कोई बीमारी न लगे और जब तक इंद्रियाँ सक्षम हैं, तब तक बढ़िया धर्म का कार्य कर लो। शरीर में काफी अव्याबाध था तो कितनी लंबी यात्राएँ गुरुदेव तुलसी ने कर ली थीं। शरीर सक्षम है, तो उसका सार निकाल लेना चाहिए। हम अपने अव्याबाध का ध्यान रखें। खान-पान में संतुलन रखें। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने तो नवमें दशक में भी यात्राएँ की थीं। अंतिम दिन तक वे सक्रिय थे। आगम संपादन का काम भी बहुत किया था। लगता है, उनके भी अंतिम समय तक उनके शरीर में अव्याबाध था। आचार्य भिक्षु के भी जीवन को देखें, अंतिम समय तक बहुत कार्य कर लेते थे। शारीरिक सक्षमता हमारे जीवन के लिए उपयोगी होती है। शरीर की अनुकूलता का हमें धर्म के रूप में लाभ उठाना चाहिए। पूज्यप्रवर ने प्रवचन से पूर्व अनुष्ठान-जप का प्रयोग करवाया। तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।