हम जीवन में अच्छाईयों को बढ़ाने का और बुराईयों को कम करने का प्रयास करें : आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन, 24 अक्टूबर, 2023
जीने की कला सिखाने वाले आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आगम वाणी की अमृत वर्षा करते हुए फरमाया कि जैन दर्शन में छः द्रव्यों की अवधारणा प्राप्त होती है। पंचास्तिकाय की भी बात है। भगवती सूत्र पंचास्तिकाय के पर्यायवाची शब्द दिए गए हैं। अनेक अभिवचन दिए गए हैं। जीवास्तिकाय के 23 अभिवचन बतलाए गए हैं। जीव के अनेक रूपों का, स्थितियों को बताने वाले ये शब्द हो सकते हैं जैसे जीव हैं, वह प्राण को धारण करता है। प्राण, भूत और सत्त्व भी है। शुभ और अशुभ को स्वयं जानता है, इसलिए सत्त्व कहलाता है। जीव का एक नाम मानव
दिया गया हे। मनु का अर्थ होता है-ज्ञान। ज्ञान में उत्पन्न होने से उसे मानव कहा है। मानव यानी अनादिकाल से है नया नहीं है।
जीव का एक नाम आत्मा भी है। आत्मा अरूपी है, वह कर्ता है, भोक्ता है। शुद्ध स्वरूप में आत्मा निरंकार होती है। आत्मा है, तो संसारी अवस्था में शरीर भी है। शरीर है, तो शरीर का नाश भी होता है। मृत्यु के आने के अनेक द्वार हैं। आयुष्य कर्म पूर्ण होते ही अनेक तरह से मृत्यु हो सकती है। इंसान में कमियाँ हैं, तो विशेषताएँ भी हो सकती हैं। जैसे रावण ऋद्धि-लब्धि संपन्न व्यक्ति था। गलतियाँ उसने की तो फल भी भोगना पड़ा। राम-लक्ष्मण की जोड़ी भाइयों के लिए श्रेष्ठ उदाहरण है। दोनों हाथ मिलेंगे तो बद्धांजलि हो सकेगी। छोट भाई का बड़े भाई के प्रति समर्पण था। सीता हरण और सीता प्राप्ति के कुछ प्रसंगों को समझाया।
असद् भावों पर सद् भावों की विजय ही विजयादशमी होती है। कहा गया है कि रावण आगे तीर्थंकर बन मोक्ष में जाने वाला है। हम जीवन में अच्छाईयों को बढ़ाने का और बुराईयों को कम करने का प्रयास करें, यह काम्य है। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि ज्ञान की किरणें आदमी को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती हैं। कभी-कभी सोना भी प्राप्ति का कारण हो सकता है। महापुरुषों के जीवन से आदमी वास्तविकता को जान सकते हैं। मानव मन अनेक अपेक्षाओं से जुड़ा है पर हर कामना पूरी हो यह जरूरी नहीं। हमें भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर मुड़कर भीतर का सुख प्राप्त करना है। भगवान द्वारा प्रज्ञप्त चार सुख-शैय्या को समझें। उनमें रमण करने का प्रयास करें। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।