अवबोध

स्वाध्याय

अवबोध

कर्म बोध
बंध व विविध

प्रश्न 17 : सात कर्मों का बंध प्रतिसमय माना है, क्या सात कर्मों की सभी उत्तर प्रकृतियों का बंध भी समय-समय होता है?
उत्तर : सभी उत्तर प्रकृतियों का बंध एक साथ नहीं होता। शुभ प्रवृत्ति से जिस समय शुभ कर्म प्रकृतियों का बंध होता है, उस समय प्रवृत्तिजन्य अशुभ कर्म प्रकृति का बंध नहीं होता। ऐसे ही जब त्रस दशक का बंध होता है, तब स्थावर दशक का बंध नहीं होता।

प्रश्न 18 : क्या ऐसी भी कोई कर्म प्रकृति है, जिसका बंध हुए बिना अनंत काल बीत गया?
उत्तर : तीर्थंकर नाम, आहारक नाम कर्म आदि कुछ ऐसी प्रकृतियाँ हैं, जिन्हें बाँधे बिना अनंतकाल बीत चुका और आगे व्यतीत हो सकता है। इन प्रकृतियों को अभवी कभी नहीं बाँधता। सम्यक्त्वी जीवों में भी कोई-कोई जीव के ही उपरोक्त प्रकृतियों का बंध होता है।

प्रश्न 19 : तीर्थंकर धर्मोद्योत के मुख्य धुरी होते हैं। उनकी मात्र एक गति मोक्ष की होती है, तदपि उसकी इच्छा क्यों नहीं करनी चाहिए?
उत्तर : तीर्थंकर तीर्थंकर-नाम की प्रकृति के उदय से बनते हैं। किसी भी कर्मजन्य अवस्था की अभिलाषा नहीं की जा सकती। कर्म स्वयं बंधन है, वह तीर्थंकर नाम कर्म ही क्यों न हो, उसकी इच्छा कैसे की जा सकती है।

प्रश्न 20 : क्या चैदहवें गुणस्थान में जीव कर्ममुक्त हो जाता है?
उत्तर : चैदहवें गुणस्थान में जीव सकर्मा रहता है। वहाँ पूर्ण संवर की अवस्था है। चैदहवें गुणस्थान को छोड़ना, चार अघात्य कर्म को क्षीण करना व सिद्ध होनाµये तीनों कार्य युगपत् घटित होते हैं।

प्रश्न 21 : क्या शुभ-अशुभ कर्म का बंध युगपत् होता है?
उत्तर : शुभ प्रवृत्ति के समय अशुभ व अशुभ प्रवृत्ति के समय शुभ कर्म का बंध नहीं होता। एक समय में एक का ही बंध होता है। यह योग से संबंधित है। कषाय, प्रमाद, अव्रत आदि से समय-समय पर अशुभ कर्म बंधता है, इस दृष्टि से शुभ-अशुभ दोनों कर्म साथ में बंध सकते हैं। (क्रमश:)